ऐसी है तेलंगाना में बीआरएस की ताकत और विपक्ष दलों की स्थिति

अगले चुनाव में कौन सी पार्टी सत्ता संभालेगी? किस पार्टी को फायदा होने वाला है? सत्तारूढ़ बीआरएस को कौन सा विपक्ष चुनौती देगा? विपक्ष पार्टियों की रणनीति क्या है? किस पार्टी की ताकत क्या है? उनको चाहने वाले कौन है? ऐसे अनेक सवाल तेलंगाना के लोगों के मन हैं। इसका जवाब उतना आसान नहीं है। फिर भी हम यहां कुछ तर्क दे रहे हैं जो पाठकों और राजनीतिक विश्लेषकों के विचारों पर खरी उतरेगी।

बीजेपी की रणनीति

तेलंगाना में सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी पिछले दो साल से रणनीति बना रही है। इसके लिए बीजेपी चाहे जितनी भी रणनीति बना ले मगर तेलंगाना में बीजेपी एक कदम आगे और दो कदम पीछे जाती दिखाई दे रही है। 2009 के चुनाव में संयुक्त आंध्र प्रदेश में बीजेपी के दो विधायक जीते थे। इसमें 2014 में निज़ामाबाद शहरी से चुनाव लड़ने वाले मौजूदा विधायक लक्ष्मी नारायण हार गए। 2014 में टीडीपी के साथ गठबंधन करने वाली बीजेपी ने 45 सीटों पर चुनाव लड़ा और केवल 5 सीटें जीत हासिल की। इसके बाद 2018 के चुनाव में टी राजा सिंह को छोड़कर बाकी सभी सीटिंग उम्मीदवार हार गए। 105 सीटों पर बीजेपी की जमानत जब्त हो गई। यही पार्टी निर्माण की विफलता का उदाहरण है।

भाजपा में गुटबाजी

2019 के संसदीय चुनाव में बीजेपी ने तेलंगाना में चार सीटें जीतीं। लेकिन मैदानी स्तर पर बीजेपी के पास इन चार संसदीय सीटों के अंतर्गत आने वाली 28 विधानसभा सीटों पर विधायकों को खड़ा करने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार नहीं हैं। फिलहाल बीजेपी कम से कम 8 सीटें जीतने की स्थिति में भी नहीं है। इन 28 सीटों पर कितने मजबूत उम्मीदवार हैं? 2019 के संसद चुनावों के बाद कई नेता कांग्रेस, बीआरएस और अन्य दलों से भाजपा में शामिल हुए। राष्ट्रीय नेतृत्व में शामिल हुए कई नेताओं को बीजेपी काफी तवज्जो दे रहा है और उन्हें पद भी दे रहा है। मगर अब तक राष्ट्रीय नेतृत्व ने एक बार भी इसकी समीक्षा नहीं की है कि जिन नेताओं को पद मिले हैं, उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में नहीं, बल्कि अपने जिलों में पार्टी को मजबूत करने के लिए क्या किया है। बीजेपी में शामिल होने वाले नये नेता अपनी पुरानी गंध नहीं छोड़ पा रहे हैं और अनुशासन का दूसरा नाम कहे जाने वाले भाजपा में गुटबाजी कर रहे हैं। यह देख शुरू से ही भाजपा के सिद्धांत पर काम कर रहे नेता और कार्यकर्ता बेहद असंतुष्ट हैं।

उल्लेखनीय विधायक उम्मीदवार नहीं

इसके अलावा बीजेपी तेलंगाना के लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप काम करने में पूरी तरह से विफल रही है। भले ही वे हुजूराबाद और दुब्बाका उपचुनाव जीत गए, लेकिन पिछले उपचुनावों से यह स्पष्ट हुआ कि यह उम्मीदवारों की ताकत थी, न कि भाजपा की ताकत। बीआरएस जनता के इस संदेह को भी दूर नहीं कर सकी कि भाजपा की ‘बी’ टीम है। नतीजा भाजपा पूरी तरह से ठंडी होती जा रही है। यह तथ्य कि भाजपा के पास कम से कम 90 निर्वाचन क्षेत्रों में कोई उल्लेखनीय विधायक उम्मीदवार नहीं है। यह पार्टी की विफलता का प्रमाण है। इसके साथ ही यह सवाल बन गया है कि क्या वर्तमान में भाजपा के चार सांसद अपने क्षेत्र में कम से कम चार विधायक सीटें जीता सकते हैं। मैदानी स्तर पर मौजूदा हालात पर नजर डालें तो बीजेपी सिंगल डिजिट में सिमटती नजर आ रही है।

