हैदराबाद में ओमिक्रॉन के दो मामले, अस्पताल में भर्ती दोनों फरार! शहर में हाई अलर्ट!!

हैदराबाद : दुनिया भर में हड़कंप मचाने वाले कोरोना वायरस के नये वेरिएंट ओमिक्रॉन (omicron) ने हैदराबाद में दस्तक दी है। तेलंगाना चिकित्सा विभाग ने घोषणा की है कि विदेशियों से आये दो लोगों की रिपोर्ट ओमिक्रॉन पॉजिटिव आई है। केन्या और सोमालिया से दो विदेशियों की रिपोर्ट कोरोना पॉजिडटिव आई थी। इसके चलते उनके नमूने परीक्षण के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग (genome sequencing) के पास भेजे गये।

इसके चलते दोनों की रिपोर्ट ओमिक्रॉन पॉजिटिव पाये जाने के बाद उन्हें शहर के एक अस्पताल भर्ती किया गया। हालांकि दो पॉजिटिव मरीज अस्पताल से भाग जाना चिंता का विषय है। कहा गया है कि अस्पताल में निगरानी में रखे गये दोनों मरीज आज सुबह अस्पताल से भाग गये हैं।

इसी क्रम में चिकित्सा अधिकारियों ने उनके परिवार के सदस्यों को टोलीचौकी में आइसोलेशन में रखा है। अस्पताल से भाग गये पॉजिटिव मरीजों को पकड़ने की मुहीम तेज कर दी है। मुख्य रूप से एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड में अलर्ट किया गया है।

इसी बीच एक और खबर आई है कि विदेश से आये एक अन्य शख्स भी ओमिक्रॉन पॉजिटिव पाये जाने की खबर है। मगर स्वास्थ्य विभाग की ओर से इसकी घोषणा नहीं की गई है।

गौरतलब है कि कोरोना वायरस के नये वेरिएंट ओमिक्रॉन के मामले भारत में बढ़ने लगे हैं। ओमिक्रॉन को लेकर जो शोध या अध्ययन में दावे किए जा रहे हैं वे बेहद चिंताजनक हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुए शोध के मुताबिक वैक्सीन के दो डोज से बनी कमजोर एंटीबॉडी के खिलाफ ओमिक्रॉन प्रभावशाली है। एक्सपर्ट कोरोना से बचाव के लिए सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं।

मगर मुख्य बात यह है कि कोरोना वायरस के इस नये ओमिक्रॉन वैरिएंट का पता कैसे लगाया जाये। ओमिक्रॉन वैरिएंट को पता लगाने के लिए एक तकनीक है जीनोम सिक्वेंसी। ये तकनीक कई दिनों से चर्चा में है। मगर जीनोम सीक्वेंस क्या है और कैसे पता चलता है कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति ओमिक्रॉन वैरिएंट से ग्रसित है, इसका पता लगाने का एक प्रक्रिया है। कोरोना वैरिएंट का पता लगाकर उसके मुताबिक संक्रमण के खतरे से बचाव के लिए प्रयास किया जा सकता है।

इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंस के वाइस चांसलर डॉक्टर एसके सरीन के मुताबिक, जैसे शरीर डीएनए से मिलकर बनता है, वैसे ही संक्रमण भी डीएनए या आरएनए से मिलकर बनता है। कोरोना वायरस आरएनए से बना है। जीनोम सीक्वेंसिंग एक तकनीक है, जिससे आरएनए की जेनेटिक जानकारी का पता चलता है। जीनोम सीक्वेंस ये बताता है कि वायरस कैसा है और कैसे हमला कर रहा है और कैसे बढ़ सकता है। सबसे पहले कोरोना वायरस की जांच कराई जाती है। इसमें आरटी- पीसीआर सैंपल को बीएसएल तीन लैब में जांच होती है। वहां से इस सैंपल में से आरएनए को अलग किया जाता है। आरएनए सैंपल की जीनोम सिक्वेंसिंग जांच प्रक्रिया होती है। जिसमें आरएनए को 80 डिग्री के टेंपरेचर पर रखा जाता है। फिर सैंपल को जीनोम सीक्वेंसिंग लैब में लाकर आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया की जाती है।

जीनोम सिक्वेंसिंग लैब में आरएनए प्रोसेसिंग की प्रक्रिया के दौरान आरएनए को डीएनए में बदला जाता है। इसे डीएनए में बदलने की वजह होती है। दरअसल, आरएनए जल्दी प्रतिक्रिया देता है, जिसकी वजह से आरएनए पर कोई भी टेस्ट करना मुमकिन नहीं होता। ऐसे में डीएनए में बदलने के लिए इसे न्यूनतम तापमान पर पीसीआर मशीन में डालते हैं फिर फ्रेगमेंटेशन के लिए भेजते हैं। फ्रेगमेंटेशन एक प्रक्रिया है, जिसमें डीएनए को छोटे टुकड़ों में बांटा जाता है। डीएनए का सैंपल लंबा होने के कारण उसे सीक्वेंस नहीं किया जा सकता, इसलिए उसका फ्रेगमेंटेशन करना जरूरी होता है। फ्रेगमेंटेशन की प्रक्रिया में हर सैंपल को नाम से टैग किया जाता है। सीक्वेंसिंग के लिए सैंपल को एनालाइजर मशीन में डालते हैं। यहां सैंपल की मात्रा और गुणवत्ता का पता चलता है। सब सही पाये जाने पर सैंपल को आगे की प्रक्रिया के लिए भेजा जाता है।

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