युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच: रामकिशोर उपाध्याय बोल- “वर्तमान से मुठभेड़ करती सशक्त कविताएं”

हैदराबाद: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की अष्टम ऑनलाइन संगोष्ठी शनिवार को आयोजित की गई। डॉ रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि आदरणीय सुप्रसिद्ध साहित्यकार / चित्रकार सुरेशपाल वर्मा जसाला ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कार्यक्रम का शुभारंभ युवा रचनाकार वसुंधरा त्रिवेदी के द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ।

तत्पश्चात अध्यक्षा डॉ रमा द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत किया एवं संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है। इस संस्था का उद्देश्य हिंदी साहित्य के प्रचार – प्रसार के साथ – साथ सभी भारतीय भाषाओँ का संवर्धन करना भी है। वरिष्ठ साहित्यकारों को पुरस्कृत करने एवं युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं सम्मानित करना है। सभी ललित कलाओं के उत्कर्ष हेतु प्रयास करना इसका लक्ष्य है।

प्रथम सत्र ‘अनमोल एहसास’ और ‘मन के रंग मित्रों के संग’ दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ। इस सत्र का संचालन युवा साहित्यकार शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वारा किया गया। प्रथम सत्र के प्रथम भाग अनमोल अहसास के अंतर्गत युवा साहित्यकार निखिल आनंद गिरि जी की पुस्तक, ‘इस कविता में प्रेमिका भी आनी थी’ पर परिचर्चा आयोजित की गई।

मुख्य वक्ता वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार रामकिशोर उपाध्याय (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने काव्य संग्रह की समीक्षा करते हुए कहा कि कवि निखिल आनंद गिरि युगीन चेतना और प्रवृत्तियों से पूर्णत: अवगत एक संवेदनशील व्यक्ति है। वह कविताओं के माध्यम से समाज में बदलाव का आह्वान कहीं खुलकर तो कहीं सांकेतिक भाषा में करता है। युवा कवि निखिल आनंद गिरि की कविताएं वर्तमान से मुठभेड़ करती दिखाई देती हैं। वे आज की परिस्थितियों और सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक विसंगतियों पर भी साहसपूर्ण ढंग से प्रहार करते हैं। कवि ने लोकरंजक भाषा में अभिधा, लक्षणा और व्यंजना का अच्छा प्रयोग किया है। उनकी कविताओं में लोक चेतना को प्रमुखता मिली है।

हालांकि माता-पिता, बहन-भाई और प्रेम जैसे विषयों पर उनकी कविताएं लीक से हटकर एक अलहदा किस्म की हैं जो उन्हें विशिष्टता प्रदान करती हैं। भावनाओं की कोमलता के स्थान पर यथार्थ के खुरदरेपन के अहसास के बावजूद कवि एक स्वप्नद्रष्टा की भांति वे इस संग्रह की कविताओं में आदर्श के वृत्त उत्कीर्ण करता है। शिल्प, कथ्य और प्रस्तुतिकरण की दृष्टि से मुझे उनकी कविताओं में जर्मन कवि रिल्के की झलक दिखाई देती है। इस संग्रह की कविताओं में उबाऊपन नहीं है। विषय नूतन और संदर्भ सारगर्भित होने के कारण कविताएं पाठक के मन पर एक स्थायी भाव छोड़ने में सफल होती हैं।

अतिथि वक्ता सुश्री नाजिश अंसारी जी ने समीक्षा करते हुए कहा कि निखिल आनंद गिरि बहुत ही सरल भाषा में सीधी- सीधी बात लिखने वाले कवि है। वे जो भी लिखते है वो बात सीधे मन को छूती है। आप सच बोलने से कभी नही कतराते और बिना कुछ छुपाए लिख देते है। समीक्षित कृति के कवि निखिल आनंद गिरि ने सभी के प्रश्नों का समाधान किया तथा इस परिचर्चा में प्रवीण प्रणव, सुनीता लुल्ला एवं डॉ रमा द्विवेदी ने अपने-अपने विचार रखे और रचनाकार को शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।

तत्पश्चात मन के रंग मित्रों के संग में सुपरिचित रचनाकार भावना मयूर पुरोहित जी ने अपने संस्मरण में अपना अनुभव साझा किया और कहा कि मुझे उस कविता में पुरस्कार मिला जिस कविता को मैंने कॉलेज में अच्छे अंक न मिलने पर लिखा था। अध्ययक्षीय उद्बोधन में सुप्रसिद्ध साहित्यकार/चित्रकार सुरेशपाल वर्मा जसाला ने कहा कि साहित्यकार वही है जो पूरे समाज से जुड़ा हो और हर क्षेत्र पर बारीकी से लिखता हो। साहित्य के प्रचार – प्रसार के लिए साहित्यकारों को गुटबाजी से बाहर निकलकर मिलजुल कर कार्य करना चाहिए और युवाओं को आगे बढ़ाने हेतु उनका उचित मार्गदर्शन और प्रोत्साहन देना चाहिए। तत्पश्चात अध्यक्षीय काव्यपाठ किया एवं सफल कार्यक्रम की शुभकामनाएं दी।

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। संचालन दीपा कृष्णदीप द्वारा किया गया। उपस्थित रचनाकारों ने विविध रसों से युक्त, ग़ज़ल, गीत, मुक्तक, हाइकु, कविता, दोहे आदि का काव्य पाठ करके माहौल को खुशनुमा बना दिया। डॉ सुरभि दत्त ,भावना पुरोहित, शिल्पी भटनागर, सविता सोनी, विनोद गिरि अनोखा, दर्शन सिंह, डॉ सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, निखिल आनंद गिरि, विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष), सरला प्रकाश भूतोडिया, डॉ जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), सी पी दायमा, किरण सिंह, तृप्ति मिश्रा, राम किशोर उपाध्याय, प्रवीण प्रणव, डॉ सुपर्णा मुखर्जी, डॉ संगीता शर्मा, नाजिश अंसारी ने काव्य पाठ किया। रमाकांत श्रीवास, डॉ आशा मिश्र, प्रदीप शर्मा (भुवनेश्वर) मोहिनी गुप्ता, डॉ पी के जैन और अन्य साहित्यकार उपस्थित थे। वरिष्ठ साहित्यकार सुनीता लुल्ला (सयुक्त सचिव) ने आभार ज्ञापित किया।

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