[नोट- लेखक दर्शन सिंह ने इस लेख को किस संदर्भ लिखा है हमें पता नहीं। हालांकि एक बात स्पष्ट है कि हैदराबाद में हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार प्रसार में दक्षिण समाचार के दिवंगत संपादक मुनींद्र जी, वर्णाश्रम पत्रक के संपादक गंगाराम वानप्रस्थी जी के बाद नेहपाल सिंह जी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। हैदराबाद में हिंदी भाषा और साहित्य के अनेक कार्यक्रम नेहपाल सिंह के नेतृत्व में आयोजित किये गये थे। महफिल सजती थी और वाह-वाह के नारों के साथ गूंजते थे। वर्तमान में डॉ अहिल्या मिश्र, प्रोफेसर ऋषभदेव शर्मा, देवा प्रसाद मयला, डॉ दया कृष्णा गोयल, सरिता सुराणा, डॉ रमा देवी और अनेक साहित्यकारों के देखरेख में हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार जोरों पर जारी है। लेखक ने स्वीकार है कि सिक्के का दूसरा पहलू भी हो सकता है। इसीलिए तेलंगाना समाचार सिक्के के हर पहलू को अपना मानकर इस लेख को प्रकाशित कर रहा है। पाठकों की प्रतिक्रिया का स्वागत है।]
जब मैं डिप्लोमा इन मैकेनिकल इंजीनियरिंग कर रहा था, तब मेरे पिता जी का निधन हो गया था। उस त्रासदी से उभरा ही नहीं था कि छः महीने में मेरी माता जी का भी निधन हो गया। मैं आर्थिक व मानसिक रूप से पूरी तरह से अपंग हो गया था। तब मेरी उम्र 20-21 साल की रही होगी। मैं बिल्कुल सड़क पर आ गया था। वर्ष 1976 में मैं हैदराबाद आ गया। शादी हो गई थी। परिवार की भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी मुझ पर थी। लेकिन धैर्य बनाए रखा।
“स्लो एंड स्टडी विन्स द रेस” लोकोक्ति को ध्यान में रखा। नाभिकीय ईंधन सम्मिश्र (परमाणु ऊर्जा विभाग,भारत सरकार) में सर्विस मिली। राहत की सांस ली। आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, लेकिन राह आसान नहीं थी। काफी संघर्ष किया। क्वालीफिकेशन में सुधार किया। बी ई की पढ़ाई की। नाभिकीय ईंधन सम्मिश्र में काफी विभाग थे, जिसके अन्तर्गत साहित्य गतिविधियां (प्रतियोगिताएं) आयोजित की जाती थीं। मैं उसमें भाग लेने लगा और विजयी भी होता रहा। स्टेट और नेशनल लेवल कंपीटिशन भी होते थे। उसमें भी सम्मानजनक स्थिति रही। इस बीच 35 वर्ष गुजर गए। मै वर्ष 2012 में सेवानिवृत्त हो गया।
घर में सुख सुविधाएं एकत्रित तो कर लिए थे, लेकिन माता पिता की कमी महसूस हो रही थी। बचपन के वो दिन याद आते रहे, जब कभी अस्वस्थ हो जाता था, मां के आंचल से लिपट जाता था। पलक झपकते चंगा भला हो जाता था। परिवार तो है, माता पिता की कमी महसूस होती रही। सेवानिवृत्त के बाद, फेसबुक, सीनियर सिटीजन क्लब आदि ज्वाइन किया, लेकिन बात नहीं बनी।
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मैं साहित्यकार नेहपाल सिंह वर्मा जी का नाम तो सुन रखा था, बहुत दिनों से मिलने की उत्सुकता भी थी, लेकिन मिला कैसे जाए यह एक सवाल था। एक दिन दैनिक हिंदी स्वतंत्र वार्ता/डेली हिंदी मिलाप पढ़ रहा था कि नामपल्ली स्थित हिंदी प्रचार सभा में “गीत चांदनी” की मासिक गोष्ठी है, जिसकी अध्यक्षता की कमान नेहपाल सिंह वर्मा जी ने करने वाले है। यह वर्ष 2013 की बात है। निर्धारित तिथि व समय पर हिंदी प्रचार सभा पहुंच गया।
वहां पर नेहपाल सिंह वर्मा जी (हिंदी के वरिष्ठ कवि, कहानीकार, खाका चितेरे, अनुवादक, नाटककार एवं परामर्शदाता) अध्यक्ष पद पर सुशोभित थे। एक तरफ तो खुशी से फुला नहीं समा रहा था, दूसरी तरफ माथे से पसीना टपक रहा था, क्योंकि उनके चेहरे पर अदभुत प्रकाश पुंज था, जिसका मैं सामना नहीं कर पा रहा था। मैंने थोड़ा समय लिया, स्वयं को एडजस्ट किया। मैंने नेहपाल जी को अपना इंट्रोडक्शन दिया। मैंने अपने परिचय के साथ नाभिकीय ईंधन सम्मिश्र के तत्कालीन चीफ एक्जीक्यूटिव के के सिन्हा, एडिशनल चीफ एक्जीक्यूटिव वर्मा के नामों का उल्लेख किया।
