हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट) : सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, हैदराबाद, भारत द्वारा आयोजित 58 वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी सम्मानित सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया और नगर के ख्याति प्राप्त वरिष्ठ साहित्यकार चंद्र प्रकाश दायमा को काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करने हेतु एवं वरिष्ठ साहित्यकार मनवीन कौर पाहवा को मुख्य अतिथि के रूप में मंच पर विराजमान होने के लिए आमंत्रित किया। तृप्ति मिश्रा ने स्वरचित सरस्वती वन्दना- हे शारदे माँ/अज्ञानता से हमें तार दे माँ प्रस्तुत करके गोष्ठी का शुभारम्भ किया। यह गोष्ठी दीपावली स्नेह मिलन और बाल दिवस विशेष काव्य गोष्ठी के रूप में आयोजित की गई थी। इसमें देश भर से कवि और कवयित्रियों ने भाग लिया और अपने बचपन के संस्मरणों के साथ-साथ बाल कविताएं और गीत प्रस्तुत किए।
वरिष्ठ कवयित्री हिम्मत चौरड़िया, कोलकाता ने अपनी छंदबद्ध रचना- निराला था वह बचपन प्रस्तुत की तो मुम्बई से मनवीन कौर पाहवा ने- कितना सुन्दर था वह बचपन/सबमें था कितना अपनापन और अक्कड़ बक्कड़ बंबे बोल जैसी रचनाएं सुनाकर सबको बचपन के दिन याद दिला दिए। कुसुम सुराणा ने मुम्बई से गोष्ठी में भाग लेते हुए अपनी रचना विकलांग बालिकाओं को समर्पित की। रचना के बोल थे- माँ! क्यूं नहीं छोड़ आई जंगल में। उदयपुर, राजस्थान से श्रीमती सपना श्रीपत ने अपने निराले अंदाज में घनाक्षरी प्रस्तुत की और राजस्थानी भाषा में अपने दादाजी द्वारा रचित दोहे प्रस्तुत किए। अजय कुमार सिन्हा ने बचपन के अनुभवों को साझा करते हुए अपनी रचना- बचपन का दिन था बड़ा सुहाना सुनाकर श्रोताओं का मन मोह लिया।
विशाखापट्टनम से कनक पारख ने अपने बचपन को याद करते हुए मेले जाने और खरीददारी करने से सम्बन्धित रचना – आओ बाल दिवस हम मनाएं प्रस्तुत की। हैदराबाद से तृप्ति मिश्रा ने नटखट बच्चों को समर्पित अपनी बाल कविता प्रस्तुत की। आर्या झा ने लड़के और लड़कियों में होने वाले भेदभाव पर आधारित सुन्दर रचना- समभाव प्रस्तुत की। सभी ने उनकी रचना की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। दर्शन सिंह ने कहा कि वे बाल कविताएं कम लिखते हैं, उन्होंने अपनी सुन्दर रचना- यादों के स्पर्श/यह क्या आए भी और उठकर चल दिए प्रस्तुत की। सरिता सुराणा ने वर्षा ऋतु से सम्बन्धित बाल कविताएं- बरखा आई छम-छम छम/बच्चे-बूढ़े सब हुए प्रसन्न और उमड़ घुमड़ कर आए बादल/आसमान पर छाए बादल प्रस्तुत की। साथ ही साथ दीपावली से सम्बन्धित रचना- दीप जल, तम हर प्रकाश कर/अपने अंतर में उजास भर का पाठ किया।
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अध्यक्षीय वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए चन्द्र प्रकाश दायमा ने सभी सहभागियों की रचनाओं पर अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी दी और सुझाव दिया कि कविता का स्पष्टीकरण नहीं देना चाहिए। कविता अपने आप बोलती है और श्रोता स्वयं उसका मर्म समझते हैं। उन्होंने सभी फलों को अपनी बाल कविता का आधार बनाया और अपने अंदाज में रचना प्रस्तुत की- पका जब आम डाली पर/नारंगी पड़ गई खट्टी/हमको कौन पूछेगा? जैसी खट्टी-मीठी रचना से सबका मन मोह लिया। छुट्टी के दिन रविवार पर उन्होंने अपनी रचना- मैंने कितने ही दिन बिताए हैं रविवार के दिन रचना प्रस्तुत की। समस्त सदस्यों ने गोष्ठी की मुक्त कंठ से प्रशंसा की और कहा कि आज़ की गोष्ठी में उन्होंने अपने बचपन को जिया है। ऐसे कार्यक्रम होते रहने चाहिए। आर्या झा के धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी सम्पन्न हुई। गोष्ठी में भावना पुरोहित और चंचल जैन ने मुम्बई से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।