EWS: केंद्र के संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर, जारी रहेगा कोटा, जानिए खंडपीठ की राय

हैदराबाद: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (Economically Weaker Sections) को दिए गए आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर लग गई है। चीफ जस्टिस यूयू ललित के नेतृत्व में पांच जजों की खंडपीठ ने 3:2 से संविधान के 103वें संशोधन के पक्ष में फैसला सुनाया। हालांकि, चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटा के खिलाफ अपनी राय रखी। बाकी तीन जजों ने कहा यह संशोधन संविधान के मूल भावना के खिलाफ नहीं है।

गौरतलब है आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटे में सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आर्थिक आधार पर आरक्षण मिला हुआ है। इस फैसले को चुनौती दी गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर रोक लगाने से किया इनकार किया था। इस फैसले के साथ ही अब देश में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण जारी रहेगा।

चीफ जस्टिस यूयू ललित ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटे के खिलाफ राय रखी है। उन्होंने कहा कि वह जस्टिस भट के निर्णय के साथ हैं। इस तरह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का फैसला 3:2 रहा है। आपको बता दें कि चीफ जस्टिस का आज कार्यकाल का आखिरी दिन है।

जस्टिस रवींद्र भट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटे पर अलग रुख अपनाया है। जस्टिस भट ने कहा कि संविधान सामाजिक न्याय के साथ छेड़छाड़ की अनुमति नहीं देता है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटा संविधान के आधारभूत ढांचा के तहत ठीक नहीं है। जस्टिस भट ने कहा ये आरक्षण का लिमिट पार करना बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ है। जस्टिस भट ने कहा कि आरक्षण देना कोई गलत नहीं लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आरक्षण भी एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए।

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटा सही है। इसके साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटा को सुप्रीम कोर्ट की लगी मुहर। मैं जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस त्रिवेदी के फैसले के साथ हूं। उन्होंने अपने फैसले में कहाकि मैं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग संशोधन का सही ठहराता हूं। जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि हालांकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटा को अनिश्चितकाल के लिए नहीं बढ़ाना चाहिए।

जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने फैसले में कहा कि संविधान का 103वां संशोधन सही है। एससी, एसटी और ओबीसी को तो पहले से ही आरक्षण मिला हुआ है। इसलिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग आरक्षण को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है। इसलिए सरकार ने 10 फीसदी अलग से आरक्षण दिया। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने फैसले में कहा कि हमने समानता का ख्याल रखा है। क्या आर्थिक कोटा आर्थिक आरक्षण देने का का एकमात्र आधार हो सकता है। आर्थिक आधार पर कोटा संविधान की मूल भावना के खिलाफ नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट सोमवार को 103वें संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगा। इसमें प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के व्यक्तियों को 10 फीसदी आरक्षण प्रदान किया गया है। पीठ ने 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने इस मामले में मैराथन सुनवाई लगभग सात दिनों तक की थी। इसमें याचिकाकर्ताओं और (तत्कालीन) अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ईडब्ल्यूएस कोटे का बचाव किया था।

इससे पहले गोपाल ने तर्क दिया था कि 103वां संविधान संशोधन के साथ धोखा है। जमीनी हकीकत यह है कि यह देश को जाति के आधार पर बांट रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि संशोधन सामाजिक न्याय की संवैधानिक दृष्टि पर हमला है। उनके राज्य में, जो केरल है, उन्हें यह कहते हुए खुशी नहीं है कि सरकार ने ईडब्ल्यूएस के लिए एक आदेश जारी किया और शीर्षक जाति था और वह सभी देश की सबसे विशेषाधिकार प्राप्त जातियां थी। (एजेंसियां)

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