अगर हमारे शव आते तो क्या आप लाल झंडों के साथ जुलूस निकालते? माओवादी आशन्ना ने कोवर्ट आरोपों का किया खारिज

हैदराबाद: हाल ही में झारखंड सरकार के सामने हथियार सौंपने वाले (?) रूपेश उर्फ ​​सतीश उर्फ ​​आशन्ना ने माओवादी पार्टी की ओर से उनके आत्मसमर्पण पर लगाए गए आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने इन आरोपों की भर्त्सना की कि वे माओवादी पार्टी में कोवर्ट रूप से काम किया है। वे इस बात से नाराज़ है कि लोकतांत्रिक और नागरिक अधिकार संगठनों के नेता इस मामले में अपनी सीमा से बाहर जाकर उनके ख़िलाफ़ बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि आपको नहीं पता कि अंदर क्या हो रहा है और सशस्त्र संघर्ष स्थगित करने का फ़ैसला उस समय की मौजूदा स्थिति को देखते हुए लिया गया, जब पार्टी के महासचिव नंबाल्ला केशव राव जीवित थे। उन्होंने कहा कि इसमें हमारा कोई निहित स्वार्थ नहीं है और हम जल्द ही अपनी आगे की रणनीति की घोषणा करेंगे।

मल्लोजुला वेणुगोपाल और वह अपने अनुयायियों के साथ पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया। वह क्रांति-विरोधी हैं और उन्होंने पार्टी को नुकसान पहुँचाया है। इस आरोप पर आशन्ना ने हाल ही में माओवादी पार्टी के उस बयान पर वीडियो संदेश में प्रतिक्रिया दी। हमें लगा कि माओवादी पार्टी की केंद्रीय समिति के किसी भी सदस्य को देशद्रोही कहा जाना सामान्य बात है। इसलिए हमें इस पर प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत नहीं थी। आशन्ना ने कहा कि हमने यह वीडियो उन आरोपों का जवाब देने के लिए बनाया है कि हाल ही में माओवादी पार्टी को हुए नुकसानों के लिए हम ज़िम्मेदार हैं और हमने कोवर्ट की तरह काम किया है।

वीडियो बस्तर टॉकीज से साभार

आशन्ना ने आगे कहा कि जब जंगल से भूमिगत का रास्ता छोड़ने के फ़ैसले पर तब दो विकल्पों पर चर्चा हुई। वह सशस्त्र विराम या शांति वार्ता। हालाँकि सशस्त्र संघर्ष विराम के रूप में ही सामने आने का फ़ैसला हुआ। यह सब अप्रैल-मई के महीने में पार्टी के महासचिव बसवराज दादा (नम्बाल्ला केशव राव) के नेतृत्व में चर्चा हुई थी, जब वे जीवित थे। अब मृतक नम्बाल्ला केशव राव वापस आकर कुछ नहीं कह सकते। इसलिए उन्होंने आलोचना की कि अब कुछ लोग बिना सोचे समझे कुछ भी लिखते जा रहे हैं।

आशन्ना ने यह भी कहा कि हमारे साथ आए कामरेडों को बाहर आने के लिए मजबूर नहीं किया गया था, बल्कि मौजूदा हालात को देखते हुए अपनी बंदूकें डालने के लिए गये फ़ैसले के अनुसार ही वे बाहर आए थे। मल्लोजुला और आशन्ना की बात सुनकर बाहर नहीं आए है। वे सभी हालात को समझने के बाद बाहर आए है। उन्होंने कहा कि सभी केंद्रीय समिति के नेता आत्मसमर्पण प्रक्रिया से अवगत हैं, लेकिन दक्षिण के नेताओं को इस मामले में ग़लत जानकारी दी गई है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग अब झूठ फैला रहे हैं कि नंबाल्ला केशव राव ने सशस्त्र संघर्ष बंद करने के अपने फ़ैसले को वापस ले लिया है।

आशन्ना ने कहा कि नंबाल्ला द्वारा 18 मई को अपना आखिरी पत्र भेजे जाने के बाद मुठभेड़ हुई। उन्होंने कहा कि इस मुठभेड़ के कुछ दिन बाद, उन्होंने देवजी के साथ केंद्रीय समिति के नेताओं से मुलाकात की। मैंने उन्हें नंबाल्ला का पत्र दिखाया जो उन्हें लिखा था। उन्होंने कहा कि दादा ने सशस्त्र संघर्ष बंद करने के बारे में मेरी शंकाओं का समाधान किया था। उन्होंने कहा कि उस पत्र में उन्होंने कहा था कि हम पार्टी और क्रांतिकारी आंदोलन को बचाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि हमने कोई गलत फैसला नहीं लिया और सही काम किया।

