जयंती विशेष: स्वामी श्रद्धानंद का हत्यारा कौन, यह प्रश्न आज भी ज्यूं का त्यूं खड़ा है

[नोट- स्वामी श्रद्धानंद की जयंती (22 फरवरी) के अवसर पर स्वतंत्रता सेनानी पण्डित गंगाराम स्मारक मंच के चेयरमैन भक्तराम जी ने यह लेख प्रकाशनार्थ भेजा है। इस लेख के मूल लेखक गंगाराम जी अब इस दुनिया में नहीं है। राजस्थान से छपी पुस्तक में प्रकाशित गंगाराम जी का यह आलेख है। विश्वास है कि इतिहासकारों के लिए यह लेख लाभदायक साबित होगी। लेख में प्रकाशित विचार से संपादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है।]

1917 ईस्वी में महात्मा मुंशीराम स्वामी श्रद्धानंद बने। उन्होंने वानप्रस्थ त्याग संन्यास लिया। राष्ट्र सेवा से उठ विश्व सेवा करने बढ़े, “वसुधैव कुटुंबकम्” की साधना करने के लिए कांगड़ी की कामना त्याग दिल्ली आ बैठे। तब दिल्ली राजधानी बन चुकी थी। दिल्ली को डॉ. अंसारी, हकीम अजमल खान के साथ-साथ एक अच्छा नेता और मिला – स्वामी श्रद्धानंद के रूप में। स्वामी श्रद्धानंद तो आर्यसमाज द्वारा संसार का उपकार करने आए थे, इन नेताओं ने राष्ट्रीय समस्याएं हल करने के लिए उन्हें मिला लिया कांग्रेस में। कांग्रेस उस समय एकमात्र बड़ी राजनीतिक पार्टी थी।

राष्ट्रीय कांग्रेस मृतप्राय हो चुकी थी, जालियांवाला बाग में हुए अंग्रेजी अत्याचार से उसके निष्प्राण शरीर में चेतना लाने के लिए कांग्रेस महासभा का अधिवेशन अमृतसर में करने का निश्चय हुआ। उसके आयोजन की जिम्मेदारी लेने के लिए देश का कोई नेता तैयार नहीं था तब सबकी निगाहें पड़ीं स्वामी श्रद्धानंद पर। स्वामीजी को मना लिया उस समय के नेताओं ने। स्वामीजी के कारण 1919 में अमृतसर सेशन बड़ा ही सफल रहा। इसकी सफलता ने स्वामी श्रद्धानंदजी को कांग्रेसियों का एक बड़ा नेता सिद्ध कर दिया।

खि़लाफ़त आंदोलन को कांग्रेस ने जोड़ लिया देश की आजादी की लड़ाई के साथ, हिंदू – मुस्लिम एकता के नाम पर। उस समय दिल्ली स्वामी श्रद्धानंदजी के हाथों में थी। इस आंदोलन को अंग्रेज संगीनों से कुचलना चाह रहा था। तब सीना ताने सामने आए स्वामी श्रद्धानंद। स्वामीजी के साहस व नेतृत्व को देख अंग्रेजों की संगीनें झुक गईं। चांदनी चौक की इस घटना ने चार चांद लगा दिए स्वामी श्रद्धानंद जी के यश और कीर्ति को। इससे देश का बैठा मनोबल उठा और अंग्रेजों का साहस टूटा। इससे लाभ पहुंचा मुसलमानों को। वे बड़े प्रसन्न हुए। वह अपने कंधों पर उठा स्वामीजी को जामा मस्जिद लाये और मिम्बर पर खड़ा कर उनके वेद प्रवचन बड़ी ही श्रद्धा व भक्तिभाव से सुने। उनकी जय-जयकार की। इस्लाम के इतिहास में यह पहली घटना थी, जबकि ईश्वर की वाणी को मस्जिद में बैठकर मुसलमानों ने सुना था।

राष्ट्रीय स्तर पर एक काम और किया स्वामीजी ने। वह था देश के उन लाखों करोड़ों मुसलमानों, का जिनके पूर्वज चंगेज, तैमूर, खिलजी, तुगलक, औरंगजेब आदि की तलवार के डर से मुसलमान बने थे। जब आतंक जाता रहा तो वे हिंदू बनने का प्रयत्न करने लगे। इसमें खोजा, मेमन,मलकाने आदि मुसलमान ऐसे थे जो खान-पान, बेटी – व्यवहार, रीति-रिवाज, धर्म – कर्म से हिंदू ही थे। हिन्दू समाज उन्हें वापस लेने में हिचक रहा था। उन्होंने सुन रखा था कि आर्यसमाज के प्रवर्तक महर्षि दयानन्द ने जन्म के ईसाई मुसलमानों तक को अपने पवित्र हाथों से शुद्ध कर आर्य बनाया था। वे लोग यह भी जानते थे कि आर्य समाज ने उस काम को जारी रखा हुआ है। इसी ज्ञान के कारण वे आश्वस्त हुए। वे पहुंचे आर्यसमाज के पास। स्वामी श्रद्धानंद और महात्मा हंसराजजी के कुशल नेतृत्व में इस काम को आरंभ किया गया। परिणामस्वरूप 8 लाख मुसलमान हिंदू समाज में घुल – मिल गये। इस काम को सतत जारी रखने के लिए शुद्धि सभा की स्थापना स्वामी जी ने की।

