‘दिव्यांगजन प्रौद्योगिकी और भाषा’ विषय पर कार्यशाला का शानदार आयोजन, इन विद्वानों ने दिया यह संदेश

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट) : वैश्विक हिन्दी परिवार, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग के संयुक्त तत्वावधान में ‘दिव्यांगजन, प्रौद्योगिकी और भाषा’ विषय पर कार्यशाला का आयोजन हुआ। इसकी अध्यक्षता करते हुए अमेरिका के तकनीकी शिक्षाविद अनूप भार्गव ने कहा कि दिव्यांग जनों की सुगमता के लिए नित नई आधुनिक तकनीकी की मांग जागरूकता का परिचायक है। हम आर्थिक दृष्टिकोण से फायदे के लिए केवल दिमाग से नहीं बल्कि दिव्यांगों के उपकार हेतु दिल से सोचें। इस अवसर पर अनेक देशों के साहित्यकार, विद्वान-विदुषी, प्राध्यापक, शोधार्थी, प्रतियोगी परीक्षार्थी और भाषा प्रेमी आदि जुड़कर लाभान्वित हुए।

आरम्भ में सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह ने सबका स्वागत किया गया। तत्पश्चात गृह मंत्रालय के सहायक निदेशक डॉ मोहन बहुगुणा द्वारा बखूबी संचालन संभाला गया। उन्होने व्याख्यान हेतु माइक्रोसाफ्ट के निदेशक एवं सुप्रसिद्ध भाषा तकनीकीविद एवं लेखक बालेंदु शर्मा दाधीच को सादर आमंत्रित किया। अपनी शानदार जीवंत प्रस्तुति में दाधीच ने सचित्र बताया कि विकलांगता एक अवांछनीय चिकित्सा स्थिति है जो किसी व्यक्ति की क्षमताओं को सीमित करती है। अब नए समाजिक मॉडल के अनुसार गैर–समायोजित सामाजिक पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण विकलांगता होती है। शारीरिक अंग भंग, दुर्घटनावश, स्थितिजन्यता और शारीरिक गिरावट आदि इसकी अनेक श्रेणियाँ हैं। विकलांगता अदृश्य और अस्पष्ट भी होती है।

दुनियाँ में लगभग 1.3 अरब लोग विकलांग हैं। इनके लिए सुगम्यता तब होती है जब उत्पाद, सेवाएँ, वातावरण और डिजिटल मीडिया आदि इनके अनुकूल हों। जैसे हाथ से बटन के स्थान पर विकलांग पैर आदि से दबाने वाले यंत्र का प्रयोग कर सकें। उन्होने विश्व प्रसिद्ध भौतिकीविद स्टीफेंस हाकिन्स का सचित्र उदाहरण दिया। विकलांगता हममें से किसी को भी हो सकती है। मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे भी बहुत प्रभावित करते हैं। दाधीच द्वारा दिखाया गया कि विभिन्न प्रकार के विकलांगों जैसे अंधों, मूक-बधिरों और अपंगों आदि की सक्षमता हेतु विविध प्रकार की आधुनिक सुविधाएं कम्प्यूटर और मोबाइल आदि में आ गई हैं। इस दिशा में नित नए अनुसंधान जारी हैं।

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विमर्श में अमेरिका में एक दिव्यांग बच्चे की माँ श्रीमती पोपी सुवर्णा ने कहा कि बेहतर जिंदगी के लिए बीमारी विशेष से ग्रसित बच्चों हेतु अनुसंधान आवश्यक है। सहभागिता करते हुए आई आई टी खड़गपुर के राजीव रावत ने आशंका प्रकट की कि आधुनिक सुविधाएं कहीं हमें विकलांगता की ओर तो नहीं ले जा रही हैं। पांडिचेरी विश्वविद्यालय के प्रो सी जयशंकर बाबू ने कहा कि साहित्य के दिव्यांग विद्यार्थियों हेतु नए अनुसंधान की आवश्यकता है। दिल्ली में राजभाषा से जुड़े राकेश शर्मा ने कहा कि भविष्य में केवल सोचकर ही बिना की बोर्ड के टाइप की व्यवस्था संभाव्य है। हैदराबाद से प्रो कोकिला का कहना था कि दिव्यांगों द्वारा लिखने में वर्तनी की समस्या का भी समाधान होना चाहिए।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, वातायन और भारतीय भाषा मंच के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के संयोजन में संचालित हुआ। कार्यक्रम प्रमुख की सशक्त भूमिका ब्रिटेन से साहित्यकार दिव्या माथुर द्वारा बखूबी निभाई गई। भोपाल से साहित्यकार डॉ जवाहर कर्नावट के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यशाला का समापन हुआ। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार, शीर्षक के अंतर्गत यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

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