हैदराबाद (सरिता सुराणा की रिपोर्ट): विश्व भाषा अकादमी, भारत की तेलंगाना इकाई की ओर से नवरात्रि पर्व के उपलक्ष्य में ‘मातृ शक्ति’ के सम्मान में एक काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया गया। हैदराबाद की प्रसिद्ध साहित्यकार और अनुवादक, तेलंगाना इकाई की परामर्शदाता डॉ सुमन लता ने इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता की। तेलंगाना इकाई की अध्यक्ष सरिता सुराणा ने सभी अतिथियों और सदस्यों का हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन किया।
ज्योति नारायण की सरस्वती वन्दना
अकादमी की गुजरात इकाई की अध्यक्ष श्रीमती उर्मिला पचीसिया और सचिव डॉ राखी सिंह कटियार, नेपाल से सुप्रसिद्ध कवयित्री श्रीमती करुणा झा और कटक, उड़ीसा से सुप्रसिद्ध कवयित्री एवं कहानीकार सुश्री रिमझिम झा विशेष अतिथि के रूप में गोष्ठी में उपस्थित थीं। तेलंगाना इकाई महासचिव ज्योति नारायण की सरस्वती वन्दना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।
मातृ शक्ति को नमन
तत्पश्चात् अध्यक्ष ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि आज की हमारी यह गोष्ठी मातृ शक्ति यानि ‘मां’ को समर्पित है। मां दैवी शक्ति भी है और मानवी भी। वह हर रूप में पूजनीय है, वन्दनीय है। तो आइए, आज उसी मातृ शक्ति को नमन करते हुए हम आज की काव्य गोष्ठी प्रारम्भ करते हैं।
वात्सल्य सरोवर
उन्होंने सभी सहभागियों के स्वागत में ये पंक्तियां प्रस्तुत की- वात्सल्य सरोवर-सी बहती वह/जीवन भर सब सहती वह/त्याग-तपस्या की देवी है वह/हर कुटुम्ब की सेवी है वह/करती है जिस साहस से/हर घाव को सहन/हे मातृ शक्ति तुम्हें नमन/हे मातृ शक्ति तुम्हें नमन!
भावना पुरोहित ने- तन की ज्योति, नेत्र ज्योति/मन की ज्योति, प्रेम ज्योति/आत्मा की ज्योति, पर ब्रह्म की ज्योति जैसी भावपूर्ण रचना का पाठ किया तो डॉ संगीता शर्मा ने- स्त्री है पाषाण बनकर इन्तज़ार करेगी/मात्र एक स्पर्श के लिए बरसों चट्टान बनी रहेगी, रचना का पाठ करके वाहवाही बटोरी।
अमानत हैं बेटियां
श्रीमती करुणा झा ने अपनी रचना- किसने कहा है कि अमानत है बेटियां/मुझे तो लगता है मन्नत है बेटियां, का बहुत ही सुन्दर ढंग से पाठ किया तो रिमझिम झा ने- गौरवर्ण, मृगलोचनी, सुरसरी/दीजिए अभय वर दीन-दुखियों को रचना प्रस्तुत की। सुनीता लुल्ला ने अपना गीत कुछ इस अन्दाज में पेश किया- टुकड़ों में यह दिन जाता है/चिंदी-चिंदी रात बसर। उर्मिला पचीसिया ने नारी की महिमा के बारे में अपने भावों को इस तरह व्यक्त किया- कोमल है, कमज़ोर नहीं तू/अर्द्धांगिनी है, असहाय नहीं/परिणीता है पराई नहीं।
सबसे बड़ी है मां की पूजा
डॉ राखी कटियार ने बेटियों को संबोधित करते हुए अपनी रचना का बहुत ही जोश के साथ पाठ किया- पंख फैलाते ही जान लो बिटिया/गिद्ध-बैरी को पहचान लो बिटिया। ज्योति नारायण ने मुक्तकों के द्वारा अपने भावों को अभिव्यक्त किया- सबसे बड़ी है मां की पूजा/कोई नहीं है मां-सा दूजा/देवों ने भी सबसे पहले/करी है अपनी मां की पूजा। सरिता सुराणा ने अपनी मां को समर्पित रचना- ममता की प्रतिमूर्ति है मां/समता की जीवन्त तस्वीर/सागर जैसा विशाल हृदय/अबोध बच्चे की तकदीर प्रस्तुत की।
लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ.सुमन लता ने कहा कि हमारे इतिहास में दृढ़ प्रतिज्ञ और साहसी वीरांगनाओं की गाथाएं भरी पड़ी हैं। नल-दमयंती की कथा, पन्ना धाय के बलिदान की गाथा तो लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना रानी के शौर्य की गाथाओं से हमें सीख लेनी चाहिए। उन्होंने इसी तरह के अनेक प्रसंगों के बारे में सभी को बहुत अच्छी जानकारी प्रदान की और अपनी रचना- दादी आई थी मोल्की बनकर/मां ने दहेज देकर/पिताजी के हाथ को थामा था, प्रस्तुत की।
ज्योति नारायण का संचालन और सुनीता लुल्ला का धन्यवाद ज्ञापन
तेलंगाना अकादमी के समस्त सदस्यों की ओर से एवं अतिथियों की ओर से डॉ सुमन लता को उत्तर-प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 2.5 लाख रुपए का ‘सौहार्द सम्मान’ प्राप्त होने पर हार्दिक बधाई दी गई और शब्द-पुष्पों द्वारा अभिनन्दन किया गया। ज्योति नारायण ने गोष्ठी का कुशलतापूर्वक संचालन किया और सुनीता लुल्ला के धन्यवाद ज्ञापन के साथ गोष्ठी सम्पन्न हुई।