पुस्तक समीक्षा : संवेदनाओं की गहराई से आप्लावित आत्मीय संस्मरण है “… और एस पी साहब ने फीता काट दिया”

मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, ग्वालियर इकाई के अध्यक्ष नामचीन वरिष्ठ साहित्यकार माता प्रसाद शुक्ल किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इनकी हिंदी साहित्य की विविध विधाओं में अब तक एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और ये अनेक नामवर सम्मानों से विभूषित हो चुके हैं।

“… और एस. पी. साहब ने फीता काट दिया” इनकी संस्मरण विधा की पुस्तक है, जिसमें कुल 44 उत्कृष्ट संस्मरण संगृहीत हैं। इनकी कालावधि मोटे तौर पर आठवें दशक से वर्तमान तक की मानी जा सकती है। लेखक ने इसे अपनी पुत्र-वधू आरती की स्मृति को समर्पित किया है।

संस्मरण किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या दृश्य का स्मृति के आधार पर आत्मीय शैली में किया गया अनुभवपरक कलात्मक अंकन है। इसमें लेखक अपने व्यक्तिगत अनुभवों को भाव संवेदनाओं के साथ इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि उसका एक भावात्मक चित्र पाठकों के मन-मस्तिष्क पर सहजता से अंकित हो जाता है।

यह भी पढ़ें-

माता प्रसाद शुक्ल के इन संस्मरणों में उक्त विशिष्टताओं के साथ संवेदनाओं की गहनता, भावनाओं की प्रचुरता और वैयक्तिकता की प्रधानता स्पष्टतः परिलक्षित होती है। इनमें स्वानुभूत विषय का यथावत व कल्पनाधारित अंकन न हो कर बहुआयामी पुनर्सृजन हुआ है और तथ्यों को अलंकृत रूप में प्रस्तुत किया गया है।

” …ओर एस. पी. साहब ने फीता काट दिया” यह पुस्तक का प्रथम संस्मरण है, जिसके आधार पर पुस्तक का नामकरण किया है, जो कि सर्वथा समीचीन और आकर्षक है तथा यह लेखक के मूल सन्देश व प्रयोजन को द्योतित करता है। यह संस्मरण अत्यंत रोचक, सारगर्भित एवं कौतूहल वर्धक है। इसका मूल कथ्य इस बात को शिद्दत से रेखांकित करना है कि “फीता काटना था- मुख्य अतिथि भार्गव साहब को मगर काट दिया कार्यक्रम के अध्यक्ष शहर में नए-नए आए तेज-तर्रार एस. पी. मीणा जी ने।” संस्मरण की भाषा बड़ी चुटीली एवं हास्य रस से परिपूर्ण है।

एक झलक द्रष्टव्य है-
“मित्रों, फीता कट गया। उद्घाटन हो गया कायाकल्प का। फीता तो हलाल होना ही था, चाहे भार्गव करते अथवा मीणा जी। फीते को क्या फर्क पड़ना था, लेकिन फर्क पड़ गया ज़हीर कुरैशी को..”

“मेरे फोटो तो रोज अख़बार में छपते हैं” संस्मरण मध्यप्रदेश शासन में केबिनेट मंत्री रहे शीतला सहाय जी से सम्बंधित है, जब लेखक उन्हें 2010 में प्रकाशित अपनी चर्चित पुस्तक “ग्वालियर के गली, बाजार, मोहल्ले” भेंट करने गए थे। तब उनके साथ हुई नोंकझोंक एवं तल्खी का बड़ा यादगारपरक एवं प्रभावशाली चित्रण हुआ है।

“यह घर आपका है, मालूम होना चाहिए” संस्मरण बहुत लाज़वाब, रोचक एवं हास्य रस से ओतप्रोत है। यह लेखक के 6 वर्षीय पौत्र (6 जून 2023) मितविक जो श्री राम भारती पब्लिक स्कूल, बहादुरगढ़ (हरियाणा) में कक्षा एक में पढ़ता था, से संबंधित है। इसमें लेखक ने अपने पौत्र के स्वभाव, रुचि, डायलॉग और हरकतों पर सम्यक प्रकाश डाला है तथा उसके साथ बहादुरगढ़ में बिताए अपने कुछ समय की खट्टी-मीठी यादों को नए सिरे से ताजा किया है।

