15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो चुका था। धर्म के आधार पर देश का बंटवारा हुआ और उसके बाद 500 से ज्यादा रियासतों को एक करना सबसे बड़ी चुनौती थी। कुछ ऐसे इलाके थे जिसके रहनुमा भारत या पाकिस्तान के साथ जाने की बजाय अलग देश बनने का ख्वाब देखने लगे थे। जूनागढ़, कश्मीर और हैदराबाद ये तीन बड़े रजवाड़े ऐसे थे, जो भारत में शामिल होने के लिए तैयार नहीं थे।
उस समय हैदराबाद के निजाम थे उस्मान अली खान आसिफ और अंग्रेजों ने उन्हें स्वतंत्र स्टेट बने रहने का ऑफर दिया तो उनकी महत्वाकांक्षा जाग उठी। वह ब्रिटिश सरकार से हैदराबाद को राष्ट्रमंडल देशों के तहत स्वतंत्र राजशाही का दर्जा देने की मांग करने लगे। दिल्ली में बैठे सरदार पटेल तक हैदराबाद के मौसम की पल-पल की रिपोर्ट पहुंच रही थी। आखिरकार उन्होंने हैदराबाद को भारत में शामिल करने के लिए ‘ऑपरेशन पोलो’ को मंजूरी दे दी।
तब रजाकार एक निजी सेना (मिलिशिया) हुआ करती थी, जिसने हैदराबाद में तत्कालीन निजाम शासन का बचाव किया था और हिंदुओं पर अत्याचार किया था। जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो रजाकारों ने ही भारत में हैदराबाद के विलय का विरोध किया था। हैदराबाद में निजाम और सेना में वरिष्ठ पदों पर मुस्लिम थे लेकिन वहां की ज्यादातर आबादी हिंदू (85%) थी। देश के गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे। उन्होंने हैदराबाद के निजाम से भारत में विलय करने को कहा, लेकिन निजाम ने एक कदम आगे बढ़ते हुए 15 अगस्त 1947 को हैदराबाद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। पटेल को निजाम की हरकत अच्छी नहीं लगी।
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पटेल ने तत्कालीन गर्वनर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन से संपर्क किया। माउंटबेटन चाहते थे कि भारत सेना का इस्तेमाल किए बिना स्थिति को संभाले। पंडित नेहरू भी इस मसले का शांतिपूर्ण समाधान चाहते थे। पटेल की सोच अलग थी। वह हैदराबाद के निजाम की हिमाकत को कतई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं थे।
दिल्ली में पटेल अलग-अलग विकल्पों पर मंथन कर रहे थे, इधर निजाम हथियार जुटाने लगे। उन्होंने पाकिस्तान के साथ भी नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी। पटेल को लग गया कि अब सर्जरी जरूरी है। भारत के साथ हैदराबाद के शांतिपूर्ण ढंग से शामिल होने को लेकर बातें टूट चुकी थीं। अब पटेल सख्त हो चुके थे। सैन्य कार्रवाई को मंजूरी मिलते ही 13 सितंबर 1948 को भारत की फौज ने हैदराबाद पर हमला बोल दिया।
इसे ऑपरेशन पोलो कहा गया। उस समय हैदराबाद में दुनिया में सबसे ज्यादा 17 पोलो के मैदान थे। दो दिन निजाम की सेना टिक नहीं सकी और 17 सितंबर की शाम को हैदराबाद की सेना ने सरेंडर कर दिया। इस तरह से तत्कालीन हैदराबाद का 17 सितंबर, 1948 को भारत में विलय किया गया। बाद में निजाम ने भी पटेल के आगे हाथ जोड़ लिए।
पटेल को याद करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अगर सरदार जैसे नेताओं ने भारत के एकीकरण का नेतृत्व नहीं किया होता तो स्थिति की कल्पना करना मुश्किल है। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जन धारणा यही है कि सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया होता तो देश के सामने अनेक समस्याएं होती ही नहीं। (नवभारत टाइम्स से साभार)