हैदराबाद (सुनिता लुल्ला की रिपोर्ट) : सुप्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था साहित्य सेवा समिति की 88 वीं मासिक गोष्ठी हाल ही में संपन्न हुई। गोष्ठी का संचालन डॉ अर्चना पांडे ने किया और कार्यक्रम का आरंभ शिल्पी भटनागर के सरस्वती वंदना से हुआ। सरस्वती वंदना के बाद सभा की महामंत्री सुनीता लुल्ला ने सभी सदस्यों का स्वागत किया और परिचय दिया।
प्रथम सत्र में चर्चा का विषय ‘लोगों का पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं में कम होती हुई रूचि और हिंदी साहित्य का भविष्य।’ रहा है। विषय का प्रतिपादन और प्रस्तुतीकरण किया डॉ अर्चना पांडे ने।
हमें पुस्तकों तक लौट कर आना ही होगा
अपने वक्तव्य में अर्चना ने बताया कि लोगों की कम होती हुई रूचि के बहुत से कारण है एक तो आज की पीढ़ी अपने व्यवसाय में इतना व्यस्त हैं कि उनके पास अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए समय नहीं है और उस समय की कमी को वह कैसे पूरा करें उन्हें ज्ञात नहीं है। उनका अधिकतर समय टेक्नोलॉजी के कारण टीवी और व्हाट्सएप इत्यादि में चला जाता है जो कुछ भी वह पढ़ना चाहते हैं वह उन्हें गूगल पर ऑनलाइन उपलब्ध है। इसलिए उन्हें लगता है की अपना धन और समय पुस्तकों में और पत्रिकाओं में क्यों लगाएँ। शायद उन्हें यह भी लगता है कि अधिक पुस्तकें और पत्र पत्रिकाएं रखने के लिए घर में बहुत ज्यादा जगह भी लग जाती है उन्हें संभालना रखरखाव करना भी कठिन है। इसके अलावा लोगों के संस्कार भी बदलते जा रहे हैं अगर हमारे संस्कार साहित्यिक हैं भारतीय हैं तो हम धार्मिक, अध्यात्मिक और साहित्य पुस्तकों का पत्र-पत्रिकाओं का पठन-पाठन जारी रखते हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है और इसके कारण घर का वातावरण असाहित्यिक होता जा रहा है। हमारी आगामी पीढ़ी हमारे बच्चों में भी वह सब संस्कार नहीं जा रहे हैं जो कभी बचपन में हमें मिले थे। इसीलिए बाजार में पुस्तकें और पत्र पत्रिकाएं खरीदना बेचना लगातार कम होता जा रहा है इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि हम अगर अपनी आगामी पीढ़ी को सुसंस्कृत करना चाहते हैं तो हमें पुस्तकों तक लौट कर आना ही होगा।
लोगों की अभिरुचि
तत्पश्चात सुनीता लुल्ला ने आज के प्रमुख प्रवक्ता हमारे युवा साहित्यकार, इंजीनियरिंग के पेशे से जुड़े, दिल्ली में स्थित अभिजीत पाठक को अपना वक्तव्य रखने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने अपनी पीढ़ी के दृष्टिकोण से विषय पर विस्तार पूर्वक चर्चा की उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भोजन बनाने वाले को यह देखना होगा कि भोजन हमारे स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक हो उसके साथ साथ बहुत स्वादिष्ट भी हो उसे विविध व्यंजन परोसे जाएं तभी वह खाएगा अर्थात अच्छे साहित्य को इस प्रकार प्रस्तुत करना होगा कि लोगों की अभिरुचि के साथ था वह उनके संस्कार को भी जागृत करें और उनकी रूचि बनाए रखें। विविध प्रकार के साहित्यिक विधाओं में बहुत कुछ हमारे पाठकों को दिया जा सकता है।
सेल फोन और गूगल इत्यादि में व्यस्त हो गई है
उन्होंने यह भी बताया कि जब हम छोटे थे तो हमारे घर में बहुत से पुस्तकें और पत्र पत्रिकाएं होते थे और हम गाहे-बगाहे पढ़ते थे। कभी-कभी अच्छा ना लगे तो भी समय व्यतीत करने के लिए पढ़ते थे उस समय टीवी इत्यादि नहीं थे, सेल फोन नहीं थे। आज की विडंबना यह है कि हर पीढ़ी बच्चों से लेकर बड़ों तक सेल फोन और गूगल इत्यादि में व्यस्त हो गई है तो अपनी रुचि को लगातार बनाए रखने का न तो वह प्रयास करते हैं और न ही सिंचन करते हैं। दूसरा एक कारण यह भी है किस साहित्य को बढ़ावा देने के लिए अच्छे पत्रकार अच्छी संस्थाएं और समाज का सहयोग भी कम होता जा रहा है।
आज भी अच्छा साहित्य उपलब्ध है
