हैदराबाद : सुप्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था साहित्य सेवा समिति की 120 वीं मासिक गोष्ठी सम्पन्न हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रमुख साहित्यकार सत्य प्रसन्न ने किया। कार्यक्रम का आरम्भ अर्चना चतुर्वेदी सरस्वती वंदना से हुई। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई। प्रथम सत्र में में “हिंदी कविता में ग़ज़ल की परंपरा” विषय रहा है। इस पर अपने विचार रखते हुए डॉ अर्चना पांडे और मुख्य वक्ता सुनीता लुल्ला ने अपने ज्ञानवर्धक वक्तव्य से मंच को मोहित कर दिया। इन वक्ताओं ने गजल की परंपरा पर प्रकाश डालते हुए कई अनमोल जानकारियां दी।
डॉ अर्चना पांडे ने विषय के अंतर्गत गजल की संभावनाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि ग़ज़ल की परंपरा हिंदी के साथ मिली हुई थी अर्थात यह बताना मुश्किल है कि यह विद्या कब शुरू हुई। हालांकि गजल खूबी यह है कि इसमें कविता व गीत की लय बध्यता है। हिंदी और उर्दू सहोदर भाषाएं हैं। दोनों भाषाएं एक ही मां की संतान है। दोनों एक सामाजिक वातावरण में पली और बढ़ी है। इसलिए इनमें बहुत समानता है। मात्रा भार पर भी प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि नदी के बहाव की तरह ग़ज़ल की धारा में कालांतर से कुछ-कुछ जुड़ता गया और आज गजल एक प्रसिद्ध विद्या के रूप में प्रचलित और प्रसिद्ध हो गया।
कवि और साहित्यकार सुनीता लुल्ला ने इसी धारा को आगे बढ़ते हुए कहा कि जैसे हम पानी पर लकीरें नहीं खींच सकते वैसी ही स्थिति हिंदी और उर्दू की है। उन्होंने कई गहरे तत्व को सामने रखते हुए कहा कि पहले गजल का अर्थ होता था कि महबूबा की तारीफ करना। हालांकि जब यह चलते-चलते भारतीय सीमा के में दाखिल हुई तो हमारे कवियों ने उसे बराबर अपने सांचे में डालने की कोशिश की। आज वह हर परिस्थिति पर लिखी जाती है। साथ ही उन्होंने कहा “कबीर के गजलों में भक्ति का सोंधापन है।उन्होंने कबीर की चंद पंक्तियां पेश कर शमां बांध दिया। उन्होंने छंद शास्त्र की गरिमा का बखान करते हुए भी कई अनमोल जानकारियां दी।
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उन्होंने दुष्यंत कुमार जी को याद करते हुए कहा कि जब भी गजल का इतिहास लिखा जाएगा, उनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा। अपनी रचनाओं के द्वारा उन्होंने बहुत सरल सहज शब्दों में कठोर से कठोर बात कह कर समाज को आईना दिखाने की कोशिश की। साथ यह भी कहा कि यदि आज दुष्यंत कुमार जीवित होते तो साहित्य की दुनिया ही अलग होती। अपने वक्तव्य को आगे बढ़ते हुए सुनीता लुल्ला कुरेशी साहब को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि इन्होंने हिंदी पाठ्यक्रम में गजल को जोड़ने की कोशिश की जो अपने आप में एक मिसाल है। उन्होंने कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि उनसे मिलना, उनका शिष्य बनना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। उन्होंने गजल के प्रति कुछ दुर्भावनाओं पर भी प्रकाश डाला और चिंता व्यक्त की। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए उन्होंने नीरज जी की कुछ पंक्तियां सुना कर सबों को मुग्ध कर दिया।
