हैदराबाद: लंबे समय तक माओवादी पार्टी में विभिन्न पदों पर कार्य कर चुकी निर्मला उर्फ नर्मदा का एक निजी अस्पताल में स्तन कैंसर के कारण निधन हो गया। क्रांतिकारी राजनीति से प्रभावित होकर नर्मदा 1980 के दशक में तत्कालीन पीपुल्स वार पार्टी में शामिल हुईं थी और कुछ समय के लिए शहरी क्षेत्रों में तकनीकी कार्यों में काम किया।
इसके बाद 1990 के दशक की शुरुआत में चालीस वर्ष की आयु में दंडकारण्य में सशस्त्र बलों में शामिल हो गई। उन्होंने बल के सदस्य के रूप में महाराष्ट्र के गड़चिरौली जिले के आदिवासियों के बीच अपना सशस्त्र संघर्ष शुरू किया और 2018 तक वह मंडल समिति के सदस्य, जिला सचिव, दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति के सदस्य और सचिव सदस्य के रूप में कार्य किया।
लगभग 35 से अधिक वर्षों तक दंडकारण्य में सशस्त्र बलों में काम करने वाली नर्मदा लगभग बीस वर्षों तक गहन प्रतिबंधों के बीच क्रांतिकारी आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। महाराष्ट्र की सी-60 स्पेशल पुलिस बटालियन ने उस पर एक बार हमला भी किया था। मगर वह बाल-बाल बच निकली। गिरफ्तारी के डर से अनेक माओवादी सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, लेकिन नर्मदा टस से मस नहीं हुई।
सरकार की प्रतिबंधों के बीच नर्मदा ने आदिवासी महिला आंदोलन को शक्तिशाली बनाया। राजनीतिक और सेना के रूप में सशस्त्र बलों का नेतृत्व किया। इसी क्रम में वह 2018 में बीमार पड़ गई। इलाज के लिए हैदराबाद आई नर्मदा को ब्रेस्ट कैंसर होने का पता चला। इलाज के दौरान मिली सूचना पर महाराष्ट्र पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। कोर्ट के आदेश पर एक साल तक हॉस्पिस केयर सेंटर में उसका इलाज चल रहा था। इलाज के दौरान ही यानी 9 अप्रैल को नर्मदा का निधन हो गया।
सशस्त्र पुलिस छापों को सफलतापूर्वक खदेड़ देने वाली नर्मदा आखिरकार कैंसर पर विजय प्राप्त नहीं कर पाई। माओवादी पार्टी ने उनके निधन पर शोक जताया है। उनके साथ जुड़े माओवादियों ने क्रांतिकारी आंदोलन में उनकी भूमिका को याद किया। दंडकारण्य क्रांतिकारी आंदोलन में सक्रिय रही नर्मदा को आदिवासी और पार्टी कार्यकर्ता उसे सुबह का तारा के रूप में प्रशंसा की। उनके पति सत्यनारायण फिलहाल महाराष्ट्र की जेल में बंद हैं।