यह है रोजमर्रा वस्तुओं के दाम बढ़ने के कारण और आम लोगों की परेशानी की वजह

बाजार में रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमत बढ़ने से आम लोग परेशान हैं। मार्केट में हर वस्तु सौ रुपये किलो से कम नहीं बिक रहा है। पिछले एक महीने से सब्जियों, दालों, जीरा, अदरक और लहसुन के दाम बढ़ते ही जा रहे हैं। बिना चूल्हा जलाये ही रसोई में दाम जलन पैदा कर रहे हैं। एक किलो खरीदने वाले पाव किलो या आधा किलो खरीदी करके चुल्हे पर रख रहे हैं। बढ़ती महंगाई से मजदूर, दिहाड़ी मजदूर और मध्यम वर्ग के लोगों का तो जीना मुश्किल हो गया है। हर रुपया खर्च करने के लिए चार बार सोच रहे है। मौसम की मार के कारण फसल का उत्पादन कम हो रहा है। परिणास्वरूप कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं।

आवश्यक वस्तुओं की कीमतें रोजाना बढ़ रहे हैं, लेकिन आम आदमी की आमदनी नहीं बढ़ रही है। खर्चों में बेतहाशा बढ़ोतरी से लोग तिलमिला रहे हैं। आमदनी और खर्च में तालमेल नहीं हो रहा है। इसीलिए लोग खाने-पीने की आदतें बदल रहे हैं। हर सब्जी के दाम 50 रुपये से अधिक है। मुख्य रूप से टमाटर, हरी मिर्च, बीन्स, अदरक और लहसुन के दाम रसोई में आग लगा रहे हैं। धूप के मौसम में कुछ स्थानों पर भारी बारिश के कारण टमाटर और हरी सब्जियों की फसल को नुकसान हुआ। उपज गिर गई। कीमतें बढ़ गई। पिछले एक महीने से कीमतें आसमान को छू रहे हैं।

चिकन और खाने के तेल की कीमतों में कमी होना आम आदमी के लिए राहत की बात है। रविवार को चिकन की दुकानों पर लंबी-लंबी कतार देखी गई। जहां किसान बढ़ी हुई कीमतों से खुश हैं। वहीं उपभोक्ताओं की जेबें कट रही हैं। गरीबों को गुजारा करना मुश्किल हो गया है। किसानों का कहना है कि पांच महीने तक चिलचिलाती धूप, तेज हवा और बारिश से सब्जी बागानों को नुकसान हुआ और फसल बर्बाद हो गयी।

परिणामस्वरूप सब्जियों के दाम अचानक बढ़ गये। एक किलो टमाटर 100 रुपये से बढ़कर 140 रुपये हो गया है। इसके चलते एक किलो टमाटर खरीदी करने वाले अब पाव किलो या आधा किलो में ही समझौता कर रहे हैं। कुछ राज्यों में ग्रीष्म काल में बारिश और बरसात के मौसम में बारिश की कमी के कारण टमाटर की पैदावार कम हो गई है। मुख्य रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में जो टमाटर का आयात करते थे, चक्रवात के कारण फसल को नुकसान हुआ है।

टमाटर की तरह ही हरी मिर्च के दाम भी आसमान को छू रहे है। एक किलो हरी मिर्च 120 रुपये से अधिक दामों पर बिक रहा है। व्यापारी आंध्र प्रदेश और कर्नाटक राज्यों से तेलंगाना में आयात कर रहे हैं। तेलंगाना के रंगारेड्डी और मेदक जिलों में और आंध्र प्रदेश के अनंतपुर और कडपा जिलों में मिर्च उगाई जाती है। पैदावार घटने से शहर के बाज़ार में आयात गिर गया है। व्यापारियों का कहना है कि दूसरे राज्यों से आयात करने के कारण परिवहन की लागत बढ़ गई है।

केवल टमाटर और हरी मिर्च के साथ दालों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। तुअर, बाजरा और मूंग की फसलें भारी बारिश और बिना बारिश के चलते प्रभावित हुई। दो महीने में दालों की कीमतों में 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। तुअर दाल, मूंग दाल और ऊड़द दाल के दाम एक किलो 100 रुपये से अधिक हैं। उत्पादन घट गया और कीमते ज्यादा हो गई।

पड़ोसी जिलों और राज्यों से परिवहन शुल्क का बोझ 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो गई है। तेलंगाना के संयुक्त जिले के व्यापारी इस समय कर्नाटक और महाराष्ट्र से दालों का आयात कर रहे हैं। तेलंगाना सरकार दलहन की खेती को बढ़ावा नहीं दे रही है। एक महीने पहले तुअर दाल 120 रुपये किलो का था, वह आज 150 रुपये किलो तक पहुंच गया है। उड़द दाल 120 रुपये से बढ़कर 140 रुपये प्रति किलो हो गया है।

