सूत्रधार साहित्यिक संस्था की 13वीं मासिक गोष्ठी सम्पन्न, सूरदास के साहित्य पर की गई चर्चा

हैदराबाद : सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत के तत्वावधान में 13वीं मासिक गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। विज्ञप्ति में बताया गया कि इस गोष्ठी के आयोजन से संस्था ने दूसरे वर्ष में प्रवेश कर लिया है। यह संस्था और इसके समस्त सदस्यों के लिए अत्यन्त गौरव का विषय है।

एक वर्ष की परिसम्पन्नता पर बहुभाषी कवि सम्मेलन का आयोजन बहुत ही सफल और सार्थक सिद्ध हुआ, वहीं इस गोष्ठी ने भक्ति काल के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास पर परिचर्चा को एक नया आयाम प्रदान किया। मां सरस्वती का स्मरण करते हुए संस्थापिका सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और साहित्यकारों का हार्दिक स्वागत किया। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई।

ज्योति नारायण की स्वरचित सरस्वती वन्दना

प्रथम सत्र की अध्यक्षता शहर के जाने-माने कवि एवं नाटककार सुहास भटनागर ने की। संस्था अध्यक्ष ने उन्हें मंच पर सादर आमंत्रित किया। उनके साथ प्रथम सत्र की मुख्य वक्ता डॉ आर सुमन लता, अन्य वक्ता सुनीता लुल्ला और रिमझिम झा तथा विशेष अतिथि अरुणा श्री को भी मंचासीन किया गया। ज्योति नारायण की स्वरचित सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तत्पश्चात् शहर के जाने-माने कवि सुरेश जैन, राजकुमार छाबड़ा, लेखिका गुणमाला जी सोमाणी और प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल जी बहुगुणा को दो मिनट का मौन रखकर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई।

हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल स्वर्ण युग

प्रथम सत्र की शुरुआत करते हुए संस्थापिका ने कहा कि हिन्दी साहित्य के इतिहास में भक्ति काल स्वर्ण युग के नाम से विख्यात है। इस काल में रचित साहित्य गागर में सागर भरने वाला है। भक्ति काल के आविर्भाव पर अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। पाश्चात्य विद्वान वेबर, कीथ, ग्रियर्सन और विल्सन जहां इसे ईसाई धर्म की देन मानते हैं, वहीं पर बाल गंगाधर तिलक, श्री कृष्ण स्वामी अयंगार और डॉ राय चौधरी आदि भारतीय विद्वानों ने भक्ति का उद्गम भारतीय स्त्रोतों में सिद्ध किया है।

भगवान की शरणागति की प्रार्थना

आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू गुलाब राय भक्ति साहित्य के मूल में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओं पर अत्याचार तथा पराजित हिन्दुओं की निराशा की मनोवृत्ति को इसका कारण मानते हैं जबकि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इसे सिरे से खारिज करते हैं। उनका मानना था-‘यह बात अत्यन्त उपहासास्पद है कि जब मुसलमान लोग उत्तर भारत के मंदिर तोड़ रहे थे तो उसी समय अपेक्षाकृत निरापद दक्षिण भारत में भक्त लोगों ने भगवान की शरणागति की प्रार्थना की। मुसलमानों के अत्याचार से यदि भक्ति की भावधारा को उमड़ना था तो पहले उसे सिन्ध में और फिर उत्तर भारत में प्रकट होना चाहिए था पर यह हुई दक्षिण में।’

भक्ति काल का जनक

दक्षिण भारत के आलवार भक्तों ने शंकर के अद्वैतवाद की परवाह न करते हुए भक्ति धारा को प्रवाहमान रखा था इसलिए द्विवेदी जी आलवार भक्तों को ही भक्ति काल का जनक कहते हैं। सूरदास जी कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि माने जाते हैं। उनका जन्म बैशाख शुक्ला पंचमी, संवत् 1535 वि. माना जाता है और जन्म स्थान दिल्ली के निकट ब्रज की ओर स्थित सीही ग्राम माना गया है।

भगवान जिस पर कृपा करता है, वही पुष्टि मार्ग

चर्चा को आगे बढ़ाते हुए मुख्य वक्ता डॉ आर सुमन लता ने कहा कि सूरदास गवैए के रूप में प्रसिद्ध थे। जब ये पुष्टिमार्गी आचार्य वल्लभाचार्य जी से मिले और इन्होंने कहा- ‘हौं प्रभु सब पतितन को टीकौ’ तो वल्लभाचार्य ने उन्हें कहा- ‘जो सूर ह्वै कै ऐसो घिघियात काहे को है’? अर्थात् तुम सूर होकर क्यों ऐसे घिघियाते हो, तुम्हें तो कुछ भगवत लीला का वर्णन करना चाहिए। कहते हैं कि फिर सूरदास ने उनकी दीक्षा स्वीकार कर ली और पुष्टिमार्ग को अपना लिया। भगवान जिस पर कृपा करता है, वही पुष्टि मार्ग है।