ये नाम सुनते ही नेहपाल सिंह जी काफी खुश हो गये। क्योंकि नेहपाल जी इन दोनों से ही पहले ही परिचित थे। कवि गोविंद अक्षय को मेरा नाम रजिस्टर में दर्ज करने का सुझाव दिया। मुझे मेरे माता पिता की झलक नेहपाल सिंह वर्मा जी में देखने को मिली। मुझे मानसिक शांति की अनुभूति हुई। जब भी मैं गोष्ठियों में जाता था, नेहपाल सिंह जी मिलते थे। मैं उनके चरण स्पर्श करता तो वे मेरे सिर पर हाथ रखकर झोलियां भर कर आशीर्वाद देते हैं।
मेरी उनसे निकटता तब ज्यादा बढ़ गई जब वे “गुड़िया देख रही है भाग- 2” लिखना तो चाहते थे, लेकिन घुटनों एवं पीठ की दर्द के कारण उनसे संभव नहीं हो पा रहा था और डॉक्टरों ने उन्हें पूर्ण रूप से आराम करने की सलाह दी थी। तभी गोविंद अक्षय ने सलाह दी की कि दर्शन सिंह की हिंदी में अच्छी पकड़ है और उनका घर मेरे घर से तीन किलो मीटर की दूरी पर है। जो नाभिकीय ईंधन सम्मिश्र से अवकाश प्राप्त अधिकारी है।
शायद इसीलिए उन्होंने सोचा होगा कि क्यों न उनसे संपर्क किया जाए। उसी समय टेलीफोन पर मुझसे संपर्क किया गया। मैंने तुरंत लिखने के लिए रजामंदी जाहिर कर दी। लगातार पन्द्रह दिन तक सुबह 11 बजे उनके घर पहुंचता था और दोपहर 3 बजे तक बिना किसी विश्राम के विचारों / लेखनी को कलमबद्ध करता था। वे मुझसे बहुत खुश थे और मैं भी उनसे.. मैं उनकी मेमोरी पावर से काफी प्रभावित हुआ, क्योंकि उनकी उम्र 75- 80 वर्ष की थी।
भारत की आजादी से पहले बचपन के निजाम शासन काल की एक एक घटना को बड़ी ही दूरदर्शिता से सूत्रबद्ध करते थे। उनकी स्मरण शक्ति/ विद्वता को कोटिश प्रणाम। चूंकि उनको ईश्वर पर अटूट विश्वास था तो आध्यात्मिक चर्च भी होती थी। इस बीच परिवार के सदस्यों से परिचय भी हुआ। उनकी पत्नी श्रीमती उर्मिला वर्मा जी में मुझे मेरी मां के दर्शन हुए। उनके भी नित्य पांव छू कर प्रणाम करता था। नेहपाल सिंह वर्मा जी के साथ चाय,नाश्ता करने का भी अवसर मिला। नाश्ता काफी लजीज व स्वादिष्ट होता था।
इसी बीच एक उलझन भी आई। मैं अपना पहला काव्य संग्रह “खामोश ज्वालामुखी” प्रकाशित करवाना चाहता था। सौ कविताएं तो लिखी, लेकिन पहले एडिटिंग तो होनी चाहिए थी। इधर उधर भटका लेकिन सफर कटीला, पथरीला नजर आया। अचानक मुझे नेहपाल सिंह वर्मा जी की याद आई तो मैंने तुरंत उनको फोन किया और अपनी समस्या से अवगत करवाया दिया। उन्होंने तुरंत एडिटिंग करने के लिए हां कर दी। उन्होंने कभी भी मेरे घर आ जाओ। दूसरे दिन ग्यारह बजे मैं उनके घर पहुंच गया। मैंने उन्हें अपनी सौ कविताएं सौंप दी और राहत की सांस ली। उन्होंने मेरी एक-एक रचनाओं को ध्यान से पढ़ा और यथासंभव एडिटिंग की।
मेरे काव्य संग्रह ” खामोश ज्वालामुखी” की एडिटिंग ही नहीं की बल्कि नामकरण, प्रकाशन और लोकार्पण भी करवाया। अपनी भूमिका के अंतिम पैराग्राफ में नेहपाल सिंह वर्मा जी का आशीर्वाद: मैं कवि दर्शन सिंह को “खामोश ज्वालामुखी” के प्रकाशन पर बधाई देता हूं कि समय रहते विश्व को संदेश दिया है कि वे सब काम बंद होने चाहिए जिससे खामोश ज्वालामुखी फूट न पाए और यह ज्वालामुखी फूट पड़ेगा, तो मनुष्य की सभ्यता, संस्कृति और विज्ञान की शक्ति से निर्मित इस संसार की राख को उठाने वाला कोई नहीं रहेगा।
मैं मानता हूं कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। हो सकता है कि नेहपाल सिंह के दूसरे पहलू भी रहे होंगे। फिर भी मैं हमेशा सकारात्मकता का पक्षधर रहा हूं और रहूंगा। इसीलिए नि:संकोच डंके की चोट पर कह सकता हूं कि नेहपाल सिंह वर्मा जी मेरी नजर में एक “युगदृष्टा” थे।
– दर्शन सिंह मौलाली हैदराबाद