युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच की नौवीं संगोष्ठी, इस विषय पर रही केंद्रित, इन वक्ताओं ने डाली रोशनी

आज का सुविचार:- जो व्यक्ति अपनी मौत को हमेशा याद रखता है, वह सदा अच्छे कार्य में लगा रहता है। – डॉ बी आर अंबेडकर

हैदराबाद: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की नवम वर्चुअल संगोष्ठी 15 अक्तूबर आयोजित की गई। डॉ रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा ) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ जयप्रकाश तिवारी ने संगोष्ठी की अध्यक्षता की। वरिष्ठ साहित्यकार/कवि आचार्य संजीव वर्मा सलिल एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार/साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय मंचासीन हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ युवा रचनाकार वसुंधरा त्रिवेदी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात अध्यक्षा डॉ रमा द्विवेदी ने अतिथियों का स्वागत किया एवं संस्था का परिचय दिया।

प्रथम सत्र ‘अनमोल एहसास’ और ‘मन के रंग मित्रों के संग’ दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ। संगोष्ठी का संचालन युवा साहित्यकार शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वारा किया गया। अनमोल अहसास के अंतर्गत संगोष्ठी का विषय ‘साहित्य जगत की महीयशी महादेवी वर्मा जी’ के व्यक्तित्व और कृतित्व को समर्पित रहा। मुख्य वक्ता सुप्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य संजीव वर्मा सलिल ने विषय पर प्रकाश डालते हुए महीयशी महादेवी वर्मा जी की जीवन शैली की बारीकियों को बताया। उन्होंने कहा, “महीयसी महादेवी वर्मा जी विद्वता, तेजस्विता तथा शुचिता की जीवंत त्रिवेणी थीं। उनके दर्शन मात्र से किसी तपस्विनी के नैकट्य की प्रतीति होती थी। अमलतास, धवलता तथा निर्मलता की पर्याय रही हैं महीयसी। उनके कक्ष में प्रवेश करने पर किसी तीर्थ स्थल की सी प्रतीति होती थी।

सफेद दीवारें, सफेद चादर, सफेद तकिया, सफेद वस्त्र, गौरांगी महीयसी और गौर धवल घनश्याम। उनकी धवलता ने श्याम को भी गौर कर दिया। इसी को कहते हैं भगत के बस में हैं भगवान। मेरे पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों का सुफल पूज्य बुआ श्री के हाथों से फुल्के खाने, उनके चरण चापने, आशीष पाने और अगिन संदर्भों में चर्चा करने का सौभाग्य मिला है। महादेवी जी हिंदी या भारत ही नहीं, विश्व और मानवता की धरोहर हैं। उनमें सीता का तप, गार्गी की विद्वता, मीरा का वैराग और लोपामुद्रा की कर्मठता एक साथ सुलभ थी।”

विशिष्ट वक्ता व्यंग्यकार/ साहित्यकार आदरणीय रामकिशोर उपाध्याय ने विषय पर अपने सारगर्भित शब्दों से महादेवी जी कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा, ” हिंदी काव्य के धरातल को अपनी विशिष्ट छायावादी शैली से निरन्तर सिंचित करने वाली महीयशी महादेवी वर्मा ने नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, दीप शिखा जैसे अपने काव्य संकलनों में लगभग सवा दो सौ गीत प्रस्तुत किये। यह एक महान उपलब्धि है। उन्होंने काव्य साधना के लिये एक ही दिशा पकड़ी। उनकी कविताओं में अन्य छायावादी कवियों के बनिस्पति अलौकिक प्रेम अथवा रहस्यवाद अधिक मुखरित हुआ। अलौकिक प्रेम में संयोग की संभावना कम रहती है और वियोग की वेदना ही प्रमुख होती है।

प्रणय पीड़ा कितनी ही गम्भीर क्यों न हो उसमें मिलन की मधुरता का भाव मिश्रित रहता है। महादेवी वर्मा की रचनाओं से गुजरते हुए हम उनके इस मधुमय पीड़ा के सागर में स्वयं को डूबते उतराते पाते हैं। उनकी गद्य रचनाओं का संसार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। फिर भी काव्य में मधुमय पीड़ा की सशक्त अभिव्यक्ति करने वाला उनके अलावा दूसरा कोई वर्तमान साहित्यकार दृष्टिगोचर नहीं होता। यदि मैं महादेवी वर्मा को मधुमय पीड़ा की सशक्त अभिव्यक्ति का पर्याय कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगा।”

