तीसरा दक्षिण भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन में 170 साहित्यकारों ने लिया हिस्सा, इस विषय को किया रेखांकित और लिया यह संकल्प

हैदराबाद/तृशूर: हिन्दीतर दक्षिण भारत में हिन्दी भाषा एवं साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान रेखांकित करते हुए तीसरा दक्षिण भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन केरल प्रांत के तृशूर शहर में संपन्न हुआ। विकल्प तृशूर, भोपाल के रवीन्द्र टैगोर विश्वविद्यालय एवं बिलासपुर के डॉ. सी.वी. रामन विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान एवं राजकमल प्रकाशन के सहयोग से हिन्दी साहित्य सम्मेलन एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था।

“हिन्दी भाषा : संवेदना एवं अनुप्रयोग” विषय पर केन्द्रित सम्मेलन का उद्घाटन वरिष्ठ कथाकार मधु कांकरिया ने किया। उद्‌घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि साहित्य जीवन का मैनुअल है। मनुष्य जीवन साहित्य में ही जड़ जमाया हुआ है। साहित्य समकालीन समस्याओं से मुठभेड़ करता है। मानविकता को ज्यादा बेहतर बनाने का दायित्व साहित्य ने ले लिया है। किसानों की आत्महत्या एवं किसान आंदोलनों का जिक्र करते हुए मधु कांकरिया ने कहा कि हिन्दी साहित्य ने किसानों के जीवन-संघर्ष को आत्मसात कर दिया।

प्रतिष्ठित साहित्यकार एवं भोपाल के रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने सम्मेलन में मुख्य वक्तव्य दिया। “हिन्दी भाषा : संवेदना एवं अनुप्रयोग” विषय पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि मानव के सच्चे विकास में विज्ञान के स्थान पर कला और साहित्य की बड़ी भूमिका है। ए.आई. का ज़माना मनुष्य-सत्ता का निराकरण करता है, जबकि मानवता का आख्यान है साहित्य। आयोजक समिति के अध्यक्ष डा. के.जी. प्रभाकरन ने अध्यक्षता की। केरल साहित्य अकादमी के पूर्व सचिव डॉ. पी.वी.कृष्णन नायर ने आशीष वचन दिये।

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सम्मेलन में दक्षिण भारत के हिन्दी विद्वान प्रो. प्रकाशंकर प्रेमी (कर्नाटक), प्रो. शशि मुदिराज (तेलंगाना), प्रो. वाई. शिवरामी रेड्डी (आन्ध्र प्रदेश), डॉ. जे. सुरेन्दन (पांडिचेरी) एवं डॉ. वृषालि मंडरेकर (गोवा) का आदर-सम्मान किया गया। डॉ. पद्मप्रिया ने अपने विद्वान माता-पिता की स्मृति में डॉ. राजलक्ष्मी कृष्णन (तमिलनाडु) एवं डॉ. के.जी. प्रभाकरन (केरल) को पुरस्कार प्रदान किया। सम्मेलन में प्रतिभागियों की पुस्तकों एवं ‘जन विकल्प’ पत्रिका के अंक-18 का लोकार्पण किया गया। उद्घाटन सत्र में आयोजक समिति के महासंयोजक डॉ. वी. जी. गोपालकृष्णन ने स्वागत भाषण किया तथा समन्वयक पी. डी. एन्टो ने धन्यवाद अदा किया।

उद्‌घाटन भाषण : मधु कांकरिया

“भाषा और साहित्य : समकालीन परिवेश में” सत्र में डॉ. के. के. वेलायुधन ने अध्यक्षता की। कथाकार मधु कांकरिया, श्रीलंका के रंगकर्मी डॉ. उपुल रंजीत एवं आलोचक डॉ. बीरपाल सिंह यादव ने व्याख्यान दिए। “नयी शिक्षा नीति एवं भाषाओं का भविष्य” सत्र में डॉ. आर. शशिधरन ने अध्यक्षता की। डॉ. एस. ए. मंजुनाथ ने मुख्य वक्तव्य दिया। हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर डॉ. शशि मुदिराज ने अपने वक्तव्य में कहा कि भाषा को तोड़ने से संस्कृति एवं मानवता को तोड़ सकते हैं। इसलिए ही भाषाध्ययन का अवसर नष्ट कर भारतीय बहुस्वर संस्कृति को नष्ट करने का परिश्रम राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा किया जा रहा है। डॉ. वी.जी. गोपालकृष्णन ने बताया कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति नहीं, बल्कि राजनीतिक शिक्षा नीति है जिसमें उच्च शिक्षा के स्तर को तोड़ने की साजिश है।

मुख्य वक्तव्य : संतोष चौबे

“ए.आई. के ज़माने में हिन्दी” सत्र में डॉ. मधुशील आयिल्लत्त, डॉ. संतोष कुमारी अरोरा, जवाहर करनावत, डॉ. एस. मेहश एवं डॉ. षिबु ए. पी. ने व्याख्यान किए। “समाज और कविता” सत्र में प्रो. रामप्रकाश ने अध्यक्षता की। वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई, युवा कवयित्री डॉ. अनामिका अनु, डॉ. के. राजेश्वरी, डॉ. लीना सैमुअल, डॉ. पी. आर. रम्या, डॉ. लता चौहान ने आलेख प्रस्तुत किए। “समाज और कथा साहित्य” सत्र में डॉ. पी. रवि ने अध्यक्षीय भाषण किया। प्रो. शशि मुदिराज, डॉ. बीरपाल सिंह यादव ने व्याख्यान दिए। विभिन्न सत्रों में डॉ. के. अजिता, डॉ. ए. सिन्धु, डॉ. श्रतिकांत भारती, डॉ. ए. ए. निम्मी, मीरा मेनन, डॉ. प्रमीला एन.के., पी.वी. वेणुगोपालन और अन्य ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये।

व्याख्यान देते हुए प्रो. शशि मुदि राज

समापन सत्र में प्रो. पद्मप्रिया ने अध्यक्षता की। प्रो. उपुल रंजीत मुख्य वक्ता रहे। डॉ. संतोष कुमारी अरोरा, डॉ. के. जी. प्रभाकरन एवं प्रतिभागियों ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए बताया कि दक्षिण भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का आयोजन एवं अकादमीय सत्र सराहनीय रहे। सम्मेलन के महासंयोजक डॉ. वी. जी. गोपालकृष्णन ने सम्मेलन को सफल बनाने के लिए विद्वत जनों एवं प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट किया। देश-विदेश के 170 प्रतिनिधियों ने सम्मेलन एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया। सम्मेलन का विशेष आकर्षण राजकमल प्रकाशन की हिन्दी पुस्तक प्रदर्शनी रहा है।

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