सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था: राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के रचना-संसार पर गोष्ठी

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत की ओर से गत दिनों 17 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया। तत्पश्चात् ज्योति नारायण की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई थी।

प्रथम सत्र में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी के रचना-संसार पर परिचर्चा प्रारम्भ करते हुए कटक, उड़ीसा से श्रीमती रिमझिम झा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जिनके नाम में ही राम और दिनकर का ओज समाया हुआ है, वे कितने तेजस्वी और पराक्रमी कवि होंगे, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। सुश्री सुदेशना समन्ता ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जहां तक मैंने दिनकर जी को जाना और समझा है, वे लौह पुरुष और युगदृष्टा थे। उनकी कविताओं में राष्ट्रप्रेम की धारा बहती है। दर्शन सिंह जी ने कहा कि दिनकर जी की राष्ट्रीय और ऐतिहासिक चेतना प्रखर है। वे क्रान्ति के उपासक हैं, उनकी कविताओं में ओजपूर्ण भाव समाया हुआ है। नेपाल से गोष्ठी में जुड़ीं श्रीमती करुणा झा ने कहा कि स्कूल के समय से ही दिनकर उनके प्रिय कवि रहे हैं। उन्होंने भारत की दुर्दशा का बहुत सुन्दर चित्रण किया है। उनके काव्य में कर्म की प्रधानता है। वे आज भी उनकी ‘रश्मिरथी’ पढ़ती हैं।

राष्ट्रीय जागरण और राष्ट्र प्रेम की भावना

श्रीमती ज्योति नारायण ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके पास दिनकर द्वारा हस्ताक्षरित कृतियां आज भी मौजूद हैं। उन्हें दिनकर जी की कविता-ढीली करो धनुष की डोरी/तरकश का कश खोलो/किसने कहा, युद्ध की बेला गई शान्ति से बोलो, बहुत अच्छी लगती है। सरिता सुराणा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले में सिमरिया गांव में हुआ था। प्रगतिवादी कवियों में उनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने राष्ट्रीय जागरण और राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित करने के लिए अनेक रचनाएं लिखीं। कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, उर्वशी, धूपछांह आदि उनके प्रमुख प्रबन्ध काव्य हैं। रेणुका, हुंकार, सामधेनी, आत्मा की आंखें, चक्रवात, नील कुसुम और हारे को हरिनाम उनके मुक्तक काव्य हैं। मिट्टी की ओर, रेती के फूल और भारतीय संस्कृति के चार अध्याय उनकी प्रमुख गद्य रचनाएं हैं। उनकी कविताओं में शोषण के विरुद्ध विद्रोह की भावना है तो राष्ट्रवाद की भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई है। उनकी भाषा खड़ी बोली हिन्दी है और शैली सहज प्रवाहमयी है। उनकी कविताओं में अलंकारों की छटा देखते ही बनती है।

काव्य गोष्ठी

द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ करते हुए लखनऊ, उत्तर-प्रदेश से माधुरी मिश्रा ने दिनकर जी की कविता- थककर बैठ गए क्यों भाई/मंजिल दूर नहीं है, का पाठ किया। भावना पुरोहित ने- हिमालय प्रवास में/बस के बाहर बहार/सौन्दर्य ही सौन्दर्य रचना का पाठ करके माहौल को प्राकृतिक रूप में ढाल दिया। बिनोद गिरि अनोखा ने भ्रूण हत्या पर भोजपुरी भाषा में बहुत ही भावपूर्ण रचना का सस्वर पाठ किया। संतोष रजा गाजीपुरी ने वृद्ध माता-पिता की पीड़ा को अपनी गज़ल- मेरे बच्चों गुज़ारिश है बस इतनी बात कर देना का पाठ करके सबको भावविभोर कर दिया। दर्शन सिंह ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अपनी रचना- सत्य/तुम्हें लिखना तो चाहता हूं/दिल बहुत घबराता है का पाठ किया।

धन्यवाद ज्ञापन

नेपाल से गोष्ठी में सम्मिलित डॉ.करुणा झा ने नारी मन की व्यथा को शब्दबद्ध करके अपनी रचना प्रस्तुत की- मत पूजो मुझे देवी रूप में। डॉ. संगीता शर्मा ने- बारिश की मैं वो बूंद हूं/सेहरा पर निशान/टेढ़े-मेढ़े रास्ते, रचना को बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया। ज्योति नारायण ने दिनकर जी को समर्पित अपनी रचना- हे अनिल अनल तुम गरजो रे/घन गहन मेघ बन बरसो रे, रचना का सस्वर पाठ किया। सरिता सुराणा ने अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए दिनकर जी की कविता, शक्ति और क्षमा का वाचन किया- क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल/सबका लिया सहारा/पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे/कहो/ कहां कब हारा? ज्योति नारायण ने काव्य गोष्ठी का कुशल संचालन किया और अन्त में उनके धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

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