आशन्ना ने कहा कि बेहतर होता कि सशस्त्र संघर्ष बंद करने के संबंध में नम्बाल्ला केशव राव द्वारा केंद्रीय समिति के नेताओं को लिखे गए पत्र की समीक्षा की होती, लेकिन 13 मई को भेजा गया पत्र अभी तक बाहर नहीं आया है। यह पत्र मल्लोजुला को भी नहीं दिया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि महासचिव द्वारा लिखा गया यह पत्र एक-दो लोगों ने पढ़ा और केंद्रीय समिति के अन्य सदस्यों को नहीं दिया। नम्बाल्ला ने उस पत्र में क्या कहा होगा, यही समझने की बात है कि उस पत्र में यही लिखा है। अब वे कह रहे हैं कि नम्बाल्ला ने अपना निर्णय वापस ले लिया है। लेकिन अब जब वे शहीद हुए है, तब दादा भी इसी निर्णय पर कायम थे।

आशन्ना ने कहा कि यह पूरी तरह सच नहीं है कि हम बिना किसी की उद्देश्य से बाहर आए है। बैठकें होनी थीं, लेकिन बैठकों के लिए हालात ठीक नहीं थें। अब तक हमारा व्यवहार क्या रहा है? उन्होंने सवाल किया कि कौन सा स्वार्थ हमें यह सब छोड़ने पर मजबूर कर रहा है। उन्होंने कहा कि हममें अभी भी क्रांतिकारी भावना है और हम पूरी तरह से गिरकर वैसा व्यवहार नहीं कर रहे हैं। नम्बाला केशव राव की मौजूदगी में इस प्रक्रिया पर फैसला लिया गया था और मौजूदा हालात को देखते हुए हमें केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की बात करने वाली टीम यह काम नहीं करती है। क्योंकि उनमें वह ईमानदारी नहीं है। इसीलिए वे वह काम नहीं करते है। उन्होंने कहा कि हमें पार्टी की तरफ से यह करना चाहिए। अगर कोई इसका समर्थक हैं, तो हम उनका समर्थन करने के लिए तैयार है। अगर आपको हमारी बात पर विश्वास नहीं है, तो आप खुद ही कीजिए। उन्होंने कहा कि हमने कुछ भी गलत नहीं किया है। मैं किसी भी मुद्दे पर स्पष्टता के लिए कहीं भी आने को तैयार हूँ। मुझे कोई डर नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे द्वारा लिए गए फैसले का देश के 99 प्रतिशत लोग स्वागत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हम जंगलों में हैं। इसीलिए हमें नहीं पता कि लोगों की क्या राय है। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई विचार नहीं है कि यह वीडियो जारी करके इसे और कमजोर कर दें।

आशन्ना ने आलोचना की कि बाहर के कुछ लोग हमारे खिलाफ अनाप शनाप बक रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि लोकतंत्र और मानवाधिकार संघ के नाम पर कुछ लोग इतनी जल्दबाजी क्यों कर रहे हैं। क्या नागरिक अधिकार संघ के नेता बिना किसी पुष्टि के बोलना सही है? हम अभी भी उपलब्ध हैं ना? हम मिलकर इसकी पुष्टि कर सकते हैं। आप सोच रहे होंगे कि सब मर गए तो हम कैसे बचे है? हमसे मिलकर इसका समाधान पा सकते हैं। मैं कैसे बचा और मुझे कौन बचाया। हम कैसे- कैसे खतरों से बाहर आये हैं आपको बताते हैं।

नागरिक अधिकार संघ के अध्यक्ष गड्डम लक्ष्मण का पहले भी सम्मान किया और अब भी सम्मान करते हैं। हालांकि, मंचों पर जो मन में आये वह बोलना ठीक नहीं है। नागरिक अधिकार संघ में रहते हुए आपको क्या करना चाहिए? और अब आप क्या कर रहे हैं? आपका दायरा क्या है? आप पार्टी के अंदरूनी मामलों में आकर बात कर रहे हैं। दोनों पक्षों की बात सुननी चाहिए और किसी नतीजे पर पहुँचना चाहिए। हैदराबाद में बैठे बुद्धिजीवी कहते हैं कि आंदोलन के लिए हथियार ज़रूरी हैं। लेकिन यहाँ के लोग तेलंगाना के हैं। सवाल किया कि अगर हमारी लाशें आती हैं, तो क्या आप लाल झंडे लेकर जुलूस निकालते?”

