संगीत साधना विद्यालय में गुरु पूर्णिमा और दीक्षांत समारोह की धूम, झूम उठे कलाकार

हैदराबाद: अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय मंडल (मुंबई से संबद्ध) संगीत साधना विद्यालय, दत्तनगर, कंचनबाग, (हैदराबाद) की ओर से बड़े हर्षोल्लास के साथ गुरु पूर्णिमा और दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया। संगती साधना विद्यालय की संचालिक शुभ्रा मोहांतो अपने गुरुओं को स्मरण करते हुए अखिल भारतीय गांधर्व महाविद्यालय के संस्थापक व भारतीय शास्त्रीय संगीतज्ञ विष्णु दिगंबर पलुस्कर का संक्षिप्त परिचय दिया।

शुभ्रा मोहांतो ने बताया कि गुरु विष्णु दिगंबर पलुस्कर (18 अगस्त 1872 – 21 अगस्त 1931) हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक विशिष्ट प्रतिभा थे। पलुस्कर ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में महात्मा गांधी की सभाओं सहित विभिन्न मंचों पर रामधुन गाकर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाया। पलुस्कर ने लाहौर में गांधर्व विद्यालय की स्थापना कर भारतीय संगीत को एक विशिष्ट स्थान दिया। इसके अलावा उन्होंने अपने समय की तमाम धुनों की स्वरलिपियों को संग्रहित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इससे शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में आधुनिक पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त हुआ।

उन्होंने आगे बताया कि दत्तात्रेय जंयती के दौरान उनकी आंख के सामने पटाखा फटने के कारण उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। उपचार कराया गया किंतु कोई लाभ न मिला। ग्वालियर घराने में शिक्षित पंडित बालकृष्णबुवा इचलकरंजीकर से मिरज में संगीत की शिक्षा आरंभ की। बारह वर्ष तक संगीत की विधिवत तालीम हासिल की। गिरनार में दत्तशिखर पर उनकी एक अलौकिक व्यक्तित्व से भेंट हुई। उनके सुझाव पर पलुस्कर जी ने लाहौर को अपना कार्यक्षेत्र चुना।

विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी ने तीन खंडों में संगीत बाल प्रकाश नामक पुस्तक लिखी और 18 खंडों में रागों की स्वरलिपियों को संग्रहित किया। उन्होंने ‘रघुपति राघव राजा राम’ का सामूहिक कीर्तन, रामचरितमानस का संगीतमय प्रवचन, कांग्रेस अधिवेशनों में ‘वंदेमातरम्‌’ एवं राष्ट्रीय भावनात्मक अन्य गीतों का गायन, धार्मिक तथा सामाजिक मेलों, उत्सवों में विशेष संगीत कार्यक्रमों की प्रस्तुति, संगीत परिषदों का आयोजन इत्यादि द्वारा विभिन्न प्रदेशों में शास्त्रीय संगीत को लोकप्रिय बनाने का सफल अभियान चलाया। तुलसी, कबीर, सूर आदि भक्त कवियों के पदों को विभिन्न रागों में कर श्रृंगार-रस-प्रधान ठुमरी शैली के समकक्ष भजन शैली की शास्त्रीय संगीत में प्रतिष्ठा की।

इस अवसर पर संगीत साधन का बाल कलाकार- सान्वी पोतदार, दर्शनी बाबू, ध्रुवी, डी पर्वशा तथा युवा कलाकार अंकिता तिवारी, काज़िम अहमद, सस्मिता नायक, प्रभुदास, पल्लवी, योगिता, माधवी, कल्पना डाँग, रिचा चौधरी, भावना, विश्वनाथ और विद्यालय की संचालिका श्रीमती शुभ्रा मोहांतो ने गुरु भजना, कबीर के दोहे, प्रार्थना- ये मालिक तेरे बंदे हम सहित हिंदी- तेलुगु हिट गीत व गीतों को प्रस्तुत किया।

समारोह में राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वायलिन वादक श्रीधर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्हें डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक डॉ गौरंगचंद्र मोहांतो, टी के चंद्र और अरूण महोदया द्वारा शॉल व स्मृति चिह्न से सम्मानित किया गया। दीक्षांत समारोह में नवंबर 2021 में संगीत परीक्षा लिखने वाले संगीत साधकों को प्रमाणपत्र प्रदान किये गये।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन से किया गया। समारोह का संचालन मिधानि के उप प्रबंधक (हिंदी अनुभाग एवं निगम संचार) डॉ बी बालाजी और धन्यवाद ज्ञापन आरसीआई के सहायक निदेशक (राजभाषा) काज़िम अहमद ने किया।

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