आज जो साहित्यकार है लेखक और कवि हैं उन्हें पर्याप्त उत्साहवर्धन नहीं मिल पा रहा है। अगर इस कमी को पूरा करें इस दूरी को पाट सकें तो अच्छा होगा। ऐसा भी नहीं है कि साहित्य का भविष्य अंधकार में है आज भी अच्छा साहित्य उपलब्ध है ई-पुस्तकों और ई- पत्रिकाओं में लिखने वाले पढ़ने वाले आज भी हैं, तो साहित्य आगे तो बढ़ रहा है लेकिन उनका माध्यम बदल गया है तो आगामी पीढ़ी को कुछ नए मार्ग से जोड़ना होगा। इस प्रकार अभिजीत जी ने एक सकारात्मक सोच के साथ अपने वक्तव्य का समापन किया।
साहित्य का परिमार्जन होना
तत्पश्चात कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ दया कृष्ण गोयल जी ने बताया कि किस प्रकार साहित्य का परिमार्जन होना चाहिए यह भी होना चाहिए कि लोगों में अच्छा साहित्य देकर उनकी रूचि का स्तर ऊंचा किया जाए और लगातार अच्छे साहित्य का संवर्धन करके उसकी पूर्ति की जानी चाहिए तो आज भी अच्छे साहित्य का निर्माण और अच्छे साहित्य का संवर्धन संरक्षण जारी रह सकता है।
पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने की आदत डालना भी आवश्यक
समिति के एक और वरिष्ठ सदस्य अवधेश सिन्हा जी ने बताया की यह तो सही है कि पुस्तक और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री और छपाई कम होती जा रही है लेकिन वह ऑनलाइन सदा उपलब्ध है फेसबुक पर कई संस्थाएं हैं जो लगातार लोगों के लिए अपने मंच खुले रखती हैं जहां साहित्यकार अपनी रचनाएं प्रेषित करते हैं और जिज्ञासु उन्हें पढ़कर समीक्षा और उत्साहवर्धन करते ही रहते हैं। इन सब बातों को देखते हुए हम यह तो आश्वस्त होते हैं कि साहित्य का भविष्य अंधकार में नहीं है लेकिन पुस्तकों और पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने की आदत डालना भी आवश्यक है।
सुनीता लुल्ला ने बताई राज की बात
एक और बात सुनीता लुल्ला ने बताई कि किस प्रकार पुस्तक और पत्रिकाओं की छपाई का खर्च इतना बढ़ गया है कि प्रकाशक तो उन्हें छपते नहीं बल्कि कवि और लेखक को ही स्वयं अपने खर्चे पर छपवाना पड़ता है और अपने परिचितों में बांटना पड़ता है। लोग उनको खरीदते नहीं हैं यह भी एक विडंबना है। फिर भी यह तो ज्ञातव्य है कि कई कवि और साहित्यकार अपनी पुस्तकें स्वयं प्रकाशित करवाते हैं और अपने परिचितों और मित्रों में बांटते हैं। ठीक है उन्हें धन का लाभ नहीं होता लेकिन आत्म-तुष्टि और अपने साहित्य को दूर-दूर तक भेजने का संतुष्टिकरण तो मिलता है। इस प्रकार आज की गोष्ठी का प्रथम सत्र समाप्त हुआ।
मातृ दिवस की बधाई
प्रथम सत्र की समाप्ति के बाद सुनीता लुल्ला ने आज की संचालिका डॉ अर्चना पांडे को आमंत्रित किया कि वह द्वितीय सत्र में कवि गोष्ठी का संचालन करें। गोष्ठी में सर्वप्रथम नगर की वरिष्ठतम कवयित्री विनीता शर्मा के काव्य पाठ से हुआ जिन्हें कई वर्षों से कई दशकों से पाठक वर्ग का श्रोताओं का सम्मान मिलता आ रहा है। विनीता शर्मा के बाद संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डॉक्टर दया कृष्ण गोयल ने कुछ शेर प्रस्तुत किए और सभी सदस्यों को आज मातृ दिवस की बधाई देते हुए मां पर कही हुई अपनी एक ग़ज़ल पढ़ी लोगों का बहुत उत्साह वर्धन उन्हें मिला। तीसरे नंबर पर सभा की सक्रिय सदस्य और महामंत्री सुनीता लुल्ला ने मां पर कही हुई अपनी एक ग़ज़ल पढ़ी और लोगों का बड़ा उत्साहवर्धन प्राप्त हुआ।
काव्य पाठ
तत्पश्चात आर्या झा, मोहिनी गुप्ता, चंद्रप्रकाश दायमा, विजयलक्ष्मी बासवा, अभिजीत पाठक विनोद गिरी अनोखा, उमेश चंद्र श्रीवास्तव, शिल्पी भटनागर, संतोष रजा गाजीपुरी और स्वयं डॉ अर्चना पांडे जी ने काव्य पाठ किया। काव्य पाठ के पश्चात डॉक्टर दया कृष्ण गोयल ने अध्यक्षीय टिप्पणी भी की और बताया कि किस प्रकार आज की गोष्ठी एक सुसंस्कृत सफल वातावरण में संपन्न हुई हमारे कवियों के अलावा कुछ और लोग भी आज की सभा में शामिल रहे उनमें थे दर्शन सिंह जी, वर्षा शर्मा और अवधेश सिन्हा जी तृप्ति मिश्रा किसी कारणवश देर तक उपस्थित न रह सके। तत्पश्चात अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया विजयलक्ष्मी बासवाने। उन्होंने सभी का आभार व्यक्त किया और इस प्रकार एक सकारात्मक वातावरण में आज की गोष्ठी का समापन हुआ।