सत्य प्रसन्न ने कहा कि गजल के शुरुआती तेवर अब बदलने लगे हैं। हिंदी और उर्दू में कही जाने वाली गजल में जो मिठास होती है वह किसी और भाषा में देखने को नहीं मिलती है। हरिवंशराय बच्चन, जावेद अख्तर, गोपाल दास, नीरज, साहिर लुधियानवी की लिखी हुई गजले व गीत दुनियाँ पागल कर दिया है। शायद इसीलिए लोग आज भी पंक्तियों को गुनगुनाता है। कार्यक्रम का दूसरा सत्र कवि सम्मेलन का था। मंच पर 15 कवि उपस्थित थे। सभी ने अपनी-अपनी कविताएं सुनाई। स्पष्ट के परे गहन यथार्थ का भी वर्णन किया। इसीलिए ऋषि मुनियों को मंत्र दृष्टा और कवियों को क्रांति दृष्टा कहा गया है। इस कवि सम्मेलन से लग रहा था कि जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि।
दूसरे सत्र की शुरुआत में संचालन सुनीता लुल्ला किया। कार्यक्रम की शुरुआत मंजू राठी की कविता से हुई। जिन्होंने बसंत की फुहास विखेरते हुए मां के वजूद को परिलक्षित किया। वहीं उमेश यादव ने लुगाई पर एक हास्य रचना प्रस्तुत की और मंच को गुदगुदा दिया। इंदु सिंह ने जिंदगी और मौत पर चंद पंक्तियों में अपने गहरे चिंतन को व्यक्त किया और अच्छा जीवन दर्शन प्रस्तुत किया। वहीं दर्शन सिंह ने अपनी पंक्तियों पर बारिश की बूंदों की पीड़ा को दर्शाते हुए बताया आसमान में जाकर जमीन पर गिरने का दर्द क्या होता है। वहीं सुषमा देवी ने भावों के धागों में शब्द की माला पिरोकर अपनी रचना पेश कर साहित्य की गरिमा बनाए रखने की अपील की। वहां विनोद ने देशभक्ति पर बहुत मार्मिक कविता पेश कर सबों को भावुक कर दिया।
मंजू भारद्वाज ने अपने को खुद से लड़कर खुद को इंसान बनना पड़ता है। जैसी पंक्तियां के साथ इंसानियत पर बहुत शानदार कविता पढ़ी। जिसमें उन्होंने अंतर युद्ध की बहुत सुंदर विवेचना की। ज्योति नारायण ने बसंत को शिरोधारे करते हुए दोहों के द्वारा मां वीणा वादिनी का अभिवादन किया और साथ ही अपने भावों के तार से पिरोकर खूबसूरत गजल पेश की। बैजनाथ सुनहरे ने शुरुआत बहुत सुंदर दोहे से किया जो काफी प्रेरणादायक थी। उन्होंने पुरुष की विडंबना बताते हुए कहा कि मेहनत पुरुष करता है श्रेय नारियां ले जाती है यही जीवन का सत्य है। दया शंकर ने वीर वधुओं की पीड़ा को और उनकी वीरता को शब्द देते हुए अपनी रचना को मुखरित किया। विनीता शर्मा ने बसंत और पतझड़ की बहुत ही खूबसूरत विवेचना की। शब्दों का चयन और भाषा के अभिव्यक्ति बहुत ही शानदार थी।
वही उमा सोनी ने मां शारदा की वंदना करते हुए गीतिका सुनाई। मैं हूं हिंदुस्तान की बेटी फौलादी नाम है। मेरा अपनी रचनाओं से उन्होंने मंच पर जोश भर दिया। सुनीता लुल्ला ने प्रेम भरा मुक्तक सुनाया। इस प्रेम की धारा को उन्होंने अपनी अगली प्रस्तुति गजल में भी प्रस्तुत किया। उनकी प्रस्तुति ने उनके भाव ने सबों के दिल को छू लिया। और अंत में अध्यक्ष सत्य प्रकाश प्रसन्न ने प्रणय ग्रंथ का प्रथम पृष्ठ है उपसंहार नहीं है। जैसी शानदार पंक्तियों से शुरुआत की। उन्होंने अपनी कविता से मंच को भाव विभोर कर दिया। बहुत ही सुंदर भाव और बहुत ही सुंदर शब्दों की कारीगरी उनकी रचना में परिलक्षित हुई। मंजू भारद्वाज ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।