राष्ट्रीय स्तर की एक समस्या और भी थी। वह थी छूत – छात की। यह विदेशी शासकों द्वारा फैलाई गई बीमारी थी, जिससे करोड़ों व्यक्ति अछूत माने जाने लगे थे। आर्यसमाज जन्म के आधार पर छूत – अछूत नहीं मानता। आर्यसमाज की इस बात को देश मानने को तैयार नहीं था, मौलाना मोहम्मद अली ने प्रधान के नाते कांग्रेस की ओर से हल बताया कि इन 7 करोड़ अछूतों को हिंदू और मुसलमान आधे – आधे बांट लें। इस बात का जोरदार विरोध किया स्वामी श्रद्धानंद ने।

उन्होंने बताया कि अछूत समान दर्जे के अधिकारी हैं। उन्हें जालिमों ने दलित बना दिया है। उनके उत्थान के लिए काम होना चाहिए। स्वामी जी ने ‘दलितोद्धार सभा’ बनाई और काम आरम्भ कर दिया। स्वामीजी ही के प्रयत्नों से अछूत कहे जानेवाले करोड़ों व्यक्ति विधर्मी बनाये जाने से बच गये और आज तक वे अपने पूर्वजों के धर्म पर टिके हुए हैं। स्वामी श्रद्धानंदजी के कारण ही आज देशभक्ति, शुद्धि, दलितोद्धार आदि काम आर्यसमाज के प्रबल अंग बने हुए हैं।

कांग्रेस, खि़लाफ़त, शुद्धि और दलितोद्धार के कामों से करोड़ों व्यक्तियों का विश्वास स्वामी श्रद्धानंद पर जमा। देश ने स्वामीजी को सबसे बड़ा गौरव और सम्मान दिया। यह बातें हैं सन 1921 – 22 की। उस समय नेता समझे जाते थे महात्मा गांधी, अली ब्रदर्स, मोतीलाल नेहरू, अब्दुल कलाम आजाद आदि। अपने साहस,कुशलता, तप और त्याग द्वारा स्वामी श्रद्धानंद का इस प्रकार राष्ट्रीय मैदान मारना इन नेताओं को नहीं भाया। ये नेता तिलक और जिन्ना को उग्रवादी तथा लाला लाजपतराय, एनी बेसेंट, मालवीयजी आदि को हिंदूवादी कहकर पीछे ढकेल देते थे। वे उपाय करने लगे कि कैसे स्वामी श्रद्धानंदजी के उभरते व्यक्तित्व को पीछे फेंका जाए।

उधर अंग्रेज भी चिंतित था आर्यसमाज की असंदिग्ध देशभक्ति और बेजोड़ राष्ट्रीय सेवाओं से। आर्यसमाज के नेताओं को वह देख चुका था। लाला लाजपतराय को जलियांवाला बाग में, स्वामी श्रद्धानंद को चांदनी चौक में, लाठियों, गोलियों और संगीनों के सामने सीना ताने देखा था। चौरीचौरा में उसके द्वारा हुई हिंसा का प्रतिकार भी वह देख चुका था। गांधीजी ने चौरीचौरा ग्राम के लोगों के प्रतिकार को हिंसा नाम दे, देश भर में चल रहे असहयोग आंदोलन बंद करने को कहा, युवकों ने गांधीजी की नहीं मानी और अंग्रेजों से सहयोग करने से इंकार कर दिया। हिंसा का प्रतिकार हर संभव उपायों से किया जायेगा, ऐसा युवकों ने व्रत लिया। उनका नेतृत्व कर रहे थे आर्यसमाज के युवक रामप्रसाद बिस्मिल,चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगतसिंह आदि।

अंग्रेजों ने देखा कि देश छोड़ने के दिन समीप आ रहे हैं।‌ उन्होंने यह भी देखा कि आर्यसमाज किसी भी मूल्य पर उससे समझौता नहीं कर सकता। तब उन्होंने एक योजना बनाई। हिंदू मुसलमानों को लड़ाने की। उसने मुसलमानों को थपथपाया। फिर क्या था ? देखते ही देखते देश भर में और विशेष कर मालाबार आदि में मुसलमान दंगे मचाने लगे। 1922 – 23 में इन दंगों से हिंदुओं को अपार क्षति पहुंची। स्वामी श्रद्धानंद चाहते थे कि कांग्रेस अंग्रेज और दंगाइयों का भंडा फोडें, ताकि जनता को सही ज्ञान हो। वह इनकी सहानुभूति न करें और दंगे समाप्त हो। स्वामी श्रद्धानंदजी की बात बहरे कानों में पड़ी। गांधीजी ने कहा कि मालाबार के अत्याचारों के पीछे अंग्रेजों का हाथ था… मुसलमानों का क्या दोष?

पुस्तक का कवर पेज। इसी पुस्तक में गंगाराम जी आलेख प्रकाशित हुआ था।

कांग्रेस ने एक समिति बनाई 1923 में हुए दंगों के कारणों को जानने के लिए। समिति के अध्यक्ष बने थे मोतीलाल नेहरू और उनके सदस्यों में एक थे मौलाना अब्दुल कलाम आजाद। मोतीलाल नेहरू ने रिपोर्ट दी कि हिंदू – मुसलमानों के दंगों के कारण हैं – स्वामी श्रद्धानंद।

इस रिपोर्ट को लेकर फ़िसादी मुसलमान, सत्ता के भूखे नेता और अंग्रेज अधिकारी तीनों ने मिलकर शोर मचाना आरंभ कर दिया। इनके निरन्तर गन्दे प्रचार से स्वामी श्रद्धानंदजी की उभरती छवि विकृत बन गई। पागल अब्दुल रशीद ने उनकी हत्या कर दी। प्रकट रूप से अब्दुल रशीद को सजा दी गयी। परन्तु इसके पीछे ‘कातिल दिमाग हत्यारा कौन ?’ यह प्रश्न आज भी ज्यूं का त्यूं खड़ा है।

– पंडित गंगाराम

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