सूत्रधार साहित्यिक संस्था की भद्राचलम पर परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी सम्पन्न

हैदराबाद : सूत्रधार साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था, भारत की 12वीं मासिक गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया। मां शारदे का स्मरण करते हुए संस्थापिका सरिता सुराणा ने गोष्ठी प्रारम्भ की। तत्पश्चात् पधारे हुए सभी साहित्यकारों का स्वागत किया। नगर के जाने-माने कवि, नाटककार और निर्देशक सुहास भटनागर ने इस गोष्ठी की अध्यक्षता की।

राजस्थान के प्रसिद्ध कवि एवं गीतकार गोविन्द भारद्वाज ने मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई। कार्यक्रम का शुभारम्भ श्रीमती ज्योति नारायण द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। उसके बाद नगर के वरिष्ठ कवि एवं गीतकार दुलीचन्द जी शशि एवं नरेन्द्र कोहली जी को दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। यह गोष्ठी दो सत्रों में आयोजित की गई।

भद्राचलम मंदिर की स्थापना

प्रथम सत्र की शुरुआत करते हुए ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भद्राचलम मंदिर की स्थापना के बारे में जानकारी देते हुए सरिता सुराणा ने कहा कि वनवासियों में यह कहानी प्रचलित है कि दम्मक्का नाम की रामभक्त महिला ने इस मंदिर का अस्थायी निर्माण किया। बाद में कंचली गोपन्ना नामक राम भक्त ने वहां पर भव्य राम मंदिर का निर्माण करवाया। गोदावरी नदी के तट पर स्थित ‘श्री सीताराम स्वामी मंदिर’ को भक्त जन दक्षिण भारत की अयोध्या के नाम से जानते हैं। मान्यतानुसार श्रीराम ने अपने वनवास का एक लम्बा समय इस स्थान पर बिताया था। उस समय की ‘पर्णकुटी’ आज भी यहां पर ‘पर्णशाला’ के रूप में मौजूद है।

राम विवाह उत्सव

मुख्य वक्ता डॉ सुमन लता ने इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भक्त रामदास ने भद्राचलम क्षेत्र में रामनवमी के अवसर पर सम्पूर्ण जगत के कल्याण के लिए राम विवाह उत्सव का आयोजन भव्य रुप में आरम्भ किया था। लोगों द्वारा यह कहने पर कि भक्त रामदास ने राजकोष के धन से मंदिर का निर्माण करवाया है, क्रुद्ध होकर तत्कालीन निज़ाम द्वारा उन्हें गोलकोण्डा किले में बारह वर्ष तक कैद करके रखा गया था। भक्त रामदास सीता को अपनी आत्मजा मानते थे इसलिए उन्होंने स्वयं सीताजी के लिए मंगलसूत्र बनवाया था।

निजाम सरकार भारत संघ में विलीन

आज भी सीताराम कल्याणोत्सव पर राजा दशरथ और राजा जनक की ओर से बनवाए गए मंगल सूत्रों के साथ-साथ रामदास द्वारा बनवाए गए तीसरे मंगलसूत्र को भी सीता को पहनाया जाता है, जिसे हम प्रतिवर्ष देखते हैं। तनीषा सीताराम के विवाह के इस पावन अवसर पर प्रतिवर्ष रेशमी पीतांबर, असली मोती और गुलाल स्वयं लाकर समर्पित करता था। अपने बाद में आने वाली पीढ़ियों के लिए भी इसे अमल करने के लिए तनीषा ने फरमान जारी किया था। निजाम सरकार भारत संघ में विलीन होने तक इस प्रथा का नियमित रूप से पालन करती थी। बाद में प्रदेश सरकार भी आज तक इस परंपरा का पालन कर रही है। ज्योति नारायण और के राजन्ना ने भी इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। सभी सहभागियों ने इस सारगर्भित चर्चा को बहुत ही सफल बताया।

धन्यवाद ज्ञापन

दूसरे सत्र में सभी उपस्थित कवियों ने अपनी-अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के विभिन्न रंगों पर प्रकाश डाला। नगर द्वय की प्रसिद्ध कवयित्री एवं गीतकार विनीता शर्मा, डॉ. सुमनलता, सुनीता लुल्ला, ज्योति नारायण, प्रदीप देवीशरण भट्ट, सरिता सुराणा, संगीता शर्मा, दर्शन सिंह, संतोष रजा, विनोद गिरि, दिल्ली से रश्मि किरण और कटक, उड़ीसा से रिमझिम झा ने काव्य पाठ किया। गोविंद भारद्वाज ने दोहे और गीत प्रस्तुत किए। अंत में अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए सुहास भटनागर ने अपने चिर-परिचित अंदाज में अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर सभी को भावविभोर कर दिया। सभा का समापन संगीता शर्मा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

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