“अपनों ने काटी जेब” संस्मरण में लेखक ने 1993 में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग का तीन दिनी विशेष अधिवेशन जो पुरी (उड़ीसा) में हुआ था, उसमें ग्वालियर से शिरकत करने वाले दो ग्रुप एवं महेश कटारे के साथ लेखक की उड़ीसा यात्रा जिसमें एक सहयात्री द्वारा रात में पैंट की जेब से रुपए उड़ा लेने का दुःखद विवरण प्रस्तुत किया है। “तुम्हारी किताबें लाखों में बिके” संस्मरण में लेखक द्वारा रचित पुस्तकों की प्रसिद्धि एवं उनकी बिक्री की सारगर्भित जानकारी का रोचक भाषा में चित्रण हुआ है।

“जब मैं विकलांग बना” यह हास्य-व्यंग्य प्रधान एक उत्कृष्ट संस्मरण है, जिसमें लगभग तीन दशक से अधिक पूर्व लेखक को अजमेर शरीफ़ की तिज़ारत करने और उनके साहित्यिक मित्र नईम कुरैशी द्वारा उनके विकलांग न होने पर भी रेलवे से फ्री विकलांग पास बनवाने की रोचक जानकारी सहित ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह पर पहुँच कर जो कुछ महसूस किया उसका कटाक्ष पूर्ण विवरण प्रस्तुत किया है। द्रष्टव्य है- “यहाँ भी हिंदुओं के तीर्थ की तरह पंडागिरी होती है, मोलभाव होता है। शहर का नाम पूछा जाता है। मोर पंख का झाड़ा लगाया जाता है। इसकी एवज में पैसे देने पड़ते हैं।” आदि।

संस्मरण “मेरे प्रेरणा स्रोत एक नहीं, अनेक” में लेखक ने अपने जीवन के विविध क्षेत्रों में रहे अनेक प्रेरक व्यक्तित्वों के नामों का उल्लेख करते हुए उनके प्रति अपनी कृतज्ञ भावांजलि अर्पित की है तथा डॉ. नज्मी साहब के एक चर्चित दोहे को पाठकों की नज़र प्रस्तुत किया है। यथा- “उसे पिला जो पी सके, सच का कड़वा घोल। सच बोले, सूली चढ़े, ऐसा सच मत बोल।”

इनके अतिरिक्त “साहित्य ने मिलाया गुरु से, चाचा और आम का पेड़, हम कौन-सा गंगाजल पी रहे हैं, पलंग तोड़ लड्डू, बापू की हत्यारी पिस्तौल और ग्वालियर, कहाँ गए वो लोग, डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ से भेंट, डॉ. काशीनाथ सिंह की चप्पलें, कुत्ता पुजा पीर बन कर और एक थे कवि मूसरचंद आदि संस्मरण बहुत रोचक, ज्ञानवर्धक एवं हास्य व व्यंग्य रस से ओतप्रोत हैं, जो पाठक वृन्द का ध्यान अपनी ओर बरबस खींचने में समर्थ हैं।

निष्कर्षतः ये संस्मरण भाव सौंदर्य एवं शिल्प सौष्ठव की दृष्टि से बड़े प्रभविष्णु बन पड़े हैं। ये कथ्य, भाव, भाषा, शिल्प, शीर्षक, सम्प्रेषणीयता और सन्देश की दृष्टि से अत्यंत उपादेय हैं। सुधी पाठक इन्हें पढ़ कर आनन्द रस से अभिभूत होंगे और इनसे साहित्य-जगत गौरवान्वित एवं समृद्ध होगा। शुभकामनाओं सहित।

लेखक  :  माता प्रसाद शुक्ल “… और एस. पी. साहब ने फीता काट दिया”
विधा : संस्मरण
प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, नई दिल्ली-12
प्रथम संस्करण : 2024.
मूल्य :₹ 225/- पृष्ठ-108.(जिल्द रहित)

समीक्षक-डॉ. ज्ञान प्रकाश ‘पीयूष’
साहित्यकार एवं समालोचक
1/258,मस्जिदवाली गली,तेलियान मोहल्ला,
नजदीक सदर बाजार, सिरसा -125055(हरि.)
मो. 94145-37902, 70155-43276
ईमेल-gppeeyush@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X