डॉ रमा द्विवेदी ने महादेवी जी के सुप्रसिद्ध गीत ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ का सस्वर काव्यपाठ किया।
प्रमुख वक्ता आचार्य संजीव वर्मा सलिल, विशिष्ठ वक्ता श्री रामकिशोर उपाध्याय एवं अध्यक्ष डॉ जयप्रकाश तिवारी का परिचय क्रमशः डॉ सुरभि दत्त, दीपा कृष्णदीप तथा शिल्पी भटनागर ने दिया। तत्पश्चात मन के रंग मित्रों के संग में दीपा कृष्णदीप ने साहित्यकार स्व रविमोहन ठाकर एवं साहित्यकार स्व वीणा धगट एवं कृष्ण कुमार धगट का परिचय प्रस्तुत किया।

काव्य प्रतियोगिता- 2022 के परिणाम की घोषणा करते हुए डॉ रमा द्विवेदी नेकहा कि डॉ सुरभि दत्त को ‘स्व रविमोहन ठाकर साहित्यकार पुरस्कार- 2022’ एवं बिनोद गिरि अनोखा जी को ‘स्व वीणा-कृष्ण धगट साहित्य पुरस्कार- 2022’ प्रदान किया जाएगा। इस पुरस्कार के रूप में 1100 रुपए की धन राशि एवं सम्मानपत्र दोनों विजेताओं को दी जाएगी। संस्था द्वारा वरिष्ठ गीतकार विनीता शर्मा को महादेवी वर्मा शीर्ष सम्मान एवं सुनीता लुल्ला को विष्णु पराड़कर गैर हिंदी भाषी साहित्यकार सम्मान के लिए चयनित होने के लिए बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित की गईं|

अध्ययक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ समीक्षक डॉ जयप्रकाश तिवारी ने महीयशी महादेवी वर्मा जी के आध्यात्मिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा, “महादेवी जी के काव्य में यद्यपि शून्य शब्द की आवृत्ति अनेकों बार और बहुलता से हुई है किंतु महादेवी का शून्य तत्व है, मात्र शब्द नहीं। वह भाव है, वह शून्य ऐसे शून्य का वाचक है जिसमे अनंत सुषुप्त है। वह अक्षय ऊर्जा का भंडार है। वहाँ ऊर्जा स्थिज ऊर्जा रूप में है जहाँ उसका गणितीय मान भले ही शून्य है किंतु आंतरिक मूल्य गतिज ऊर्जा के ही बराबर है, उससे न्यून नहीं। महादेवी जी के आराध्य परब्रह्म है, अव्यक्त, शून्य निवासी है, अप्रकट है, वही व्यक्त होकर सृष्टि बन जाता है और सृष्टि में ही महादेवी उस प्रियतम का दर्शन करती हैं|” तत्पश्चात उन्होंने सफल कार्यक्रम की शुभकामनाएं दीं एवं अध्यक्षीय काव्यपाठ किया।

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर काव्य पाठ किया। आचार्य संजीव वर्मा सलिल, डॉ सुरभि दत्त, भावना मयूर पुरोहित, शिल्पी भटनागर, बिनोद गिरि अनोखा, डॉ सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, विनीता शर्मा, मोहिनी गुप्ता, सी पी दायमा, संतोष रज़ा, तृप्ति मिश्रा, रामकिशोर उपाध्याय, डॉ संगीता शर्मा एवं सूरज कुमारी गोस्वामी ने काव्य पाठ किया। डॉ आशा मिश्र, प्रवीण प्रणव, अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली) दर्शन सिंह, अमर चंद जैन ने अपनी उपस्थिति दर्ज की। विद्युलेखा (विदिशा), इंदुलेखा (श्रीकाकुलम), शेख शाहजाद उलमानी, सरला वर्मा, प्रीति त्रिवेदी (इंदौर), सुनील धगट (जबलपुर), जानकीराम ठाकर (श्रीकाकुलम), रंजना ठाकर (श्रीकाकुलम), मेघा दवे (दमोह), युवी भटनागर, संतोष शुक्ला, पूनम झा एवं हेमनाथ ठाकर बतौर श्रोता उपस्थित रहे। संगोष्ठी का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने किया तथा दीपा कृष्णदीप (महासचिव) ने आभार ज्ञापित किया।

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