चाहे छत्तीसगढ हो या तेलंगाना हो या आंध्र प्रदेश हो या देश के किसी भी राज्य के कुछ क्षेत्र को ध्यान से देखने से हमें पता चलता है कि प्रकृति (वन) के बीच वास करने वाले आदिवासी माता (देवी) की आराधना (पूजा) करते हैं। आदिवासियों का जन जीवन को बाहर से देखने पर लगता है कि वे सब एक ही समूह के हैं। मगर उनमें काफी कबीले हैं। उनकी शाखा, कुल ,गोत्र और समूहों के आधार पर अलग-अलग देवताओं की आराधना करते हैं। अधिक तर आदिवासी माता की आराधना ही करते हैं। अधिकांश माताएं उन समूहों के पूर्वजों का होना उल्लेखनीय है।
नागरिक समाज में प्रचलित उत्सव, त्यौहार और कल्याणम् (शादी) आदि इन जन जातियों से की जाने वाली आराधना के तौर-तरीके बिल्कुल ही अलग और निराले होते और हैं। मंत्रोच्चारण, दिखावा, तनक-भनक बिल्कुल नहीं एक दूसरे से नहीं मिलती है। हर एक कबीले का अपना-अपना और अलग-अलग विधि-विधान है। कोया, चेंचु, कोलाम्, प्रधान, तोटी, आंद, मन्नेवार, नायकपोडु, कोंडारेड्लू, सवरलू जैसी अलग-अलग बत्तीस वर्ग (समूह) के आदिवासी बत्तीस देवी-देवताओं को पूजते हैं। एक राज्य (प्रदेश) में संपन्न होने वाली जातरा में आस पास के श्रद्धालू भाग लेते हैं।
मेडारम में सम्मक्का-सारलम्मा, आसिफाबाद में जंगूबाई, आदिलाबाद में नागोबा, छत्तीसगढ में दन्तेश्वरी, विशाखापट्टणम एजेंसी में धारालम्मा और महाराष्ट्र के चन्द्रपुर में महंकाली की जातरा सारे के सारे आदिवासियों की उत्सव हैं। महामाघी अर्थात माघ शुक्ल पूर्णिमा को आदिवासी अत्यन्त पवित्र मानते हैं। अतः पूर्णिमा के आसपास, याने जनवरी-फरवरी के महीनों में ये उत्सव संपन्न होते हैं। वन देवियों की जातरा में भाग लेने वाले भक्तों की संख्या पिछले चार-पांच दशकों से हर साल बढते ही जा रही है। आदिवासियों के साथ-साथ दूर-दराज इलाकों के अन्य श्रद्धालुों के जातरा में भाग लेने के कारण हजारों की यह संख्या अब लाखों में पहुंच गई है।
तेलंगाना में मेडारम जातरा
तेलंगाना के मुलुगु जिले मेडारम जातरा एशिया के सबसे बड़े आदिवासी जातराओं में से एक है। यहां भक्त सम्मक्का, सारलम्मा, जम्पन्ना, पगिडिद्दिराजू और गोविंदराजू को पूजा करते हैं। मेडारम जातरा में आने वाले भक्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। अधिकारियों ने बताया कि दो साल के अंतराल में होने वाले जातरा में लगभग 1.30 करोड़ भाग लेते हैं। यह संख्या और ज्यादा हो सकती है। वन-देवताएं वन में प्रवेश के साथ ही जातरा समाप्त हो जाती है। कन्नेपल्ली से सारलम्मा का आगमन और चिलकलागुट्टा से सम्मक्का का आगमन जातरा के कुछ मुख्य आकर्षण होते हैं। लाखों भक्तों का उत्साह, छत्तीसगढ़ से आने आदिवासी और गुत्तकोयला के नृत्य के बीच सरलाम्मा का आगमन अद्भुत होता है।
चन्द्रपुर में महाकाली जातरा
तेलंगाना के सीमांत महाराष्ट्र के चन्द्रपुर शहर गोदावरी नदी के उस पार है। यहां महाकाली जातरा भव्य रूप में मनाई जा है। गोंड समूह के लोग इस माता को ‘काली कंकाली’ भी कहते हैं। आत्रम वंशज महंकाली की जातरा को हर साल चैत्र के माह में तीन दिन तक आयोजि करते हैं। सम्मक्का और सारलम्मा की तरह, महाकाली को गोंड वन देवता के रूप में पूजते हैं। इस जातार में महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के करीब 20 लाख श्रद्धालू भाग लेते हैं।
महाराजगुड़ा में जंगुबाई जातरा
तेलंगाना और महाराष्ट्र के सीमांत क्षेत्र कोमुरमभीम आसिफाबाद जिले के केरमेरि मंडल के महाराजगुडा सह्याद्रि पर्वत क्षेत्र में जंगुबाई माता की आराधना और इसी मंडल के कस्लाई अंधेरी गुफा में विराजमान भीमदेव की हर साल विशेष पूजा की जारी है। जंगूबाई के नाम पर हर साल पुष्य माह में चंद्र के दर्शन होते ही (जनवरी के पहले सप्ताह) जातरा आरंभ होती है। तेलंगाना की सम्मक्का की जिस तरह कुंकुम भरिणा के रूप में पूजते है। वहीं जंगुबाई को दीपक और बाघ के रूप में पूजते हैं। गोंड समूदाय के श्रद्धालू माघ शुक्ल पूर्णिमा आते ही पूरे महीने तक जंगूबाई के नाम पर मालाओं का धारण करते हैं। इस जातरा में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ से लाखों आदिवासी भक्त दर्शन करने आते हैं। भीमदेव की जातरा भी पुष्य माह संपन्न होती है। गोंड, प्रधान, कोलाम समूदाय के आदिवासी भक्त अधिक मात्रा में आते हैं।
दंतेवाड़ा में दंतेश्वरी जातरा
छत्तीसगढ राज्य के बस्तर जिले के दंतेवाडा में दंतेश्वरी माता विराजमान हैं। दंतेश्वरी माता के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम दंतेवाडा है। देश के 52 शक्ति पीठों में माता दंतेश्वरी मंदिर की गणना होती है। यहां पर कोया समूदाय के आदिवासी हर साल फरवरी में तीन दिन तक इस जातरा का आयोजित करते हैं। प्रचलित लोक गाथाओं के अनुसार वे माता दंतेश्वरी की आराधना सम्मक्का के रूप करते हैं। मेडारम जातरा की तरह दंतेश्वरी मात को गुड और नारियल को भेंट के रूप में चढाते हैं। मुर्गे और बकरों की बलि चढाते हैं। दंतेश्वरी माता की जातरा में तकरीबन तीन लाख से अधिक भक्तगण शामिल होते हें।
लेखिका डॉ सुमन लता हैदराबाद (9849415728)