निजाम शासनकाल के दौरान हैदराबाद में आर्य समाज ने हिन्दी भाषा को प्रोत्साहित करने का बहुत काम किया। इसका मुख्य कारण आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि स्वामी दयानन्द जी ने कहा कि हिन्दी ही सम्पूर्ण भारत की राष्ट्र भाषा होनी चाहिए। उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं को हिन्दी में लिखकर और प्रकाशित कर विश्व को हिन्दी भाषा का महत्व समझाया।
निजाम के शासनकाल में आर्य समाज को हिंदी के लिए बहुत ही संघर्ष करने आगे आना पड़ा। उस समय दक्षिण भारत में हिन्दी का प्रचलन लगभग नहीं के बराबर था। आर्य समाज के प्रभाव से यहां पर हिन्दी में संवाद होने लगे और शिक्षा के क्षेत्र में केशव स्मारक आर्य विद्यालय की स्थापना हुई। वैसे तो आर्य समाज द्वारा गुरुकुलों की भी स्थापना की गई। इस प्रकार हिन्दी का महत्व बढ़ता गया। अभिमान पूर्वक हिन्दी निजाम शासन काल में ही बोलचाल की भाषा बन गई थी।
पंडित गंगाराम जी
केशव स्मारक आर्य विद्यालय को जो इस समय केशव स्मारक विद्यालय कहा जाता है, इसकी स्थापना में पंडित विनायकराव जी विद्यालंकार के नेतृत्व में हुई थी, जिसमें युवा आर्य क्रांतिवीर नेता पंडित गंगाराम जी ने सक्रिय भाग लिया और वे इसके संस्थापक सदस्य भी रहे है। इस विद्यालय के प्रारम्भिक वर्षों में वे स्वयं विद्यार्थियों को भी पढ़ाया करते थे।
निजाम शासन द्वारा इन पर जबान बन्दी के कारण कुछ वर्षों के लिए कार्य करने पर रोक लग गई थी। परन्तु वे संस्था से वानप्रस्थाश्रम ग्रहण करने तक जुड़े रहे और अपनी सेवाएं निस्वार्थ भाव से निरन्तर देते रहे। चाहे वह कार्यकारी सदस्य के रूप में हो या कानूनी सलाहकार के रुप में। आर्य समाज के सम्पर्क में आने पर ही इन्हें हिन्दी की धुन इस प्रकार लगी कि वे हिन्दी के प्रचार प्रसार में जुड़ गए।
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हिन्दी के विकास और हिन्दी में उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने हिन्दी में सर्वप्रथम दक्षिण भारत में हिन्दी महाविद्यालय की स्थापना की और इसके संस्थापक मंत्री रहे। यहां भी पंडित गंगाराम जी का योगदान बहुत महत्वपूर्ण रहा है। वे दयानन्द उपदेशक महाविद्यालय के संस्थापक मंत्री भी रहे और दक्षिण भारत में इस तरह का यह पहला उच्चस्तरीय प्रशिक्षण संस्थान रहा है। उनकी सेवाएं दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए कभी भी भूला नहीं जा सकता।
पंडित गंगाराम जी की मातृभाषा मराठी होने पर भी हैदराबाद में निजाम शासनकाल के कारण उन्हें उर्दू में पढ़ाई करनी पड़ी। हालांकि उन्होंने अंग्रेजी में उच्च शिक्षा प्राप्त की, परन्तु हिन्दी के प्रति उनका प्रेम, निष्ठा, समर्पण, प्रचार, प्रसार अनमोल रहा है। वकालत करते हुए भी इन्होंने हिन्दी में “वर्णाश्रम पत्रक” नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन और प्रकाशन किया। इसकी लगभग 5,000 प्रतियां भारतवर्ष के सभी कोनों में भेजी जाती थी। इस पत्रिका में गागर में सागर भरने के समान कई विषयों की चर्चा की जाती थी।
पंडित गंगाराम जी ने अपने हस्ताक्षर हमेशा हिन्दी में ही किए और सभी को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया। आज इस विश्व हिन्दी दिवस पर हम सब पंडित गंगाराम जी के योगदान और उनके द्वारा दक्षिण भारत में हुए हिन्दी के कार्यों को स्मरण करते हैं। साथ ही यह आशा करते हैं कि दक्षिण भारत की इस भूमि पर हिन्दी और भी विकसित और प्रफुल्लित होगी और होती रहेगी।
भक्त राम, अध्यक्ष पण्डित गंगाराम स्मारक मंच