हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत की 15वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह गोष्ठी कारगिल युद्ध के शहीदों के सम्मान में आयोजित की गई। इस गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार दर्शन सिंह ने की। संस्था की संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और वक्ताओं का हार्दिक स्वागत किया। ज्योति नारायण की स्वरचित सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। संस्था के उद्देश्यों और कार्यक्रमों की जानकारी अध्यक्षा द्वारा प्रदान की गई।
इस अवसर पर संस्था की परामर्शदाता डॉ सुमन लता के पतिदेव मूर्ति सर एवं सुनीता लुल्ला जी के सुपुत्र श्रीमान राजीव लुल्ला के असामयिक निधन पर दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। सभी सदस्यों ने अपनी शोक संवेदनाएं प्रकट की।
कारिगलयुद्ध में 527 वीर योद्धा शहीद और 1,300 से ज्यादा जवान घायल
प्रथम सत्र में कारगिल विजय दिवस के बारे में जानकारी देते हुए अध्यक्षा ने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सन् 1999 में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम कारगिल युद्ध है। यह युद्ध लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन इसका अन्त हुआ। इसलिए इसे ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन वीर सेनानियों को समर्पित है, जिन्होंने अपना आज हमारे आने वाले सुखद कल के लिए बलिदान कर दिया। इस युद्ध में हमारे 527 वीर योद्धा शहीद और 1,300 से ज्यादा जवान घायल हो गये थे। ये सभी प्राय: 30 वर्ष से कम आयु के थे। विश्व के इतिहास में कारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में लड़ा गया युद्ध माना जाता है।
हमारी देश की ओर कोई आंख उठाकर भी नहीं देख सकता
कटक, उड़ीसा से रिमझिम झा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जिस देश में सौरभ कालिया और नचिकेता जैसे वीर योद्धा हों, समर्थ सैन्य शक्ति हो और तीनों सेनाओं में एकता हो, उस देश की ओर कोई आंख उठाकर भी नहीं देख सकता। सुनियोजित और रणनीतिक तरीके से हमारे सैनिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों को अपनी सीमा में लौटने पर मजबूर कर दिया। पाकिस्तान ने तो अपने सैनिकों के शव लेने से इन्कार कर दिया, लेकिन हमारे सैनिकों ने उनका अंतिम संस्कार भी सम्मान के साथ किया।
आर या पार की लड़ाई होनी चाहिए
ज्योति नारायण ने कहा कि युद्ध क्यों होते हैं? महाभारत का युद्ध अपने हक के लिए लड़ा गया था, वैसे ही हमें हमारे हक के लिए अगर दुश्मन से लड़ना पड़े तो जरूर लड़ना चाहिए। हमारी शान्तिप्रियता को हमारी कमजोरी समझने की भूल कोई न करे। आखिर कब तक हम यह अघोषित युद्ध लड़ते रहेंगे, अब तो आर या पार की लड़ाई होनी चाहिए। इस कार्यक्रम में आर्या झा, ऐश्वर्यदा मिश्रा और बबीता अग्रवाल ने भी इस विषय पर अपने विचार रखे।
उग्रवादियों का समूल नाश किया जाये
अध्यक्षीय उद्बोधन में दर्शन सिंह ने कहा कि हमें वर्तमान सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। जिस प्रकार इस सरकार ने कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटा दी, उसी प्रकार उग्रवादियों का समूल नाश किया जाना चाहिए। बालाकोट जैसी स्ट्राइक से पीओके को पुनः भारत में मिला लेना चाहिए, क्योंकि वह भारत का अभिन्न अंग है। पाकिस्तान आज भी उस बात का बदला ले रहा है, जब पूर्वी पाकिस्तान उससे अलग होकर बांग्लादेश बन गया था। सभी सदस्यों ने इस बात पर अपनी सहमति जताई कि शहीदों के परिवार की देखभाल करना और उन्हें समुचित सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है और उसको इसमें कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए।
देश पर मर मिटने का जज्बा रखते हैं
द्वितीय सत्र में शहीदों के सम्मान में आर्या झा ने अपनी रचना- अलख देशभक्ति की जाग जाने दो ना, प्रस्तुत की तो भावना पुरोहित ने- जय जवान, जय किसान रचना का पाठ करके सबमें जोश भर दिया। रांची, झारखण्ड से ऐश्वर्यदा मिश्रा ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अपनी व्यंग्य रचना- आजादी का पाठ करके सबको यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमें आजादी कहां मिली है? सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल से शामिल कवयित्री बबीता अग्रवाल कंवल ने अपनी गज़ल- मैं ही तेरा मुकद्दर हूं/मैं ही तेरा सिकन्दर हूं को बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया। रिमझिम झा ने अपनी रचना- देश पर मर मिटने का जज्बा रखते हैं, सुनाई तो ज्योति नारायण ने- मैं आज फिर रोया था/गहन शून्य में खोया था, जैसी मर्मस्पर्शी रचना पढ़कर सबको भावविभोर कर दिया।
सरिता सुराणा ने कवि हरिओम पंवार की रचना का वाचन किया
सरिता सुराणा ने प्रसिद्ध कवि हरिओम पंवार की रचना का वाचन किया, जो कारगिल युद्ध के शहीदों को समर्पित है-
मैं केशव का पांचजन्य भी गहन मौन में खोया हूं/उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूं…..।
टूटी चूड़ी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का/कोई मोल नहीं दे सकता, वासन्ती जज्बातों का।
बिनोद गिरि अनोखा ने भी गोष्ठी में भाग लिया। अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए दर्शन सिंह ने अपनी रचना- फरवरी 99 में अटलजी की लाहौर सौहार्द बस यात्रा का वाचन किया तथा सभी सहभागियों को बधाई दी। ज्योति नारायण के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।