सूत्रधार: शानदार रहा है ‘भारतीय लोकगीत महोत्सव’

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत की 19 वीं विशेष राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय लोकगीत महोत्सव’ का ऑनलाइन आयोजन किया गया। संयोजिका डॉ राखी सिंह कटियार ने कार्यक्रम का शुभारम्भ किया और उदयपुर से विख्यात लोकगीत कलाकार, पत्रकार और साहित्यकार डॉ शकुन्तला सरुपरिया जी को अध्यक्षता के लिए मंच पर सादर आमंत्रित किया। तत्पश्चात् विशेष वक्ता के तौर पर कोलकाता की विख्यात युवा कवयित्री सुश्री नीता अनामिका, संस्था अध्यक्ष सरिता सुराणा और सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल से विशेष अतिथि के रूप में विख्यात समाज सेविका और कवयित्री सुश्री प्रतिमा जोशी को मंच पर आमंत्रित किया। श्रीमती ज्योति नारायण ने स्वरचित सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की।

इसके बाद संस्था अध्यक्ष ने सभी अतिथियों और सहभागियों का शब्द-पुष्पों से हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और संस्था द्वारा संचालित नियमित गतिविधियों के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि संस्था का उद्देश्य नवोदित कलाकारों को एक मंच प्रदान करना है, जहां पर वे प्रतिष्ठित कलाकारों के मार्गदर्शन में अपनी कला को निखार सकते हैं। कार्यक्रम अध्यक्ष का परिचय श्रीमती रिमझिम झा ने और मुख्य वक्ता का परिचय श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया ने प्रस्तुत किया। प्रथम सत्र में ‘भारतीय संस्कृति में लोकगीतों का महत्त्व’ विषय पर कोलकाता की विख्यात युवा कवयित्री सुश्री नीता अनामिका जी ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कहने को तो लोकगीतों को अशिक्षितों का संगीत कहा जाता है लेकिन लोकगीतों ने स्वतंत्रता संग्राम में जनजागरण की विशेष भूमिका निभाई थी। लोक संस्कृति जीवन की धन्यता और आनन्द का मंगल गान है, हमारी संस्कृति की धरोहर है।

सरिता सुराणा ने ‘राजस्थानी लोकगीतों का माधुर्य’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि राजस्थान कला, संस्कृति और शूरवीरता के लिए सदैव सिरमौर रहा है। यहां लोकगीतों की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा को आदिवासी समुदायों ने भली-भांति सहेज कर रखा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक यहां पर विभिन्न लोकगीतों को गाए जाने की परम्परा रही है। यह मेरा सौभाग्य है कि राजस्थान मेरी जन्मभूमि है। यहां के लोकगीतों में माधुर्य और शृंगार की छटा निराली है। उन्होंने राजस्थान के प्रसिद्ध लोकगीत- सुपणा, पींपली, घूमर, पणिहारी, चूनड़ी, उमराव, गोलबंद, चिरमी, जीरा, मूमल, मोरिया, कुरजां, कागलिया और केसरिया बालम आदि लोकगीतों के बारे में विस्तार से बताया और उनकी दो-दो पंक्तियां गाकर सुनाई। श्रोतागण खुशी से झूम उठे और सभी ने करतल ध्वनि से उनका उत्साहवर्धन किया।

श्रीमती ज्योति नारायण ने कहा कि बिहार में भी लोकगीतों की समृद्ध परम्परा रही है। वहां पर भी महीने भर फगवा गीत गाए जाते हैं। अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ शकुन्तला सरुपरिया जी ने कहा कि उनका जन्म वीर प्रसूता वसुंधरा राजस्थान की धरती पर हुआ है, इसे वे अपना सौभाग्य मानती हैं। इस विशेष कार्यक्रम के आयोजन के लिए उन्होंने संस्था अध्यक्ष को बधाई और साधुवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और भक्त शिरोमणि मीराबाई की धरती है, इस धरती पर विचरण करने स्वर्ग से देवी-देवता भी आते हैं। भले ही यह धरती रेगिस्तान है, धोरों की धरती है लेकिन यहां की समृद्ध संस्कृति सदैव हिमालय की तरह भारत के माथे का ताज रही है। उन्होंने बहुत ही सुमधुर स्वर में बन्ना, कुरजां और कई अन्य गीतों का संगान किया। उनकी गायन शैली से श्रोतागण झूम उठे और सभी ने उनकी विलक्षण प्रतिभा की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। सभी सहभागियों ने इस सारगर्भित सत्र के आयोजन के लिए हार्दिक बधाई दी।


द्वितीय सत्र में लोकगीत महोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें हैदराबाद से श्रीमती रेखा तिवारी और संतोष रजा गाजीपुरी, भागलपुर बिहार से श्रीमती पिंकी मिश्रा, बैंगलोर से श्रीमती अमृता श्रीवास्तव, रांची झारखण्ड से श्रीमती ऐश्वर्यदा मिश्रा ने भोजपुरी भाषा में विविध मनोरंजक गीत प्रस्तुत किए। कटक, उड़ीसा से श्रीमती रिमझिम झा, हैदराबाद से श्रीमती ज्योति नारायण और श्रीमती आर्या झा ने मैथिली भाषा में बहुत सुन्दर लोकगीत प्रस्तुत किए। कोलकाता से श्रीमती सुशीला चनानी ने मारवाड़ी लोकगीतों का फ्यूजन प्रस्तुत करके वाहवाही बटोरी तो श्रीमती संपत देवी मुरारका, श्रीमती हर्षलता दुधोड़िया, श्रीमती नेहा सुराणा भण्डारी और श्रीमती सरिता सुराणा ने मारवाड़ी लोकगीतों की शानदार प्रस्तुति से वातावरण को संगीतमय बना दिया। सिलिगुड़ी से विशिष्ट अतिथि सुश्री प्रतिमा जोशी और श्रीमती बबीता अग्रवाल कंवल ने नेपाली भाषा में अपने-अपने गीत प्रस्तुत करके श्रोताओं से प्रशंसा प्राप्त की।

मुम्बई से श्रीमती ऋचा सिन्हा ने ब्रज भाषा में स्वरचित लोकगीत प्रस्तुत किया तो श्रीमती भावना पुरोहित ने गुजराती भाषा में अपनी प्रस्तुति दी। श्री दर्शन सिंह ने पंजाबी भाषा में बहुत सुन्दर मनोरंजक गीत प्रस्तुत किया। डॉ टीएस श्रीलक्ष्मी और सुश्री जयश्री ने तेलुगु भाषा में बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण गीत प्रस्तुत किया। डॉ संगीता शर्मा ने हिन्दी भाषा में श्रीकृष्ण भजन प्रस्तुत किया। श्री प्रदीप देवीशरण भट्ट ने अपनी गज़ल प्रस्तुत की। अन्त में कार्यक्रम संचालिका डॉ राखी सिंह कटियार ने भोजपुरी भाषा में गीत प्रस्तुत करके वातावरण को खुशनुमा रंग में रंग दिया। उनके काव्यमय संचालन से सभी श्रोतागण अभिभूत थे।

श्री सुहास भटनागर, श्री सुरेश चौधरी, श्री प्रताप जायसवाल, श्री गजानन पाण्डेय,‌‌‌‌ श्रीमती सरोज उपाध्याय और श्रीमती रेखा लोधी ने श्रोताओं के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित होकर कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। बहुत ही उत्साहपूर्ण वातावरण में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। सभी सहभागियों और श्रोताओं ने इस सांस्कृतिक कार्यक्रम की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन की मांग की। सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सहभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। प्रदीप देवीशरण भट्ट के आभार ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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