‘तेलंगाना आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका’ विषय पर PhD करने वाले डॉ याकेश जी के साथ ‘तेलंगाना समाचार’ का साक्षात्कार

[नोट- हाल ही में याकेश दैदा जी ने पोट्टि श्रीरामुलू तेलुगु विश्वविद्यालय से ‘तेलंगाना आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका’ विषय पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। इस विषय को देखते ही हम चौंक गये। साथ ही आश्चर्य भी हुआ। आखिर हमने याकेश जी जानना चाहा कि पीएचडी के लिए इतना ज्वलंत विषय को क्यों चुना? साथ ही पहले की पत्रकारिता और अब की पत्रकारिता में क्या फर्क है? एक पत्रकार को कैसे होना चाहिए? क्या अब पत्रकारिता सही है? सही है तो कैसे और नहीं है तो सुझाव देने को कहा। हमें विश्वास है कि उभरते पत्रकारों के लिए यह इंटव्यू लाभदायक साबित होगी। याकेश जी का मोबाइल नंबर है- 90103 01301]

याकेश जी से हमारी बातचीत नमस्कार से हुई। हमने पूछा कि बचपन, परिवार कौन-कौन है और प्राथमिक से पीजी शिक्षा कहां और कैसे हुई। याकेश जी ने कहा कि नमस्ते राजन्ना जी, मेरा पूरा नाम याकेश दैदा है। मेरे माता-पिता उप्पलय्या सामाजिक जंगल की बढ़ोत्तरी यानी वन विभाग में काम करते थे। मेरी मां भी पिता के साथ खेत का काम करती थीं। मेरी शिक्षा इंटरमीडिएट तक मेरे गांव यानी नेल्लीकुदुरु मंडल में अब महबूबाबाद जिला पुराना संयुक्त वरंगल जिले में हुई। इसके बाद डिग्री के लिए हैदराबाद आया। 1998 में मैंने उस्मानिया विश्वविद्यालय प्रवेश लिया। घर से भेजे गये पैसे पर्याप्त नहीं होते थे। इसलिए मैं अपनी डिग्री की पढ़ाई करते हुए शाम को ड्यूटी करता था। मैं सुबह कॉलेज जाता और शाम को उषोदयम के पेपर में काम करने लगा। इसी दौरान उस्मानिया विश्वविद्यालय परिसर में ईटीवी की कैंपस सेलेक्शन हुआ। उसमें मुझे चयनित किया गया। इसके बाद मुझे ईटीवी में एक पैनल निर्माता के रूप में उत्पादन विभाग में प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद 2007 से सितंबर 2010 तक एनटीवी न्यूज चैनल न्यूज में काम किया। 2010 से डॉ बीआर अंबेडकर ओपन विश्वविद्यालय के ईएमआरसी विभाग में प्रोडक्शन असिस्टेंट के पद पर कार्यरत हूं।

हमने आगे सवाल किया कि तेलंगाना आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका यही विषय आपने क्यों चुना? कारण और आपको प्रभावित कर चुकी कोई घटना है? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि पीएचडी करने के पीछ प्रोफेसर घंटा चक्रपाणी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा कि पढ़ाई/शिक्षा हमारी जिंदगी और संपदा है। उनकी प्रेरणा से मैंने पोट्टि श्रीरामुलू तेलुगु विश्वविद्यालय में पीएचडी में सीट हासिल की। सीट हासिल करना एक चुनौती भरा रहा है। इसके बाद गाइड भी एक चुनौती भरी रही है। मेरा पंजीकरण प्रोफेसर वी सत्ती रेड्डी के पास हुआ। मेरे से पहले कई लोगों ने एमफिल को बीच में ही छोड़कर सत्ती रेड्डी के पास से चले गये। वे बहुत ही अनुशानात्मक और ईमानदार व्यक्ति हैं। उनके बारे में कुछ शब्द कहना चाहिए। वह किसी के सामने और किसी बात को लेकर झुकने वाले इंसान नहीं है। लगभग सभी ने कहा था कि क्या उनके पास तुम्हारी पीएचडी हो पायेगी होगी? कई लोगों ने मुझसे यह भी कहा कि वे बीच में ही छोड़ देंगे। इसलिए मैं इस सोच के साथ आगे बढ़ा कि मैं इसे पूरी लगन से खत्म करूंगा। मेरे गाइड सत्ती रेड्डी ने सलाह दी कि तेलंगाना आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका विषय पर पीएचडी किया जाये। तेलंगाना आंदोलन पर अनेक रचनाएं लिखी गई है। मगर अब तक कोई रिकॉर्ड या दस्तावेज उपलब्ध नहीं है। तेलंगाना आंदोलन में पत्रकारों की वास्तविक भूमिका क्या है? तेलंगाना आंदोलन में कई लोगों ने भाग लिया। हम यह सोचने लगे हैं कि तेलंगाना आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका विषय पर पीएचडी करना ही बेहतर होगा।