आशन्ना ने सवाल किया कि जब सारे रास्ते बंद हो जाते है, तो किस उद्देश्य के लिए हम जान की कुर्बान दें? समझदारी से काम लेना चाहिए। मूर्खतापूर्ण बातें नहीं करनी चाहिए। हम स्वार्थी नहीं हैं और हममें अभी भी क्रांतिकारी भावना अब भी जिंदा है। हम लोगों के बीच काम करना चाहते हैं। हम पर विश्वास करना चाहिए। हम जन संघर्ष में हिस्सा लेने के लिए तैयार है। हमने परिस्थितियों के अनुसार काम करने का यह फैसला लिया है। कईं लोग सुझाव दे रहे हैं और उन सबके सहयोग से आगे की कार्रवाई की घोषणा की जाएगी।

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మా శవాలు వస్తే ఎర్ర జెండాలతో ఊరేగిద్దామనా? కోవర్టు ఆరోపణలకు ఆశన్న కౌంటర్

హైదరాబాద్ : తమ లొంగుబాటుపై మావోయిస్టు పార్టీ చేసిన ఆరోపణలకు రూపేశ్ అలియాస్ సతీశ్ అలియాస్ ఆశన్న సంచలన వ్యాఖ్యలు చేశారు. తాము మావోయిస్టు పార్టీలో కోవర్టులుగా పని చేశామంటూ వచ్చిన ఆరోపణలను ఆయన ఖండించారు. ఈ విషయంలో ప్రజాస్వామ్యవాదులు, పౌరహక్కుల సంఘం నేతలు తమ పరిధి దాటి తమపై మాట్లాడుతున్నారని మండిపడ్డారు. లోపల ఏం జరుగుతుందో మీకు తెలియదని, ప్రస్తుతం ఉన్న పరిస్థితుల నేపథ్యంలోనే పార్టీ ప్రధాన కార్యదర్శి నంబాళ్ల కేశవరావు బతికుండగా తీసుకున్న నిర్ణయమే సాయుధపోరాట విరమణ అన్నారు. ఇందులో మాకు ఎలాంటి స్వార్థం లేదని త్వరలోనే మా భవిష్యత్ కార్యచరణ ప్రకటిస్తామన్నారు.

పోలీసుల వద్ద తమ అనుచరలుతో సరెండర్ అయిన మల్లోజుల వేణుగోపాల్, ఆశన్నలు విప్లవద్రోహులు, వారు పార్టీకి నష్టం కలిగించారని మావోయిస్టు పార్టీ చేసిన స్టేట్ మెంట్‍పై తాజాగా ఆశన్న స్పందించారు. ఈ మేరకు లొంగిపోయిన మావోయిస్టులతో కలిసి ఉన్న ఓ వీడియోను విడుదల చేశారు. మావోయిస్టు పార్టీ కేంద్ర కమిటీ సభ్యులు ఎవరు బయటకు వచ్చినా వారిని ద్రోహులు అనడం పరిపాటి అని ఈ విషయంలో తాము స్పందించాల్సిన అవసరం లేదని భావించాం. కానీ ఇటీవల మావోయిస్టు పార్టీకి జరిగిన నష్టాలన్నింటికీ తామే బాధ్యులమని, తాము కోవర్టులుగా పని చేశామనే ఆరోపణలు చేశారని దీనికి సమాధానం ఇవ్వాలని నిర్ణయించుకునే ఈ వీడియో చేస్తున్నట్లు ఆశన్న తెలిపారు.

అడవుల బాటను వదిలే ప్రక్రియ నిర్ణయం ఎలా ఉండాలి అనేది చర్చకు వచ్చినప్పుడు అది సాయుధపోరాట విరమణ రూపంలోనా లేక శాంతి చర్చల రూపంలోనా అని రెండు విధాలు చర్చకు వచ్చిందన్నారు. అయితే వీటిలో సాయుధపోరాట విరమణ రూపంలోనే బయటకు రావాలని నిర్ణయించామన్నారు. ఇదంతా ఏప్రిల్-మే నెలలో పార్టీ ప్రధాన కార్యదర్శి బస్వరాజ్ దాదా (నంబాళ్ల కేశవరావు) బతికున్నప్పుడే ఆయన నాయకత్వంలోనే చర్చించామన్నారు. కానీ చనిపోయిన నంబాళ్ల కేశవరావు మళ్లీ తిరిగి వచ్చి చెప్పలేరు కాబట్టి కొంత మంది ఏదేదో రాస్తున్నారని విమర్శించారు.

