विशेष लेख : चलो याद करते हैं निजाम के विरुद्ध लड़ने वाले लौहपुरुष स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी और पंडित गंगाराम जी

हैदराबाद के निज़ाम मीर उस्मान अली द्वारा हिन्दुओं के धार्मिक अधिकारों तथा आर्य समाज के प्रचार पर लगे प्रतिबन्ध के कारण आर्य समाज ने इतिहास के सबसे बड़े संघर्ष निज़ाम के विरुद्ध सन् 1939 में सत्याग्रह किया। इस हैदराबाद सत्याग्रह के स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी फील्ड मार्शल रहे और सत्याग्रहियों को प्रेरित कर भेजने का दुष्कर कार्य सफलतापूर्वक किया।

11 जनवरी सन् 1877 में स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी का जन्म पंजाब प्रान्त का लुधियाना जिला के ‘ मोही ‘ नामक ग्राम में हुआ था। बचपन में इनका नाम केहर सिंह था। आप एक सम्पन्न कृषक कुल तथा पुलिस अधिकारी के घर जन्म लेने वाले, वैराग्यवृत्ति के कारण 20 वर्ष की युवा अवस्था में गृहत्याग कर तपस्वी साधु के रूप में अध्ययन और साधुओं का सत्संग करते हुए आप आर्य समाज की ओर आकर्षित हो गये।

चित्र में स्वामी स्वतत्रतानन्द जी के साथ पं. नरेन्द्र जी व क्रांतिवीर पं. गंगाराम वानप्रस्थी जी

स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी के जीवन की एक-एक घटना अत्यन्त विलक्षण व प्रेरणाप्रद है। आप कोई सामान्य संन्यासी नहीं थे। आप युगों के पश्चात् जन्म लेने वाली एक तपस्वी पूजनीय विभूति थे। कई भाषाओं के सिद्धहस्त असाधारण विद्वान विचारक और महाकवि थे। हैदराबाद आर्य सत्याग्रह के संचालक संन्यासी लौहपुरुष स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी ने सत्याग्रह के सेनापति महात्मा नारायणस्वामी जी से मिलकर अपनी बनाई योजना के अनुसार उन्हें ट्रेन से हैदराबाद पहुंचा दिया, निज़ाम ने महात्मा जी को अपने राज्य में प्रविष्ट न होने देने के लिए सब कुछ किया था।

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आर्य सत्याग्रह को सफल बनाने और निज़ाम प्रशासन को घुटने टेकने के लिए मजबूर करने, सत्याग्रह को निरन्तर चलाने हेतु, संगठन को बल देने के लिए एक योग्य, निष्ठावान, जननायक, महर्षि दयानन्द और आर्य समाज का परमभक्त, निडर, निज़ाम की पुलिस को अच्छा जानता हो, कई यातनाओं को सहनकर भी आर्यसमाज का परम सेवक, जीवन दांव पर लगाकर दूसरों की मदद करने वाला, दूरदर्शिता और स्मरणशक्ति जिसकी तीव्र हो, जिसमें तड़प, जोश, उत्साह और सेवा भाव हो। ऐसे आर्य की पहचान इस आर्य सत्याग्रह के लिए फील्ड मार्शल लौहपुरुष स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी ने हैदराबाद सत्याग्रह के लिए युवा आर्य नेता, आर्यवीर दल हैदराबाद स्टेट के मुखिया क्रांतिकारी गंगाराम जी को चुना।

अति कठिन कार्य के लिए एक अच्छे नेता के साथ-साथ एक अच्छे कार्यकर्ता की भीजरूरत होती है। क्रान्तिवीर गंगाराम जी लौहपुरुष के नयनों में समा गये, गुणियों के पारखी स्वामी स्वतन्त्रतानन्द जी ने अत्यन्त विकट कार्य के लिए इन्हें चुना। यह उनके जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि थी। हैदराबाद के अपने राज्य के आर्यों में से सत्याग्रहियों की लगातार भर्ती करना और यह कार्य करते हुए निज़ाम की कुटिल क्रूर सरकार की धर पकड़ से भी स्वयं को बचाना, इससे बड़ा जोख़िम का स्टेट में दूसरा और कार्य क्या हो सकता था? दूरदर्शी फील्ड मार्शल स्वामी जी ने इसके साथ दूसरा बड़ा कार्य जो गंगाराम जी को सौंपा वह यह था कि सत्याग्रह की विजय तक आपने स्वयं को निज़ामशाही की हृदयहीन पुलिस की पकड़ से बचाना है। यह कार्य पहले कार्य से भी कहीं अधिक जोखिम भरा था।

और इतिहास साक्षी है कि सत्याग्रह आन्दोलन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण योद्धाओं में से एक गंगाराम जी ने अत्यन्त सतर्कता, सजगता व दूरदर्शिता से स्वामीजी महाराज द्वारा सौंपे गये यह दोनों कार्य अत्यन्त नीतिमत्ता‌ व कुशलता से करके दिखाये। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज तक न तो हैदराबाद के किसी प्रतिष्ठित नेता तथा संगठनकर्ता ने गंगाराम जी की सत्याग्रह के लिये इस देन पर कुछ खुलकर लिखा है।

यह तो प्रसिद्ध आर्य इतिहासकार प्रा. राजेंद्र जिज्ञासु जी, जिनकी उम्र 94 वर्ष की है, आज भी आर्यसमाज और स्वामी दयानन्द के परम भक्तों की खोज कर समुद्र से गोता लगाकर मोती निकालने जैसे कार्य कर हमें इतिहास के स्वर्णिम अध्यायों से परिचित करा रहे हैं। यह लेख इन्हीं की कृपा से लिखित ” जीवन संग्राम – क्रांतिवीर पंडित गंगाराम वानप्रस्थी ” पुस्तक से प्रेरित होकर लिखा गया है। भारत की स्वतन्त्रता और हैदराबाद निज़ाम से मुक्ति के बाद, तत्कालीन आर्यसमाज के कुछ शीर्ष नेताओं ने पदों पर आसीन रहने के लिए आपसी संघर्ष में लग गये और पद पर चिपकु बन इतिहास के स्वर्णिम प्रष्ठों को आने ही नहीं दिया और आर्य समाज के उज्जवल भविष्य को लगभग लगभग मिटा दिया।

आर्य समाज के पतन का एक मुख्य कारण यह भी है कि सत्तालोभी नेताओं ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए जीवन पर्यंत कभी अगले पंक्ति के लिए किसी को तैयार ही नहीं किया और अपनी सत्ता की भूख को मिटाना यही उनका लक्ष्य रहा। इतिहास ही तो प्रेरणा का स्रोत होता है। इसमें अनुभवों, महत्वपूर्ण घटनाओं, उपलब्धियां व हमारी संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है।

क्या केवल सरकार ही इतिहास लिखेगी, हम केवल सरकारों को ही कोसते रहें, क्या हमारा कोई दायित्व नहीं बनता? यह तो भला है, एक अकेला व्यक्ति, इस उम्र के पड़ाव पर भी, निरन्तर खोज करके हमें जागृत कर रहा है, बिलकुल अकेले, उनके आगे पीछे कोई नहीं। यह कार्य क्या हमारे सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा या आर्य प्रादेशिक सभाओं का नहीं है? यह सोचने और निर्णय लेने की आज अत्यंत आवश्यकता है।

भक्त राम (मोबाइल- च98490 95150)
अध्यक्ष पण्डित गंगाराम स्मारक मंच
हैदराबाद

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