हमने आगे सवाल किया कि तेलंगाना गठन के आठ साल बीत गये है। क्या वो/पत्रकार इस प्रकार की सरकार कल्पना की थी। ऐसे तेलंगाना के बारे में सोचा था? इसके जवाब में याकेश ने बहुत मार्मिक जवाब दिया। उन्होंने कहा कि उनके गाइड सत्ती रेड्डी ने कहा कि तेलंगाना आंदोलन में पत्रकारों की भूमिका विषय के बारे में विशेष रूप से चुनी गई है। इसलिए हमें सावधान रहना बहुत आवश्यक है। सभी विषयों की सावधानी पूर्वक जांच पड़ता की जानी जाहिए। इसीलिए सभी पहलुओं पर विचार किया गया। पहले मैंने तेलंगाना आंदोलन की घटनाएं यानी 1969 से 2014 तक का दस्तावेजीकरण किया। साहित्य की समीक्षा में सब कुछ प्रलेखित किया गया। देश और दुनिया में अनेक आंदोलन हुए और किये गये। इसी के आधार पर मैंने पीएचडी दो तरीकों से की गई है। पहला गुणात्मक तरीका है और दूसरा मात्रात्मक तरीका है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में टीवी चैनल और प्रिंट मीडिया में काम करने वाले प्रमुख पत्रकार, बुद्धिजीवी. सामाजिक कार्यकर्ता, कवि और कलाकारों से साक्षात्कार किया गया। इस तरह लगभग सैकड़ों लोगों का साक्षात्कार मात्रात्मक पद्धति से किया। सभी के लिए 60 प्रश्नों के साथ एक प्रश्नावली बनाई गई। सभी के उत्तर प्राप्त किये गये। इस तरह 400 लोगों से जवाब हासिल किये गये। मिले डेटाबेस के आधार पर शोध कार्य किया गया।

हमने अगला सवाल वर्तमान सरकार और विषय को लेकर किया। हमने सवाल कि क्या टीआरएस सरकार ने शहीदों का सपना पूरा किया है? यानी जल, निधि और नियुक्तियां की है? आपकी नजर में टीआरएस सरकार कैसे शासन कर रही है? हां तो कैसे यदि नहीं तो सरकार और पत्रकारों को क्या करना चाहिए? इसके जवाब में याकेश ने कहा कि राजन्ना जी मुझे यहां आपको एक बात स्पष्ट रूप से बतानी है। अब तक अनेक आंदोलन उत्पीड़ित लोगों की मुक्ति के लिए, गरीबों की गुलाम की मुक्ति के लिए, भूख के लिए किये गये। मगर तेलंगाना आंदोलन संयुक्त आंध्र प्रदेश में हुआ। उस समय आंध्र प्रदेश के लोगों का तेलंगाना के लोगों पर वर्चस्व और बोलबाला था। जल, निधि और नियुक्तियां प्रमुख रही है। तेलंगाना में पानी बहता है। मगर तेलंगाना के लोग उसका उपयोग नहीं कर पाते थे। यह बहुत बड़ी विडंबना रही है। अब तेलंगाना सरकार कलेश्वरम परियोजना से हर गांव में सिंचाई करने का इरादा है। इसका जीता जागता प्रमाण ही तेलंगाना में धान उपज है। अब नौकरियों की भर्ती की बात करें तो तेलंगाना आने के बाद कुछ स्थिरता स्थापित करने में कुछ समय लग सकता है। इसलिए सरकार अब छात्रों, बेरोजगारों, अनुबंध कर्मचारियों की भर्ती के लिए आवश्यक कदम उठा रही है। सरकारी कर्मचारियों को पीआरसी दिया है। कई विभागों में भर्तियां की जा रही है। अब ग्रुप वन, कांस्टेबल, एसआई, नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। ग्रुप 2 और ग्रुप 4 के नोटिफिकेशन आ रहे हैं। निधियों की बात करें तो हमारे राज्य में प्रशासन की दृष्टि से विकास का उद्देश्य सड़कें, भवन, प्रोजेक्ट आदि हो सकते हैं। पुराने दस जिलों के विकास के लिए धन आवंटित किया गया है।

