विश्व भाषा अकादमी: बसन्तोत्सव काव्य गोष्ठी में लगे चार चांद

हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई द्वारा गत दिनों बसन्तोत्सव काव्य गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया। तेलंगाना प्रदेशाध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और पदाधिकारियों का हार्दिक अभिनन्दन करते हुए उन्हें वर्चुअल मंच पर आमंत्रित किया। पटना (बिहार) से शब्द सुमन साहित्यिक पटल के संस्थापक विख्यात साहित्यकार एवं कहानीकार श्री सतीश मापतपुरी जी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कटनी (मध्य-प्रदेश) से विख्यात साहित्यकार एवं गज़लकार ठाकुर सुभाष सिंह जी मुख्य अतिथि के रूप में और कटक (उड़ीसा) से श्रीमती रिमझिम झा विशेष अतिथि के रूप में मंच पर उपस्थित थे।

श्रीमती ज्योति नारायण की स्वरचित सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। तत्पश्चात् अध्यक्ष ने अपने स्वागत भाषण में विश्व भाषा अकादमी, भारत के उद्देश्यों और कार्यों के बारे में सभी को संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। उसके बाद ‘बसन्तोत्सव’ काव्य गोष्ठी आरम्भ हुई।

श्रीमती भावना पुरोहित ने अपनी रचना- ऋतुओं में मैं बसन्त हूं का पाठ किया तो आर्या झा न आया बसन्त मन भाया बसन्त जैसी सरस रचना प्रस्तुत की। मंजुला दूसी ने बसन्त ऋतु को दूसरे तरीके से परिभाषित किया। उन्होंने- जब भी किसी मजदूर की कुटिया में/दो दिन का भोजन उपलब्ध होता है/तब आता है उसके जीवन में बसन्त, सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया। प्रदीप देवीशरण भट्ट ने अपनी रचना- ओढ़कर पीली चुनरिया आ गई ऋतुरानी देखो की भावपूर्ण प्रस्तुति दी तो श्रीमती ज्योति नारायण ने अपना गीत कुछ इस अंदाज़ में प्रस्तुत किया- लेता जब सूरज अंगड़ाई, ऋतुराज बसन्त तब आता है/ सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

श्रीमती सरिता सुराणा ने बसन्त ऋतु पर अपनी रचना- फूली सरसों खेत मुस्काया/ सखी बसन्त आया का पाठ किया तो श्रीमती सुनीता लुल्ला ने अपने दोहे, मुक्तक और गज़ल प्रस्तुत करके सबको आनन्दित कर दिया। श्रीमती रिमझिम झा ने बसन्त ऋतु पर अपना गीत- तेरे अंगना बसन्त लेकर आऊं सजना जी/मन भाऊं सजना जी को सस्वर प्रस्तुत करके वातावरण को बसन्तोत्सव के रंग में रंग दिया। सुभाष सिंह ने अपनी रचना- अति मनभावन ऋतुपति आया/हरिताभा बन खुशियां लाया सुनाकर काव्य गोष्ठी को नई ऊंचाइयां प्रदान की।

अन्त में अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए श्री सतीश मापतपुरी ने अपनी शृगारिक रचनाओं को विशेष अन्दाज में प्रस्तुत करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने- हो गया जवां चमन, खिल गई कली-कली/आते ही बसन्त के महक गई गली-गली तथा आभा देख फिदा गगन, छाई अजब बसन्त बहार जैसी मनोरम रचनाएं प्रस्तुत की। उन्होंने सभी रचनाकारों की रचनाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि इतनी खूबसूरत रचनाएं सुनकर मन आनन्दित हो गया, आज वातावरण पूरी तरह बसन्तमय हो गया। श्रीमती ज्योति नारायण ने बहुत ही कुशलतापूर्वक काव्य गोष्ठी का संचालन किया। सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सहभागियों का हार्दिक आभार व्यक्त किया। आर्या झा के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।

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