व्यक्ति की इच्छा के ख़िलाफ़ काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता- पूर्णिमा प्रांजल

कौशाम्बी में शोषण के विरुद्ध अधिकारों व डीएलएसए द्वारा प्रदत्त सेवाएं विषय पर साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का हुआ आयोजन

कौशाम्बी (डॉ नरेन्द्र दिवाकर की रिपोर्ट): राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्त्वावधान में डी. एन. इंटर कॉलेज चपरी आम, ओसा मंझनपुर कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश) में शोषण के विरुद्ध अधिकार एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रदत्त सेवाएं विषय पर विधिक साक्षरता एवं जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि अपर जिला जज सह सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण राष्ट्रीय पूर्णिमा प्रांजल ने राष्ट्रीय बालिका दिवस के बारे में जानकारी देते हुए कहा राष्ट्रीय बालिका दिवस लड़कियों के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने का एक महत्वपूर्ण दिन है। यह हमें याद दिलाता है कि समाज में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने और लड़कियों को समान अवसर देने के लिए हम सभी को मिलकर काम करना चाहिए। इस दिवस की शुरुआत भारत सरकार ने 2008 में की। इसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा लॉन्च किया गया।

बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य लड़कियों के प्रति समाज में व्याप्त भेदभाव को समाप्त करना और उन्हें समान अवसर प्रदान करना है। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के अवसर पर यह दिवस मनाया जाता है। साल 2024 बालिका दिवस की थीम “भविष्य के लिए लड़कियों का दृष्टिकोण” था। वहीं राष्ट्रीय बालिका दिवस 2025 की थीम है- ‘सुनहरे भविष्य के लिए बच्चियों का सशक्तीकरण’ है।

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मुख्य अतिथि ने शोषण के विरुद्ध अधिकारों के बारे में बताते हुए कहा कि शोषण के विरुद्ध अधिकारों के बारे में जानने से पहले शोषण क्या है यह जानना जरूरी है। शोषण शब्द का अर्थ किसी चीज़ का गलत या अनुचित तरीके से उपयोग करना, किसी व्यक्ति के श्रम का लाभ उठाने के लिए उसके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार करने के कार्य आदि है। शोषण के विरुद्ध अधिकार, भारत के संविधान में निहित एक मौलिक अधिकार है। यह अधिकार, लोगों को शोषण से बचाता है और उन्हें जबरन काम करने/करवाने से रोकता है।

इस अधिकार का उद्देश्य लोगों की गरिमा और स्वतंत्रता को सुरक्षित बनाए रखना है। शोषण के विरुद्ध अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में दिया गया है। इस अधिकार का उद्देश्य, लोगों को गुलामी, भिक्षावृत्ति, बाल श्रम, बंधुआ मज़दूरी आदि जैसी प्रथाओं से बचाना है। इस अधिकार के तहत, किसी भी व्यक्ति को उसकी इच्छा के ख़िलाफ़ काम करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह अधिकार, मानव तस्करी जैसे गंभीर अपराधों से भी निपटता है।

शोषण के ख़िलाफ़ बालकों के अधिकारों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अधिवेशन, किशोर न्याय अधिनियम, पॉक्सो अधिनियम और राष्ट्रीय बाल नीति आदि के अनुसार 18 वर्ष से कम उम्र के प्रत्येक बच्चे को बालक माना गया है। बच्चों को मारना, चिढ़ाना, मजाक करना, मजदूरी करवाना, उनके साथ छल करना, उनकी बात अनसुनी करना, अश्लील चित्र या किताब दिखाना, भद्दे इशारे करना, गाली-गलौच करना, डराना-धमकाना, तंग करना व बलात्कार आदि जैसे कृत्य अपराध की श्रेणी में आते हैं।

बाल अधिकारों के हनन को रोकने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 में शोषण के ख़िलाफ़ अधिकारों का प्रावधान है। अनुच्छेद 45 में बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है। बाल मज़दूरी (निषेध एवं नियमन) अधिनियम, 1986 के मुताबिक, 14 साल से कम उम्र के किसी बच्चे को किसी कारखाने या खदान में काम नहीं लगाया जा सकता। लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत, बालक के लिए मित्रतापूर्ण वातावरण बनाए रखने का प्रावधान है।

अगर आपको शोषण का सामना करना पड़े तो आप स्थानीय पुलिस स्टेशन या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण व तहसीलों में बने विधिक सहायता केन्द्रों में (कार्यरत पीएलवी से) शिकायत दर्ज करा सकते हैं। बेगार, बाल श्रम, मानव तस्करी, बंधुआ मज़दूरी, खराब कामकाजी परिस्थितियां, कम वेतन आदि शोषण के कुछ उदाहरण हैं। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रदान की जाने वाली निःशुल्क विधिक सहायता, पीड़ित को क्षतिपूर्ति योजना, आपदाग्रस्त लोगों की मदद आदि से संबंधित प्रदान की जाने वाली सेवाओं के बारे में भी विस्तार से बताया। इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्य श्रीमती शिल्पी सिंह, शिक्षक-शिक्षिकाएं, शशि त्रिपाठी, पीएलवी अनन्त प्रताप सिंह सहित सैकड़ों की संख्या में छात्र मौजूद रहे।

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