మాతో పాటు బయటకు వచ్చిన వారంతా బలవంతంగా బయటకు రాలేదని ప్రస్తుతం ఉన్న పరిస్థితులను బట్టి తుపాకులు వదిలిపెట్టాలని గతంలో జరిగిన నిర్ణయానికి అనుగుణంగా బయటకు వచ్చారని ఆశన్న చెప్పారు. మల్లోజుల, ఆశన్న చెబితే విని వచ్చిన వారు కాదన్నారు. పరిస్థితులను అర్థం చేసుకుని బయటకు వచ్చినవారన్నారు. లొంగుబాటు ప్రక్రియ సీసీ నాయకులందరికీ తెలిసిందే అని, అయితే ఈ విషయంలో దక్షిణ వైపు ఉన్న నాయకులకు సమాచార లోపం ఉందని చెప్పారు. సాయుధపోరాట విరమణ విషయంలో నంబాళ్ల కేశవరావు తన నిర్ణయాన్ని వెనక్కి తీసుకున్నారంటూ ఇప్పుడు కొంత మంది అబద్ధాన్ని ప్రచారం చేస్తున్నారని అన్నారు.

మే 18న నంబాళ్ల తన చివరి లేఖ పంపించిన తర్వాత ఆయన ఎన్ కౌంటర్ జరిగిందన్నారు. ఈ ఎన్‍కౌంటర్ జరిగిన కొద్ది రోజులకు తాను దేవ్ జీతో పాటు సీసీ నాయకులను కలిశానన్నారు. తనకు అందిన నంబాళ్ల లేఖను నేను వారికి చూపించానని తెలిపారు. సాయుధపోరాట విరమణ విషయంలో మనం ఏమైనా తప్పు చేశామా? అని నా సందేహాలపై ఆ లేఖలో దాదా సమాధానాలు ఇచ్చారని తెలిపారు. పార్టీని, విప్లవ ఉద్యమాన్ని కాపాడుకోవాలని మనం అనుకున్నామని అందులో రాశారని చెప్పారు. మనం ఏ తప్పు నిర్ణయం తీసుకోలేదని సరైన రీతిగానే వ్యవహరించామని పేర్కొన్నారన్నారు.

నంబాళ్ల కేశవరావు సాయుధపోరాట విరమణ విషయంలో సీసీ నాయకులకు రాసిన లేఖపై సమీక్ష చేస్తే బాగుండేదని కానీ మే 13న పంపిన ఆ లేఖ ఇంకా బయటకు రాలేదన్నారు. ఈ లేఖను మల్లోజులకు కూడా ఇవ్వలేదన్నారు. ప్రధాన కార్యదర్శి రాసిన ఈ లేఖను ఒకరిద్దరు చదువుకుని మిగతా సీసీ సభ్యులకు ఇవ్వలేదని ఆరోపించారు. ఈ లేఖను ఇతరులకు ఇవ్వకపోవడంతోనే నంబాళ్ల ఈ లేఖలో ఏం చెప్పి ఉంటారో అర్థం చేసుకోవాలన్నారు. నంబాళ్ల తన నిర్ణయాన్ని వెనక్కి తీసుకున్నారు అనే అర్థంలో ఇప్పుడు చెబుతున్నారని కానీ అమరుడు అయ్యేనాటికి దాదా ఇదే నిర్ణయంపై ఉన్నారన్నారు.

ఎవరి అనుతి తీసుకోకుండా చెప్పపెట్టకుండా బయటకు వచ్చామనేది పూర్తిగా వాస్తవం కాదన్నారు. సమావేశాలు జరగాల్సి ఉంది. కానీ మీటింగ్స్ జరిగే పరిస్థితులే లేవన్నారు. ఇంతకాలం మా ఆచరణ ఏంటి? ఈ ఆచరణ అంతా వదిలేసేలా ఏ స్వార్థం మమ్మల్ని ఇలా చేయిస్తోందని ప్రశ్నించారు. మాలో ఇంకా విప్లవతత్వం ఉందని మేమేమి పూర్తిగా దిగజారి పోయి వ్యవహరించడం లేదన్నారు.నంబాళ్ల కేశవరావు ఉండగా ఈ ప్రక్రియపై నిర్ణయం తీసుకున్నామని ప్రస్తుతం ఉన్న పరిస్థితుల దృష్ట్యా కేంద్ర ప్రభుత్వంపై ఒత్తిడి తీసుకురాగలమా దీనికోసం ప్రయత్నం చేద్దామన్నారు.

