पीके के कांग्रेस में शामिल नहीं होने पर तेलंगाना राजनीतिक का यह है चित्र

हैदराबाद : तेलंगाना कांग्रेस में प्रशांत किशोर (पीके) के आगमन से हड़कंप मच गया था। मुख्य रूप से पीके और टीआरएस के रणनीतिकार बन जाने के समझौता ने के बाद यह और गंभीर हो गया। अब पीके कांग्रेस पार्टी में शामिल नहीं होने का खुलासा होने के बाद कांग्रेसी नेताओं ने अलग-अलग विचार व्यक्त किया है। टीपीसीसी के रेवंत रेड्डी ने कहा कि पीके फैसले पर हमें अब तक आधिकारिक समाचार नहीं मिला है।

उन्होंने आगे कहा कि टीआरएस के साथ जो भी गठबंधन करेगा तेलंगाना कांग्रेस उसका विरोध करेगी। वह पीके हो या कोई और हो। कांग्रेस में शामिल होना नहीं होना यह उनका व्यक्तिगत फैसला है। कांग्रेस में शामिल हुए तो अच्छी बात है। नहीं आये तो और अच्छी बात है। आज के बयान से कांग्रेस के लिए स्पष्टता आई है।

इसी बीच कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता वीएच हनमंत राव ने भिन्न मत व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि कुछ कांग्रेस नेताओं ने पीके का विरोध किया है। साथ ही प्रगति भवन यानी केसीआर से मिलने के बाद पीके ने अपना मन बदल लिया है।

गौरतलब है कि बतमाम कयासों पर विराम लगाते हुए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव ठुकरा दिया है। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ कई दौर की बातचीत के बावजूद पीके को कांग्रेस में शामिल होना पसंद नहीं आया है।

अस्वीकार

पीके के सुझावों पर रिपोर्ट देने के लिए सोनिया गांधी ने आठ वरिष्ठ नेताओं की एक समिति बनाई थी। इस समिति में प्रियंका गांधी, दिग्विजय सिंह, पी चिदंबरम, अम्बिका सोनी, रणदीप सुरजेवाला, मुकुल वासनिक, जयराम रमेश व केसी वेणुगोपाल शामिल थे। पीके के साथ विस्तृत चर्चा के बाद इस कमेटी ने सोनिया गांधी को एक रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सोनिया गांधी ने एक अधिकृत एक्शन ग्रुप बनाने का फैसला किया था इसी ग्रुप का हिस्सा बनने का ऑफर पीके को दिया गया। पीके ने अस्वीकार कर दिया।

आइपैक

फिर भी अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि पीके अपने लिए क्या भूमिका चाहते थे। मगर यह कहा गया है कि कांग्रेस नेतृत्व के साथ पीके की किसी बड़े पद को लेकर बात चल रही थी इसीलिए महज एक कमिटी का सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव पीके को पसं नहीं आया। सबसे बड़ा पेंच टीआरएस जैसे कांग्रेस के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के साथ पीके की कंपनी आइपैक का काम करना था। इसके अलावा राज्यों में गठबंधन को लेकर पीके के कुछ प्रस्ताव कांग्रेस नेताओं को अवसरवादी और अव्यवहारिक लगे। कुछ नेता पीके के हाथों में चुनाव की जिम्मेदारी दिये जाने के भी खिलाफ थे।

प्रेजेंटेशन से प्रभावित

उल्लेखनीय है कि हालिया विधानसभा चुनावों के बाद प्रशांत किशोर ने नए सिरे से कांग्रेस नेतृत्व के साथ बातचीत शुरू की थी। पार्टी में बड़े बदलावों को लेकर विस्तार से सुझाव दिए थे। इससे पहले पिछले साल के मध्य में भी पीके कांग्रेस नेतृत्व के संपर्क में थे। कयास लगाए जा रहे थे कि इस बार पीके कांग्रेस में शामिल होंगे और उन्हें महासचिव जैसा अहम पद देकर चुनावों की जिम्मेदारी संभालने को कहा जा सकता है। क्योंकि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पीके की प्रेजेंटेशन से प्रभावित थे।

सुझाव

पीके ने कांग्रेस से लोकसभा की करीब 400 सीटों पर फोकस करने का सुझाव दिया था। साथ ही संगठन और जन संवाद की रणनीति में बड़े बदलाव के सुझाव भी दिए थे। इसके अलावा राज्यों में गठबंधन को लेकर पीके ने विभिन्न प्रस्ताव दिए थे।

सुझावों की सराहना

इससे पहले पीके के साथ बात विफल रहने की जानकारी साझा करते हुए कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने बताया कि प्रशांत किशोर के सुझावों पर चर्चा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का गठन करते हुए पीके को पार्टी में शामिल हो कर इस एक्शन ग्रुप (ईएजी) का सदस्य बनाए जाने का प्रस्ताव दिया जिससे उन्होंने इंकार कर दिया। हम उनके सुझावों की सराहना करते हैं।

प्रशांत किशोर का बयान

इसके फौरन बाद प्रशांत किशोर ने भी बयान जारी करते हुए कहा कि उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने और चुनावों की जिम्मेदारी लेने के कांग्रेस के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है। इसके साथ ही पीके ने तंज कसते हुए कहा कि मुझ से ज्यादा कांग्रेस को नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ताकि वह बदलावों के जरिए बुनियादी समस्याओं को दूर कर सके।

कांग्रेस

देखना होगा कि पीके के साथ बात नहीं बनने के बाद कांग्रेस की आगे क्या रणनीति होगी? कांग्रेस मई के दूसरे हफ्ते में उदयपुर में चिंतन शिविर आयोजित करने जा रही है और उसके कुछ महीनों बाद नए अध्यक्ष का चुनाव होना है। ज्ञातव्य है कि पार्टी में बड़े बदलावों की मांग कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता पहले ही कर चुके है।

केसीआर

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि रेवंत रेड्डी तेलंगाना में अपनी पकड़ मजबूत करने में सफल रहे हैं। अब देखना है कि वह बीजेपी और टीआरएस जैसे बड़े दलों का आने वाले चुनाव तक कैसी रणनीति अपनाते है। अब तक तेलंगाना के संकेत यह बता रहे है कि तेलंगाना में आने वाले चुनाव में बीजेपी, टीआरएस और कांग्रेस के बीच मुकाबला है। अन्य दल केवल वोट विभाजन की भूमिका निभाने वाले है। इसका फायदा ज्यादा तर टीआरएस होगा। क्योंकि केसीआर एक खुद रणनीतिकार है और चतुर भी है।

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