सूरदास के काव्य में गोपियों का विरह वर्णन

‘सूरसागर’ सूरदास की विशेष रचना है। उनके काव्य में वात्सल्य भाव, सखा भाव और शृंगार रस की प्रधानता है। कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन हो चाहे गोपियों के विरह का, सूरदास ने बहुत ही कुशलतापूर्वक उनका चित्रण अपने पदों में किया है। लगभग आधा घंटे तक उन्होंने इस विषय पर धाराप्रवाह ज्ञान की गंगा बहाई। सुनीता लुल्ला ने सूरदास के ‘भ्रमरगीत’ पर अपनी राय रखते हुए कहा कि सगुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि सूरदास ने जिस तरह कृष्ण के अलग-अलग रूपों को अपने पदों में व्याख्यायित किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। रामचन्द्र शुक्ल जी ने उनमें से ही 400 पदों को छांटकर अलग संकलन तैयार किया था। सूरदास के काव्य में गोपियों का विरह वर्णन इतने उदात्त स्वरूप में व्यक्त हुआ है कि जब उद्धव उन्हें समझाने के लिए ज्ञान मार्ग का सहारा लेते हैं तो गोपियां भ्रमर के माध्यम से उन्हें अनेक उपालम्भ देती हैं और कहती हैं- ‘ऊधौ! मन ना भये दस-बीस, एक हुतो हो गयो स्याम संग, कौ आराधै ईस’।

आई काॅलेज के दिनों की याद

उन्होंने कहा कि इस परिचर्चा के समय उन्हें अपने काॅलेज के दिनों की याद आ गई। कटक, उड़ीसा से गोष्ठी में सम्मिलित वक्ता रिमझिम झा ने कहा कि इस बारे में मत भिन्नता है कि सूरदास जन्मांध थे। कहा जाता है कि युवावस्था में वे नदी किनारे बैठकर जब पद गाते थे तो आती-जाती स्त्रियों को देखा करते थे। एक दिन एक स्त्री की फटकार सुनकर उन्हें इससे विरक्ति हो गई और उन्होंने अपनी आंखों की रोशनी छीन ली। उसके बाद वे कृष्ण भक्ति में लीन हो गए और उन्होंने अविरल प्रवाह से भक्ति साहित्य की रचना की। दर्शन सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सिखों के ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में भक्ति काल के अनेक कवियों के पदों को शामिल किया गया है। सूरदास उनमें से एक हैं। गुरु नानक देव जी भी उसी समय के संत हैं।

संस्था में एक से बढ़कर एक विद्वान

ज्योति नारायण ने सूरदास का ये पद- ‘निसदिन बरसत नैन हमारे’ बहुत ही मधुर आवाज में गाकर सुनाया। अध्यक्षीय टिप्पणी प्रस्तुत करते हुए सुहास भटनागर ने सभी वक्ताओं के वक्तव्य का सार समझाते हुए इस परिचर्चा गोष्ठी को बेहद सफल और सार्थक बताया। उन्होंने कहा कि यह समय का अत्युत्तम सदुपयोग है। सरिता सुराणा ने सभी वक्ताओं और अध्यक्ष का धन्यवाद ज्ञापित किया और कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि हमारी संस्था में एक से बढ़कर एक विद्वान सदस्य हैं, जो अपने ज्ञान के अथाह भण्डार से मोती चुनकर हमारी ज्ञान-पिपासा को शान्त करने का कार्य बखूबी करते हैं।

काव्य गोष्ठी ने बांध दिया समां

द्वितीय सत्र की संयोजिका ज्योति नारायण ने काव्य गोष्ठी का कुशलतापूर्वक संचालन किया। कोरबा, छत्तीसगढ़ निवासी लब्ध प्रतिष्ठित कवि एवं साहित्यकार श्री सत्य प्रसन्न राव ने काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता की। इसमें भावना पुरोहित, दर्शन सिंह, बिनोद गिरि अनोखा, हर्षलता दुधोड़िया, डॉ संगीता जी शर्मा, संतोष रजा गाजीपुरी, संपत देवी मुरारका, रिमझिम झा, आर्या झा, प्रदीप देवीशरण भट्ट, डॉ आर सुमन लता, सुनीता लुल्ला, सुहास भटनागर और ज्योति नारायण ने विविध रसों से परिपूर्ण सुन्दर कविताएं, गज़ल और नवगीत सुनाकर कवि सम्मेलन जैसा समां बांध दिया।

सरिता सुराणा की लघुकथा

सरिता सुराणा ने अपनी लघुकथा ‘अनन्त में विलीन’ प्रस्तुत की। अध्यक्षीय काव्य पाठ प्रस्तुत करते हुए श्री सत्य प्रसन्न राव ने अपनी रचना ‘कल निकलेगा नवल दिवाकर, लेकर नई उजास’ का पाठ करके सबको भावविभोर कर दिया। सकारात्मक सोच से परिपूर्ण उनकी रचना से सभी श्रोताओं के अन्दर एक नए उत्साह और उमंग का संचार हुआ।

अतिथियों और साहित्यकारों का आभार

इस गोष्ठी में मेरठ, उत्तर-प्रदेश से कवि सदन कुमार जैन, हैदराबाद से प्रसिद्ध हिन्दी सेवी साहित्यकार अरुणा श्री और वरिष्ठ पत्रकार के. राजन्ना श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहे। सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और साहित्यकारों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। डॉ संगीता जी शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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