ప్రజాస్వామికవాదులు అనుకునే టీమ్ ఈ పని చేయదని, వాళ్లకు ఆ నిజాయితీ లేదని వారు ఆ పని చేయరన్నారు. మనం పార్టీవైపు నుంచే చేద్దామని మనకు ఎవరైనా సహకరించేవారు ఉంటే వారి మద్దతు తీసుకుందామన్నారు. మమ్మల్నీ నమ్మకపోతే మీరే చేయండి అన్నారు. మేము ఎలాంటి తప్పు చేయలేదని ఏవిషయంలోనేనా స్పష్టత కోసం ఎక్కడికి రమ్మన్నా వచ్చేందుకు నేను సిద్ధంగా ఉన్నానని భయటపడేది లేదన్నారు. మేము తీసుకున్న నిర్ణయాన్ని దేశంలోని 99 శాతం మంది ప్రజలు ఆహ్వానిస్తున్నారని చెప్పారు. అడవుల్లో ఉంటే ప్రజల అభిప్రాయాలేంటో తెలియడం లేదన్నారు. ఈ వీడియోను విడుదల చేయడం ద్వారా మరింత బలహీన పర్చాలనే అభిప్రాయం కూడా లేదన్నారు.

పార్టీ తానా అంటే తందానా అనేలా బయట కొంత మంది తయారయ్యారని ఆశన్న విమర్శించారు. ప్రజాస్వామిక వాదులు, మానవ హక్కుల సంఘం పేరు మీద ఉన్నవారు ఎందుకు తొందరపడుతున్నారని ప్రశ్నించారు. పౌర హక్కుల సంఘం వారు ఏ నిర్ధారణ లేకుండా మాట్లాడటం సరైనదేనా? మేము అందుబాటులోనే ఉన్నాం కదా? మమ్మల్ని కలిసి నిర్ధారణ చేసుకోవచ్చు కదా అని అన్నారు. అందరు చనిపోతే మేమెట్ల బతికామనేదే కదా మీ ప్రశ్న నాతో పాటు బయటకు వచ్చిన వారిని, ఇంతకాలం మేము ఉన్న ప్రాంతంలోని ప్రజలను కలిసి నిర్ధారణ చేసుకోవాలన్నారు. నేను ఎలా బతికాను, నన్ను ఎలా బతికించుకున్నారు, ఏయే ప్రమాదాల నుంచి బయటపడ్డానో వాళ్లే మీకు చెప్తారన్నారు.

గడ్డం లక్ష్మణ్ ను గతంలో గౌరవించామని ఇప్పుడూ గౌరవిస్తున్నామన్నారు. కానీ వేదికలు ఉన్నాయి కదా అని ఎలా పడితే అలా మాట్లాడితే సరికాదన్నారు. పౌరహక్కుల సంఘంలో ఉండి మీరు చేయాల్సింది ఏంటి? ఇప్పుడు మీరు చేస్తు్న్నది ఏమిటి? మీ పరిధి ఏమిటి? పార్టీ అంతర్గత విషయాల్లోకి వచ్చి మాట్లాడుతున్నారని మండిపడ్డారు. ఇరుపక్షాల వాదనలు విని ఓ నిర్ధారణకు రావాలి కదా అన్నారు. హైదరాబాద్ లో కూర్చున్న బుద్ధిజీవులు ఆయుధాలే ముఖ్యం అంటున్నారు. కానీ ఇక్కడున్న వాళ్లు తెలంగాణ వారు. మా శవాలు వస్తే ఎర్రజెండాలు పట్టుకుని ఊరేగింపులు చేద్దామనే కదా అని ఆశన్న ప్రశ్నించారు.

దారులన్నీ ముూసుకుపోయినప్పుటు ఏ లక్ష్యం కోసం ప్రాణ త్యాగం చేద్దామని ప్రశ్నించారు. విజ్ఞతతో వ్యవహరించాలి తప్ప మూర్ఖంగా మాట్లాడవద్దన్నారు. మేము ఎలాంటి స్వార్థానికి లోను కాలేదని మాలో ఇప్పటికీ విప్లవతత్వం ఉందని, ప్రజల్లో పని చేయాలని కోరుకుంటున్నామని మమ్మల్నీ నమ్మాలన్నారు. ప్రజల పోరాటంలో పాలుపంచుకుంటామన్నారు. పరిస్థితులకు తగినట్లు వ్యవహరించాలనే తాము ఈ నిర్ణయం తీసుకున్నామన్నారు. అనేక మంది సలహాలు ఇస్తున్నారని వారందరి సహకారం తీసుకుని భవిష్యత్ కార్యాచరణ ప్రకటిస్తామన్నారు. (ఏజెన్సీలు)

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