वाजपेयी ने कहा…

तेलंगाना में बीजेपी का यह पतन अपने आप यानी ख़रीद कर लाया गया है। दिसंबर 1980 में आयोजित भाजपा की पहली बैठक में वाजपेयी ने कहा, “भाजपा एक अनोखी पार्टी है। जनता के मन में विश्वसनीयता कायम करके ही हम पार्टी बना सकते हैं। लोगों को हमारी पार्टी को राजनीतिक मंच पर बैठे स्वार्थी नेताओं के समूह से अलग करने में सक्षम होना चाहिए। नेताओं को यह नहीं सोचना चाहिए कि पद ही हमारा लक्ष्य है। भाजपा में उन नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है जो हमारे कुछ मूल्यों के आधार पर पदों, स्थितियों और वित्तीय लाभों के लिए पागलों की तरह दौड़ते हैं।”

बीजेपी में मौजूदा हालात

तेलंगाना के नेताओं ने अपनी मजबूत विचारधाराओं के साथ भाजपा की विशिष्टता को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया है। बीजेपी में मौजूदा हालात जिसे अनुशासन कहा जाता है, उससे अलग है। प्रदेश पार्टी के नेताओं ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी में नंबर 2 की हैसियत रखने वाले अमित शाह पर कई आरोप लगाए हैं। लेकिन वे कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं कर पाए हैं। तथ्य यह है कि नए अध्यक्ष किशन रेड्डी के शपथ ग्रहण समारोह में कई नेताओं ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपनी नाराजगी व्यक्त की। यही कारण है कि पार्टी में उथल-पुथल अभी भी जारी है। फार्म हाउस खरीद प्रकरण, ग्रुप पॉलिटिक्स, ये सब ऐसी राजनीति है जो वाजपेई के बताये मूल सिद्धांतों के विपरीत जा रही है। इसका परिणाम ही तेलंगाना में बीजेपी के पतन का मुख्य कारण है!

वामपंथी

अब तेलंगाना के सशस्त्र संघर्ष में अहम भूमिका निभाने वाली वामपंथी पार्टियाँ इस समय अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं। 2009 में टीडीपी और बीआरएस पार्टियों के साथ गठबंधन में सीपीआई (एम) ने एक सीट जीती और सीपीआई ने चार सीटें जीतीं। 2014 में राज्य के विभाजन के बाद, सीपीआई (एम) ने वाईसीपी के साथ गठबंधन किया और सीपीआई-कांग्रेस ने एक-एक सीट जीती। बाद में सीपीआई विधायक रवींद्र कुमार पार्टी से अलग हो गए और बीआरएस में शामिल हो गए। जैसा कि वामपंथ के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। तेलंगाना के विभाजन के बाद सीपीआई (एम) कैडर बिखर गया और 2018 के चुनावों से पहले सीपीआई (एम) के नेतृत्व में एक नया बीएलएफ गठबंधन बनाया गया। सीपीआई (एम) के राज्य सचिव तम्मीनेनी वीरभद्रम ने ‘महाजन पदयात्रा’ के नाम पर लगभग 3 हजार किलोमीटर की यात्रा की है, लेकिन पार्टी को कोई फायदा नहीं हुआ। फिर भी उनकी आंतरिक समीक्षाओं में बीएलएफ के गठन को पार्टी की गलती के रूप में पुष्टि की गई और इसकी सराहना की गई। बीएलएफ फिलहाल सीपीआई (एम) और सीपीआई पार्टियों का वोट बैंक पूरी तरह खत्म हो चुका है। उनके पास कोई सहायता समूह नहीं है। सीपीआई ने कांग्रेस, टीडीपी और टीजेएस के महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था। चाहे उन्होंने कितना भी प्रयास किया हो, दोनों पक्षों के प्रयास विफल रहे। चूंकि दोनों दलों ने एक भी सीट नहीं जीती। इसलिए विधानसभा में प्रतिनिधित्व भी नहीं रहा। यहां तक ​​कि नलगोंडा और खम्मम के संयुक्त जिलों में जो वाम दलों के गढ़ हैं। उनके लिए कोई उम्मीद नहीं है।

