हैदराबाद: तेलंगाना में करीब दो महीने तक चला चुनाव प्रचार मंगलवार को शाम पांच बजे थम जाएगा। चूंकि इस बार तीन प्रमुख दलों के बीच लड़ाई अपरिहार्य हो गई। इसलिए दिल्ली के वरिष्ठ और शीर्ष नेताओं के दौरों से तेलंगाना के कई निर्वाचन क्षेत्रों में भीड़ देखी गई। सार्वजनिक सभाएं, रोड शो, रैलियाँ, नुक्कड़ सभाएँ, विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ आत्मीय सम्मेलनों का जमकर आयोजन किये गये।
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तेलंगाना इकाई के स्टार प्रचारक हिस्सा ले रहे हैं। इसी क्रम में बीआरएस की ओर से केसीआर, केटीआर, हरीश राव और अन्य चुनाव प्रचार भाग ले रहे हैं। बीजेपी की ओर से तीन दिवसीय तूफानी दौरा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा समेत कई केंद्रीय मंत्री और पार्टी नेता दिल्ली पहुंच गये हैं।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजे आने तक बीजेपी तेलंगाना में एक शक्ति के रूप में उभरी थी। जैसे बंडी संजय को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया, बीजेपी कमजोर हो गई। नामांकन वापसी की प्रक्रिया के बाद कांग्रेस और बीआरएस का चुनाव चुनाव प्रचार तेज हो गया है, मगर बीजेपी करीब तीन महीने तक प्रमुख गतिविधियों से दूर रही है।
चुनाव प्रचार के आखिरी दिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अलग-अलग चुनाव प्रचार कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे और शाम को दिल्ली लौट जाएंगे। केसीआर ने अब तक लगभग 90 जनसभाओं में भाग लिया है और आखिरी दिन वह वरंगल पूर्व और पश्चिम निर्वाचन क्षेत्रों के साथ चुनाव लड़ रहे गजवेल में अंतिम जनसभा को संबोधित करेंगे। करीब दो महीने से चल रहा चुनाव प्रचार मंगलवार शाम को खत्म हो जाएगा।
एक पार्टी की चरम सीमा तक आलोचना करने के अलावा टीवी चैनलों और अखबारों में नकारात्मक विज्ञापन देने की होड़ मच गई। पिछले चुनाव में बीआरएस ने सकारात्मक दृष्टिकोण से चुनाव प्रचार किया था, लेकिन इस बार कांग्रेस जीती तो भविष्य अंधकारमय हो जाने की बात को लोगों के बीच लेकर गई है। वहीं कांग्रेस ने एक बार फिर केसीआर सत्ता में आते है तो लोगों का जीवन दुर्भर हो जाने के मुद्दे को उठाया है।
प्रचार के विभिन्न तरीकों को चुनने वाले दलों के उम्मीदवार, प्रभारी और स्थानीय नेता मौन अवधि के दौरान मतदाताओं को लुभाने और आकर्षित करने की चालें शुरू करेंगे। कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में शोर-शराबे की बजाय इसकी शुरुआत हो चुकी है। गांवों में मतदाताओं के बीच यह आम चर्चा सुनने को मिल रही है कि प्रमुख दल प्रत्येक वोट के लिए दो हजार रुपये से लेकर अधिकतम दस हजार रुपये तक देने को तैयार रहते हैं।
कुछ जगहों पर बांटने के लिए जा रहे नोटों के बंडल मिले है। एक पार्टी के चुनाव प्रबंधन (प्रलोभन) की निगरानी दूसरी पार्टी द्वारा की जा रही है। एक प्रतियोगिता के रूप में वोट के बदले नोट बांटने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया है। यह प्रक्रिया तीसरी आँख को बिना पता चले गुप्त रूप से की जा रही है।