हमने यागेश जी से बंगारू तेलंगाना के लिए सरकार, जनता और पत्रकारों के लिए आपके सुझाव देने को कहा तो उन्होंने कहा कि पृथक तेलंगाना गठन के बाद अनेक परिणाम सामने आये है। कुछ कठिनाइयां भी आई है। ऐसे समय में कहा जा सकता है कि सरकार ने चतुराई से काम लिया/किया है। यहां पर यह बात कही जा सकती है कि ऐसी चतुराई नहीं की गई होती तो एक बार फिर हमें दूसरों के शासन में जाने का खतरा था। बंगारू तेलंगाना की बात करें तो सरकार द्वारा दी जा रही रैतुबंधु योजना में कई कठिनाइयां हैं। किसान कितनी खेती कर रहा है यह नहीं देखा जा रहा है। उसके पास केवल एक एकड़ है तो 5000 रुपये दिया जा रहा है। क्योंकि एक एकड़ वाला किसान आर्थिक रूप से मजबूत होने के लिए रैतुबंधु है। मगर छोटे किसानों और ठेका किसानों को रैतुबंधु नहीं मिल पा रही है। ऐसे किसानों को भी प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही ऊगाई फसल के लिए दलालों के पास जाने के बजाये बेहतर होगा कि किसानों की फसल सीधे बाजार जाएं और बेहतर कीमत पाये। ऐसे करने से किसान धोखा का शिकार नहीं होंगे।

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एक अन्य सवाल के जवाब में याकेश ने कहा कि अगर हम पत्रकारों की बात करें तो हमें हंसी आती है। क्योंकि अतीत की पत्रकारिता की तुलना आज की पत्रकारिता से नहीं की जा सकती है। समाज में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकार, प्रेस मालिक, टीवी चैनल के मालिक यदि सरकार द्वारा दिए जा रहे विज्ञापन की उम्मीद न करें और पीत पत्रकारिता न करते हुए निडर होकर सच लिखें तो पत्रकारिता की भूमिका में कभी भी कमी नहीं आएगी, बल्कि पत्रकारिता का सम्मान और बढ़ेगा।

पहले सभी प्रकार की रिपोर्टिंग सत्य की खोज पर आधारित होती थी, लेकिन अब 24 घंटे का समाचार चैनल होने पर सब कुछ सच नहीं बता रहे हैं। समाज में पत्रकारों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। पहले जैसी पत्रकारिता अब नहीं है। हम याद कर सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने भी हाल ही में एक अवसर पर यह बात कही थी। क्योंकि अब पत्रकार सरकार का समर्थन करते हुए कई सच छुपा रहा है। मीडिया सरकार का समर्थन कर रहा है। आज का पत्रकार समाज की समस्याओं को प्रकट करने का साहस नहीं कर पा रहा है। सरकार से पूछने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहा है। समाचार पत्र, टीवी चैनलों को ध्यान से देखें कि उनका रुझान सरकार की तरफ है। यदि वे पीत पत्रकारिता नहीं करते है तो बहुत सम्मान मिलेगा। सोशल मीडिया के जरिए हर सच्चाई तेजी से सामने/फैल रही है। पल में सच्चाई बाहर आ रही है। मेरी राय है इस दौड़ में प्रिंट और टीवी चैनल निडर होकर काम करना चाहिए। तेलंगाना गठन इसी उद्देश्य से हुआ है। अनेक पत्रकारों ने इसीलिए संघर्ष किया है।

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