मजलिस पार्टी

मजलिस पार्टी ने घोषणा की है कि वह अगले चुनाव में 50 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस बात की काफी आलोचना हो रही है कि एमआईएम पार्टी बीआरएस के फायदे के लिए ‘बी’ टीम बन गई है। वैसे भी मजलिस पार्टी पिछली बार जीती सात सीटों के अलावा इस बार दस सीटें तक जीतने की योजना बना रही है। आगामी चुनाव में मजलिस को चार फीसदी वोट मिलने की संभावना है और सीटें भी बढ़ने की उम्मीद है।

बसपा

सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी आरएस प्रवीण कुमार के नेतृत्व वाली बसपा तेलंगाना में पहले की तुलना में मजबूत है। प्रदेश में बसपा की कमान संभालने के बाद उन्होंने गांव-गांव तक बसपा को फैलाने की पूरी कोशिश की। खासकर पढ़े-लिखे युवा उनकी ओर आकर्षित होते हैं। लेकिन बीएसपी पार्टी को आने वाले ज्यादातर वोट कांग्रेस पार्टी से हैं। बसपा को जो वोट मिल रहे हैं उससे कांग्रेस पार्टी को कुछ हद तक नुकसान होगा। दलित वर्गीकरण का असर निश्चित तौर पर बसपा पर पड़ा है। हालाँकि, दलितों का एक ही वर्ग प्रवीण कुमार के साथ हाथ मिला रहा है। अगर प्रवीण कुमार सही पद चुनकर चुनाव लड़ते हैं तो उनके पास जीतने का मौका है।

वाईएसआरटीपी

भले ही वाईएसआरटीपी अध्यक्ष वाईएस शर्मिला ने राज्य भर में ऐसी पदयात्रा की है, जैसी किसी अन्य महिला ने नहीं की, लेकिन पार्टी को लोगों की ओर से संतोषजनक समर्थन नहीं मिला है। पार्टी सिर्फ मीडिया में मौजूद है। यहां तक ​​कि पालेरू निर्वाचन क्षेत्र में भी, जिस पर उन्होंने विशेष ध्यान दिया है, स्थितियां बिल्कुल भी अनुकूल नहीं हैं। अब तेलंगाना में टीडीपी नाममात्र की हो गई है। भले ही खम्मम में एक बड़ी सार्वजनिक बैठक आयोजित की गई और भीड़ उमड़ी, लेकिन तेलंगाना में पार्टी के किसी भी नेता ने इसको गंभीरता से नहीं लिया। इस पार्टी के वोटर बीआरएस में शामिल हो गए हैं।

कांग्रेस और बीजेपी की विफलता

विपक्षी दलों के तौर पर कांग्रेस और बीजेपी की विफलता के क्या कारण हैं? इस सवाल का जवाब हमें बीजेपी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी की बातें याद आती हैं। “इस सृष्टि के सभी प्राणियों में लेमिंग्स नामक मूसिका को सामूहिक आत्महत्या करने की लक्ष्यण होते है। जनता पार्टी में नेताओं के आचरण की तुलना मुझे किसी अन्य प्राणी में नहीं मिली।” जनता पार्टी के पतन से आडवाणी की तुलना अब तेलंगाना में कांग्रेस और भाजपा नेताओं पर लागू होती है। क्योंकि लोग किसान ऋण माफी, डबल बेडरूम, बेरोजगारी लाभ, बीसी को ऋण जैसे कई पहलुओं में बीआरएस का कड़ा विरोध कर रहे हैं। लेकिन पिछले साढ़े नौ वर्षों में भाजपा और कांग्रेस लोगों की भावनाओं पर विचार करने में विफल रही हैं। उन्होंने आन्दोलन खड़ा करने और लोगों को अपनी ओर मोड़ने का प्रयास नहीं किया। आत्महत्या करने जैसी गुटबाजी और गुटबाजी राजनीति के साथ समय गुजार रहे हैं।

अंदरूनी कलह

यदि सार्वजनिक मुद्दे आंदोलन का एजेंडा नहीं हैं, तो अगले चुनाव में बीआरएस का कोई भी दल मुकाबिला नहीं कर पाएगा। सही तरीकें से जनता के मुद्दों पर संघर्ष नहीं करते है, तब तक किसी भी दल को फायदा नहीं होगा। जरूरत है अंदरूनी कलह को किनारे रखकर तत्काल एक्शन दिखाने की है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X