केंद्रीय हिंदी संस्थान में ‘साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन

हैदराबाद: केंद्रीय हिंदी संस्थान (आगरा), हैदराबाद केंद्र द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल विकास’ (दक्षिण भारत के साहित्य के विशेष संदर्भ में) के दूसरे दिन तृतीय तकनीकी सत्र ‘कन्नड़ साहित्य में मूलभूत कौशल’ के अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. टी. जी. प्रभाशंकर प्रेमी ने कन्नड़ साहित्य के इतिहास की पृश्ठभूमि को रेखांकित करते हुए कन्नड़ साहित्य के वचन साहित्य को स्पष्ट किया और कहा कि कौशल के बिना वचन साहित्य को नहीं समझ सकते। कन्नड़ साहित्य की शुरूआत ही कौशल से हुई है।

मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. उषा रानी राव ने जैन साहित्य और वचन साहित्य से लेकर आधुनिक साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल पर विचार व्यक्त किया। इस सत्र के वक्ता डॉ. एन. लक्ष्मी, डॉ. साहिरा बानो रहीं, संचालक डॉ. पंकज सिंह यादव ने किया। धन्यवाद ज्ञापन सुरेखा नंदनवाडे ने दिया।

समानांतर तकनीकी सत्र की अध्यक्षता को प्रो. आई. एन. चंद्रशेखर रेड्डी ने की उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में छात्रों के आंतरिक कौशलों पर प्रकाश डालते हुए भक्ति युग से आधुनिक युग तक के साहित्य में सम्मिलित मानवता कौशल पर बात की। मुख्य वक्ता डॉ. कमेलश कुमारी ने सामाजिक विविधताओं पर प्रकाश डालते हुए जीवन को सरल बनाने के लिए मूलभूत कौशल की महत्ता पर प्रकाश डाला। इस सत्र के वक्ता डॉ. सुपर्णा मुखर्जी व डॉ. पुंडलिक राठौड रहे। सत्र संचालन राजाराम रामू कोठावळे तथा धन्यवाद शेडगे सतिश बाबुराव ने दिया।

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चतुर्थ तकनीकी सत्र ‘मलयालम साहित्य में मूलभूत कौशल’ की अध्यक्ष प्रो. श्रीलता के. ने साहित्य में मूलभूत कौशल पर बात करते हुए मलयालम साहित्य के माध्यम से उसका विकास किस प्रकार हो इस पर चर्चा की तथा कल्पनाशीलता, प्रबंधनशीलता व तकनीकी कौशल के विकास पर भी प्रकाश डाला।

मुख्य वक्ता प्रो. प्रभाकरन हेब्बार इल्लत ने कुशलता के विकास के लिए प्रशिक्षण को आवश्यक बताया तथा कुशलता के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। वक्ता के रूप में डॉ. रीता दुबे, डॉ. वी. तारा नायर, डॉ. प्रेमचंद चव्हाण आभासी मंच से जुडे़। समानांतर तकनीकी सत्र की अध्यक्षता प्रो. बलीराम धापसे ने की। आपने अनुवाद कला से मूलभूत कौशल के विकास की चर्चा की तथा कहा कि सभ्यता और संस्कृति से जुड़े रहने के लिए कौशल अनिवार्य है। मुख्य वक्ता प्रो. मोहनन ने मलयालम साहित्य और समाज तथा विविध प्रदेशों की परंपरा को ध्यान में रखते हुए कौशल पर बात की। इस सत्र के वक्ता डॉ. पठान रहीम खान, सरिगा जे. रहे। इस सत्र का संलचान डॉ. दत्ता शिवराम साकोळे ने किया तथा धन्यवाद अभीजीत पोवार ने दिया।

इस दो दिवसीय संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ने की। मुख्य अतिथि के रूप में मामिडि हरिकृष्णा, निदेशक, भाशा तथा संस्कृति, विभाग, तेलंगाना राज्य, विशिश्टि अतिथि प्रो. रेखा रानी, इफ्लू, हैदराबाद तथा संयोजक प्रो. गंगाधर वानोडे, सह -संयोजक डॉ. फत्ताराम नायक मंच पर रहे।