केवल इतना ही नहीं, खाना पकाने में उपयोग की जाने वाली जीरे के दाम भी काफी बढ़ गये है। एक माह पहले जीरे की कीमत 500 रुपये प्रति किलो था और अब 700 रुपये हो गया है। विश्व का 70 प्रतिशत जीरे का उत्पादन हमारे देश में होता है। यह फसल सीरिया, तुर्की और अन्य देशों में पैदा की जाती है। यह अधिकतर गुजरात और राजस्थान में उगाया जाता है। तेलंगाना में जीरे का आयात राजस्थान से किया जा रहा है। वहां पर उपज घटी और यहां पर कीमत बढ़ी है।

इसी तरह चावल के दाम भी उबाल पर हैं। विश्व में चावल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। पिछले महीने केंद्र ने चावल की कीमत में सात फीसदी की बढ़ोतरी की है। दो महीने पहले एक क्विंटल चावल 4,000 से 5,000 रुपये था, लेकिन आज यह 5,000 से 6,000 रुपये तक पहुंच गया है।
एक जमाने में गरीब लोग चावल नहीं खरीद पाते थे अर्थात चावल नहीं खाते थे। वो ज्वार (रोटी) खाते थे। अब अमीर लोग, जो बारिक चावल नहीं खा पा रहे है, ज्वार का उपयोग कर रहे हैं। मधुमेह से पीड़ित लोग ज्वार की रोटी खा रहे हैं। मधुमेह को नियंत्रण में रखने के लिए वे ज्वार की रोटी खा रहे हैं। ज्वार फसल की खेती में कमी के कारण बाजार में ज्वार की मांग बढ़ गई है। इस समय बाजार में ज्वार 65-70 रुपये प्रति किलो है। एक समय में किसानों को दलहनी फसलें उगानी पड़ती थी। क्योंकि तब अच्छे दाम मिलते थे। अब दलहनी फसलों को कम दाम मिल रहे है। इसलिए किसान अन्य फसलों की ओर रुख किया है।

इसीलिए दाल, चावल और सब्जियों के दाम दो से तीन गुना बढ़ जाने से गरीब व मध्यम वर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति चरमरा गयी। अब गरीबों की ऐसी दयनीय स्थिति उत्पन्न हो गई है कि चटनी से खाकर संतोष्ट होना पड़ रहा है। दिहाड़ी मजदूर प्रति माह औसतन 8,000 से 12,000 रुपये कमाते हैं। इसमें परिवार को सब्जियों के लिए 4,500 से 5,000 रुपये खर्च करना पड़ रहा है। यहां तक ​​कि आउटसोर्सिंग/निजी कंपनियों में अस्थायी नौकरी करने वाले परिवारों की भी ऐसी ही स्थिति हैं। इनको एक भोजन में खर्च होने वाली सब्जी के लिए तीन भोजन पर खर्च करना पड़ रहा हैं।

एक तरफ जहां दाल, चावल और सब्जियों के दाम बढ़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ चिकन के दाम में भारी गिरावट आई है। एक माह पहले चिकन की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी हुई थी। इसके चलते आम लोगों ने चिकन खरीदना काफी कम कर दिया था। एक तरफ भीषम गर्मी के कारण चिकेन का उत्पादन गिर गया है तो दूसरी तरफ मुर्गियों के चारे की दरें बढ़ गई। इसके चलते मुर्गियों की कीमत बढ़ गई थी। इसी बीच धूप के प्रभाव से मुर्गियाों की मौत होना शुरू हो गया और उत्पादन घट गया। इसके कारण एक किलो चिकन की कीमत 330 रुपये से बढ़कर 350 रुपये हो गया।

अब गिरते तापमान और बारिश के मौसम के साथ चिकेन की कीमतें नीचे आ रही हैं। फिलहाल एक किलो चिकन की कीमत घटकर 198 हो गई है। खाना पकाने के तेलों की कीमतें जो अब तक आसमान पर थीं, उसमें भी गिरावट आई है। छह महीने पहले खाने का तेल 200 रुपये प्रति लीटर था और अब घटकर 120 रुपये हो गया है। सूरजमुखी, सोयाबीन, पाम ऑयल और पाम ऑयल की कीमतें घटी हैं।

कोरोना से पहले ही खाने के तेल के दाम बढ़ गए थे। कोरोना के दौरान लोगों के घर पर रहने, उत्पादन कम होने, परिवहन और कालाबाजारी जैसे कारणों से 100 रुपये प्रति लीटर बिकने वाले तेल के दाम अचानक बढ़ गये। यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के चलते भी खाना पकाने के तेल की कीमतें बढ़ गईं। तेल की कीमतों में कमी आम आदमी के लिए राहत देने वाली बात है।

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