हैदराबाद : युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल अठारहवीं संगोष्ठी आयोजित की गई। डॉ रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव सरिता दीक्षित ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह कार्यक्रम राष्ट्रीय पत्रिका ‘वीणा’ के वरिष्ठ संपादक एवं प्रखर चिंतक राकेश शर्मा (इंदौर) की अध्यक्षता में संपन्न हुई। कार्यक्रम का शुभारंभ संगीतज्ञ शुभ्रा महंतो के सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात प्रदेश इकाई की अध्यक्षा डॉ रमा द्विवेदी ने सम्माननीय अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया।
डॉ रमा ने संस्था का परिचय देते हुए कहा कि युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली (पंजीकृत न्यास) एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक विशेष उद्देश्य है।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रख्यात व्यंग्यकार एवं ‘अट्टहास’ पत्रिका के कार्यकारी संपादक रामकिशोर उपाध्याय मंचासीन हुए। संगोष्ठी का था विषय- ‘साठोत्तर काव्य आंदोलन में संघर्ष मूलक काव्य की प्रवृत्तियाँ’ था। मुख्य वक्ता उपाधयाय ने विषय की व्याख्या करते हुए कहा कि संघर्ष मूलक कविता में पाई जाने वाली पाँच प्रवृत्तियाँ प्रमुख है- इनमें वर्तमान व्यवस्था की विसंगतियों का चित्रण, आधुनिक जनतंत्र पर आक्षेप, संघर्ष की अनिवार्यता, क्रांति की सफलता का दृढ विश्वास एवं काव्य की प्रतिबद्धता शामिल है।
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साठोत्तर संघर्ष मूलक कविता में कि न केवल समसामयिक जीवन की विषमताओं विसंगतियों एवं विवशताओं का चित्रण सहानुभूतियों के आधार पर हुआ है, परंतु इसके साथ ही सामाजिक क्रांति का एक व्यापक उद्देश्य भी अंतर निहित है। अतः इस दृष्टि से यह अपने युग और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व के प्रति पूर्ण सजग एवं सचेष्ट है। साथ ही कविता अपने भूमि और परिवेश से पूरी तरह से जुड़ी हुई है। उसमें आयातित और आरोपित प्रवृत्तियों कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होत। अभिव्यंजना शैली की दृष्टि से सर्वत्र सहजता, स्पष्टता के दर्शन तो होते हैं। लेकिन धूमिल जैसे कवियों की उक्तियों में लाक्षणिकता एवं वक्रता का वैभव भी प्राय: दृष्टिगोचर होता है। अतः समग्र रूप से संघर्ष मूलक कविता को एक सही दिशा में किए गए सहज प्रयास के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।”
संगोष्ठी अध्यक्ष राकेश शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि साहित्य अपने समकाल का इतिहास भी होता है। वह अपने भीतर समय की सभी प्रवृत्तियों को समाए रखता है क्योंकि यह समकाल की धड़कनों से ही पैदा होता है। साठोत्तरी कविता में उस समय की सभी विसंगतियों की छवियां उपस्थित हैं। हमें अपने अतीत हुए समय का मूल्यांकन करते रहना चाहिए। मूल्यांकन समकाल के अतीत बन जाने पर ही संभव होता है किसी भी समकाल का मूल्यांकन ठीक उसी समय संभव नहीं होता। रचनाकार समय और व्यवस्था से टकरा कर सर्जना करता है। उसका असंतोष ही उससे लेखन करवाता है। यह क्रम जब तक बना रहेगा, नई नई रचनाएँ समाज को मिलती रहेंगी। उन्होंने सफल कार्यक्रम के लिए आयोजकों को बधाई दी।
इस चर्चा में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ प्रणव भारती (अहमदाबाद ) ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी के प्रथम सत्र का संचालन सुश्री शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुरभि दत्त (कोषाध्यक्ष ) ने किया।
तत्पश्चात दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ प्रणव भारती जी ने की। उपस्थित सभी रचनाकारों ने देश भक्ति, शहीदों को श्रद्धांजलि एवं आस्था के पर्व कुम्भ स्नान पर सृजित सुंदर सरस गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, दोहे एवं कविताओं का पाठ करके देशप्रेम से गोष्ठी को सराबोर कर दिया। विनीता शर्मा(उपाध्यक्ष) शिल्पी भटनागर, दर्शन सिंह, डॉ सुषमा देवी, सरिता दीक्षित, डॉ रमा द्विवेदी, शोभा देशपाण्डे, रेखा अग्रवाल, डॉ जयप्रकाश तिवारी(लखनऊ), प्रियंका पाण्डे, शुभ्रा महंतो, प्रमिला पण्डे (कानपुर), तृप्ति मिश्रा, डॉ सुरभि दत्त, डॉ स्वाति गुप्ता” और अन्य ने काव्यपाठ किया।
अध्यक्ष डॉ प्रणव भारती ने कहा कि आज की काव्य गोष्ठी बहुत सफल और शानदार रही। सभी रचनाकारों की रचनाओं पर टिप्पणी देकर सराहना की एवं बधाई दीं और अध्यक्षीय काव्य पाठ किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ व्यंग्यकार बी एल आच्छा (चेन्नई )उपस्थित रहे। उन्होंने सफल कार्यक्रम की आयोजकों को शुभकामनाएँ प्रेषित कीं। काव्यगोष्ठी सत्र का संचालन सुश्री सरिता दीक्षित (महासचिव) ने किया और आभार ज्ञापन सुश्री तृप्ति मिश्रा ने किया। प्रदेश अध्यक्ष डॉ रमा द्विवेदी द्वारा प्रेषित राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ संगोष्ठी समाप्त हुई।