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी, निदेशक, कें.हिं.सं., आगरा ने कहा कि जिस उद्देश्य को लेकर रचनाएँ लिखी जाती हैं। समाज द्वारा उसको उसी रूप में ग्रहण किया जाए तभी वह सार्थक सिद्ध होती है। समाज में नई-नई अवधारणाओं को स्थापित करते समय उसका मूल्यांकन अति आवश्यक है। उन्होंने कौशल विकास के मानदंडों पर विचार किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि कौशल विकास हमेशा से साहित्य के मूल में रहा है। ईश्वर द्वारा सभी को बराबर कौशल प्रदान किया गया है। किंतु उसका विकास स्वयं पर रहता है और यह निरंतर अभ्यास से संभव है। उन्होंने कौशल विकास का वर्गीकरण करते हुए उनके विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।

मुख्य अतिथि के रूप में मामिडि हरिकृष्णा, निदेशक, भाशा तथा संस्कृति, विभाग, तेलंगाना राज्य ने कहा कि हैदराबाद भारतीय संस्कृति का द्वार है भौगोलिक रूप से इसे दो धाराओं में देखा जाता है। यह शहर दक्खिनी का दिल है, तो हिंदुस्तान की धड़कन बनकर यहाँ की भाषाओं के द्वारा साहित्य में बहती है। उन्होंने अपने विचारों से आदिकाल से होते हुए वर्तमान तक की यात्रा पर अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने तेलंगाना एवं हरियाणा दोनों प्रदेशों को सांस्कृतिक रूप से देश की शान बताते हुए हिंदी की कई विधाओं का तेलुगु में अनुवाद एवं तेलुगु विधाओं का हिंदी एवं अन्य भाशाओं में अनुवाद पर जोर देते हुए भाषागत कौशल पर सार्वभौमिक विचार प्रकट किए।

विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. रेखा रानी, इफ्लू, हैदराबाद ने भाशा कौशल के माध्यम से साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। साहित्य में नारी के संघर्ष को सबसे ज्यादा प्रदर्शित किया गया है। नारी के वेदना-संवेदना कथाओं के माध्यम से समाज के सामने प्रदर्शित होते रहते हैं। सभी भाषाएँ अलग-अलग हो सकती हैं पर सभी के भाव एक होते हैं। नारी का स्वयं का कोई समाज नहीं है किंतु उसकी भूमिका पर कोई प्रश्नचिह्न भी नहीं लगा सकता। उन्होंने कौशल विकास को ध्यान में रखते हुए आज के साहित्यिक परिवेश में नारी की भूमिका पर प्रकाश डाला।

संगोष्ठी संयोजक प्रो. गंगाधर वानोडे ने कहा कि इस दो दिन के महायज्ञ में केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा द्वारा ‘साहित्य के माध्यम से मूलभूत कौशल’ को जानने की शुरूआत की गई थी वो अब एक आंदोलन का रूप ले चुकी है। अब समय आ गया है साहित्य को विभिन्न खेमों से निकालकर नई चिंतन दृश्टि से विचार करने की आवश्यकता है। हमारे ऋषि-मुनियों और संतों के साहित्य में मूलभूत कौशल को जानने के उनके विकास के प्रर्याप्त सूत्र मौजूद हैं जिन्हें पहचानने की आवश्यकता है।

संगोष्ठी के अंत में सह-संयोजक डॉ. फत्ताराम नायक केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद ने दो दिवसीय संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए उसकी सार्थकता तथा विषयगत परिचर्चा पर विद्वानों द्वारा दिए गए वक्तव्यों को सभी के सामने प्रस्तुत किया। डॉ. एस. राधा ने कोल्हापुर जिले के हिंदी अध्यापकों के सह कार्य के प्रति आभार व्यक्त किया। साथ ही उन्होंने सभी विद्वजनों, बाहर से पधारे श्रोतागण एवं संस्थान संरक्षक एवं कर्मचारियों का धन्यवाद ज्ञापन किया जिनके द्वारा किए गए प्रयास से यह दो दिवसीय गोष्ठी सफलतापूर्वक संपन्न हुई।

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