कादंबिनी क्लब की 346 वीं मासिक गोष्ठी संपन्न, इन वक्ताओं ने व्यक्त किये अपने विचार

हैदराबाद : कादंबिनी क्लब हैदराबाद के तत्वावधान में गूगल मीट पर क्लब की 346वीं मासिक गोष्टी का सफल आयोजन किया गया। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्ष) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने आगे बताया कि सर्वप्रथम शुभ्रा महंतो द्वारा निराला रचित सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी गई।

डॉ अहिल्या मिश्र ने कहा…

तत्पश्चात् डॉ अहिल्या मिश्र ने सभा का स्वागत करते हुए कहा कि ऑनलाइन के माध्यम से यह क्लब की 14वीं गोष्ठी है। लॉकडाउन और कोरोना की विकट परिस्थितियों में नियमों का पालन करते हुए हमें परिस्थितियों का डटकर सामना करना है। फिर से एक नई सुबह का हम सभी को इंतजार है। इस बीच हमने अपने कई वरिष्ठ साहित्यकारों को खोया है जिनकी कमी हमें हमेशा महसूस होती रहेगी।

दिवंगत आत्माओं के प्रति 1 मिनट का मौन

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गुणमाला सोमानी और हास्य व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर सुरेश जैन ने हमसे सदा के लिए विदा ले लिया है। इनकी साहित्यिक सेवाएँ हम सदैव याद रखेंगे। प्रवीण प्रणव ने कहा कि विगत माह हमने कुँवर बेचैन के स्वास्थ्य ठीक नहीं होने की सूचना दी थी और इस माह उनके हमारे बीच न होने का समाचार देना पड़ रहा है। निश्चित ही मन कहीं उदास हो जाता है जब अपने किसी करीबी साहित्यकार को हम खो देते हैं। दिवंगत आत्माओं के प्रति 1 मिनट का मौन रखते हुए उपस्थित सभा की ओर से श्रद्धांजलि दी गई।

डॉ मदन देवी पोकरना ने कार्यक्रम की अध्यक्षता

इस अवसर पर डॉ मदन देवी पोकरना ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। प्रथम सत्र में प्रोफेसर गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद) ने काव्य भाषा विषय पर अपना प्रपत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि काव्य , कविता , लोकगीत आदि विधाओं के माध्यम से हर व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति देना चाहता है । कवि हो या कलाकार अपनी अभिव्यक्ति से वह तनाव से मुक्ति ही नहीं पाता बल्कि ऊर्जा और जीवन में जीवंतता का अनुभव करता है। काव्य की अपनी भाषा शैली होती है। वह मानक को नहीं मानती। अभिधा, व्यंजना काव्य में देखने को अवश्य मिलते हैं, जैसे कलियाँ खिलखिला रही हैं। व्यक्ति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त करता है और आनंद की अनुभूति करता है। रस, छंद, अलंकार काव्य में होते ही हैं यदि यह ना हो तो कविता ही क्या? पद्यनाट्य, पथनाट्य, पोवाडा ये भी काव्य के प्रकार हैं। हाइकु कविता की संक्षिप्त रूप है पर प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।

काव्य मनुष्य हृदय को झंकृत करता है

इस अवसर पर प्रोफेसर वानोडे ने प्रो ऋषभ देव शर्मा की “रिश्तों में जम चुकी..” और “वह कौन है जो ना आएगा..”, चित्रा गुप्ता के दोहे “पंख सलोने खोलकर..”, डॉक्टर रमेश की “दर्दों का घेरा..” के उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने आगे कहा कि साधु-संतों ने भी समय-समय पर काव्य की प्रस्तुति दी है। कवि एक पर्याय हैं जो इस समाज को आगे बढा सकता है। परिस्थिति के अनुसार हम काव्य सृजन करते हैं। कवि के शब्दों में शक्ति होती है, वेदना होती है, क्रांति होती है। काव्य मनुष्य हृदय को झंकृत करता है, सोए हुए को जगाता है, जन जागृति का माध्यम बनता है।

अवधेश कुमार सिन्हा का सवाल और डॉ अहिल्या मिश्र का समाधान

अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली) ने अपना पक्ष रखते हुए पूछा कि संप्रेषणीयता का क्या महत्व है। इस पर डॉ अहिल्या मिश्र ने समाधान देते हुए कहा कि कविता में कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहने की कला होती है। छंद का महत्व घटने लगा है लेकिन आज भी छंद का निर्वाह होता है। आज हम राजेश जोशी की कोई कविता उठाते हैं तो जो बात वो कहना चाहते हैं पाठकों तक पहुँच ही जाती है। यही संप्रेषणीयता है। अपनी बात प्रभावकारी ढंग से कहना ही संप्रेषणीयता है।

प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा ने कहा…

प्रोफेसर ऋषभ देव शर्मा ने प्रथम सत्र की टिप्पणी में कहा कि भारी मन से आज हमने गोष्ठी का प्रारंभ किया। दिवंगत आत्माओं के प्रति मेरी भी व्यक्तिगत श्रद्धांजलि। प्रो वानोडे ने बहुत ही संक्षेप में बड़े सटीक ढंग से काव्य भाषा को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से रखा। अहिल्या जी तो काव्य भाषा की विशेषज्ञ ही हैं। काव्य भाषा सामान्य भाषा से अलग होती है लेकिन उसका आधार सामान्य भाषा ही होती है। मानक को तोड़ने से पहले उसे आत्मसात करना पड़ता है। “जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख…” का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि सामान्य भाषा का आधार लेकर सौंदर्य और संप्रेषणीयता को चुनौती झेलनी पड़ती है। यही जीवन के परिवेश की सच्ची समझ होती है। “बेस्ट वर्ड्स इन बेस्ट ऑर्डर”। रचनाकार को स्वयं संतोष हो कि जो क्रम उन्होंने चुना है वह उत्तम है। बहुत ही सार्थक और सफल संगोष्ठी सत्र रहा।

कवि गोष्ठी का आरंभ

संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रवीण प्रणव ने दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का आरंभ किया। किरण सिंह, विनीता शर्मा, भावना पुरोहित, नरेंद्र सिंह दीपक, बी बालाजी, मीनू कौशिक (दिल्ली), दर्शन सिंग, संतोष रजा, जी परमेश्वर, भंवरलाल उपाध्याय, प्रदीप भट्ट, डॉ सुरेश कुमार मिश्रा, आशीष नैथानी (मुंबई), ज्योति नारायण, मोहित, आदित्य कुमार, संगीता शर्मा, मधु भटनागर, सुनीता लुल्ला, चंद्रप्रकाश दायमा, तृप्ति मिश्रा, डॉक्टर आशा मिश्रा ‘मुक्ता’, अवधेश कुमार सिन्हा, मीना मुथा, प्रवीण प्रणव, सत्यनारायण काकड़ा, डॉक्टर अहिल्या मिश्र, डॉ रमा द्विवेदी, ऋषभ देव शर्मा, मुरली मनोहर भटनागर, डॉ मंजू शर्मा, चैतन्य वशिष्ठ, गंगाधर वानोडे, शुभ्रा महंतो ने गीत, कविता, गजल, दोहे, व्यंग्य, कथा, हाइकु आदि विधाओं में समसामयिक विषयों पर रचनाएँ सुनाईं। बाल कविता “ईश्वर से प्रार्थना..” की भी सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति हुई।

काव्य पाठ में वैविध्य

डॉक्टर मदन देवी पोकरना ने अध्यक्षीय बात रखते हुए कहा कि विकट परिस्थितियों में हमें मिलजुलकर डटकर परिस्थितियों का सामना करना है। साहित्य के साथ तीन-चार घंटे कहाँ और कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। सभी रचनाकारों ने बहुत अच्छी रचनाएँ सुनाईं। काव्य पाठ में वैविध्य रहा। स्थानीय ही नहीं मुंबई दिल्ली से भी साहित्य प्रेमी क्लब में निरंतरता बनाए हुए हैं। यहीं कादंबिनी क्लब की विशेषता है। मेरा साधुवाद है सभी को।

धन्यवाद ज्ञापन

अवधेश कुमार सिन्हा ने सत्र का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कहा कि आज की दीर्घ अवधि की गोष्ठी में 36 रचनाकारों की उपस्थिति रही है। प्रोफेसर वानोडे को विशेष वक्तव्य और संचालन के लिए प्रवीण प्रणव को विशेष बधाई – धन्यवाद! इस अवसर पर कुशाग्र कुमार की भी उपस्थिति रही। सुख मोहन अग्रवाल ने संस्था को साधुवाद दिया।

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