केंद्रीय हिंदी संस्थान- ‘तमिलनाडु में हिंदी: विविध आयाम’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित, अनिल शर्मा ने इस पर दिया जोर

हैदराबाद/नई दिल्ली: केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श की श्रृंखला में ‘तमिलनाडु में हिंदी: विविध आयाम’ विषय पर एक आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई। संगोष्ठी की अध्यक्षता तमिलनाडु केंद्रीय विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ नारायण राजू ने की। इनके अलावा विशिष्ट अतिथि के रूप में राजस्थान पत्रिका, चेन्नई के स्थानीय संपादक डॉ विजय राघवन उपस्थित थे। वक्ता के रूप में डॉ ज्ञानम, डॉ ए भवानी तथा डॉ पद्मावती ने हिस्सा लिया। केंद्रीय हिंदी संस्थान हैदराबाद केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ गंगाधर वानोडे ने अतिथियों का स्वागत किया वहीं वरिष्ठ साहित्यकार बीएल आच्छा ने संगोष्ठी का संचालन किया।

तमिलनाडु में हिंदी रोज-रोज आगे बढ़ रही हैं

प्रोफेसर राजेश कुमार द्वारा विषय की प्रस्तावना रखे जाने के बाद सेवानिवृत्त अध्यापक डॉ ए भवानी ने तमिलनाडु में हिंदी की विकास यात्रा को सिलसिलेवार ढंग से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी रोज-रोज आगे बढ़ रही हैं। हालांकि कतिपय राजनीतिक कारणों से अपेक्षित विस्तार नहीं हो पा रहा है। फिर भी तमिलनाडु में हिंदी लेखन की परंपरा लगातार समृद्ध हो रही है। केंद्रीय हिंदी संस्थान मैसूर केंद्र के पूर्व क्षेत्रीय निदेशक डॉ एम ज्ञानम ने तमिलनाडु में हिंदी शिक्षण के परिप्रेक्ष्य में अपनी बातें रखते हुए कहा कि कुछ एक निजी संस्थानों तथा सरकारी विद्यालयों को छोड़ दें तो तमिलनाडु में अभी भी हिंदी की स्थिति चिंताजनक है। पूरे राज्य में 2 भाषा सूत्र लागू है। इसलिए प्रारंभिक स्तर की पढ़ाई के दौरान ही अधिकांश विद्यार्थी हिंदी से दूर हो जाते हैं। हालांकि दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा राज्य में हिंदी के प्रचार प्रसार के काम में लगी है, लेकिन यह नाकाफी है।

भारतीय भाषाओं में अनुवाद

कोयंबतूर में सहायक अध्यापक डॉक्टर वी पद्मावती ने तमिलनाडु में हो रहे अनुवाद के कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अनुवाद के जरिए हम न सिर्फ उत्तर दक्षिण के भाषाई झगड़े को मिटा सकते हैं बल्कि भारतीय भाषाओं के विकास की नई इबारत लिख सकते हैं। तमिल से हिंदी में तथा हिंदी से तमिल में या अन्य और भारतीय भाषाओं में अनुवाद का काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी में अगर सभी क्षेत्रीय भाषाओं का अनुवाद कर पाठ्य सामग्री मुहैया कराने के काम में तेजी लाई जाए तो हिंदी और उसके साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं का भी विकास होगा। डॉक्टर पद्मावती ने कहा कि अनुवाद ही वह जरिया है जिसके मार्फत गंगा कावेरी को कृष्णा कावेरी से मिलाया जा सकता है।

हिंदी पत्रकारिता पर प्रकाश

इस क्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए राजस्थान पत्रिका के स्थानीय संपादक डॉ विजय राघवन ने तमिलनाडु की हिंदी पत्रकारिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यूं तो तमिलनाडु में हिंदी पत्रकारिता की नींव सन 1920 में ही पड़ गई थी। तब अग्रवाल समाज की ओर से यहां हिंदी भाषा भाषियों के लिए एक साप्ताहिक अखबार शुरू हुआ था। तमिलनाडु में हिंदी के दैनिक अखबार चमकते सितारे की शुरुआत वर्ष 1997 में हुई। हालांकि इसका प्रकाशन लंबे समय तक नहीं हो सका। वर्ष 2004 में यहां से राजस्थान पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ जो अनवरत जारी है। इस बीच दो और दैनिक अखबार से आए जिनका प्रकाशन हो रहा है। वही कुछ साप्ताहिक व मासिक पत्र पत्रिकाएं भी हिंदी में निरंतर छप रही हैं। श्री राघव ने मार्टिन लूथर किंग को कोर्ट करते हुए कहा कि यदि आप उड़ नहीं सकते तो दौड़ो दौड़ नहीं सकते तो चलो की तर्ज पर हिंदी पत्रकारिता धीरे-धीरे खड़ी हो रही है। उन्होंने पौराणिक प्रमाण प्रस्तुत करते हुए कहा कि राम ने दक्षिण को साधकर ही विजय प्राप्त की थी। हिंदी के विस्तार के लिए भी दक्षिण के साथ मेलजोल बढ़ाना होगा। दक्षिण में हिंदी के विकास के लिए साधु-संतों के योगदान को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि प्यार ऐसी नेमत है जिससे सभी को जीता जा सकता है।

साझा मंच विकसित

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि आजादी के 75 साल होने के बाद भी उपनिवेशवाद की विरासत कई भाषाओं में शामिल है। हमें उन चुनौतियों के बारे में गंभीरता से बात करनी होगी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी का प्रचार – प्रसार और तमिल भाषा से समन्वय गांधी जी का स्वपन था। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र देवदास गांधी को तमिलनाडु में भेजा था। तमिलनाडु के सैंकड़ों प्रचारक हिंदी भाषा को तमिलनाडु और दक्षिण में ले गए। परंतु किन्हीं औपनिवेशिक, राजनीतिक और सामाजिक कारणों से हम देखते हैं कि उसके सामने चुनौतियाँ हैं। विभिन्न क्षेत्रों में इस संबंध में क्या किया जा रहा है, क्या किया जाना चाहिए और दृष्टि में किन बदलावों की आवश्यकता है, पर विचार करते हुए ठोस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार कर उस पर क्रियान्वयन की जरूरत है। श्री जोशी ने कहा की आपसी समन्वय और संवाद के लिए एक साझा मंच विकसित कर कार्य को गति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भाषा के विकास का मतलब सिर्फ हिंदी का विकास नहीं बल्कि सारी भारतीय भाषाओं के विकास का है।

डिजिटल माध्यम से हिंदी

श्री जोशी ने कहा कि तमिलनाडु राज्य की नौकरियों में तमिल भाषा भाषी लोगों के लिए दिए जा रहे आरक्षण से यह स्पष्ट है कि उनका हक अंग्रेजी भाषा के कारण कम हुआ है। क्योंकि सारे पाठ्यक्रम अंग्रेजी भाषा में है। इसलिए भारतीय भाषाओं के विद्यार्थी पिछड़ जाते हैं। श्री जोशी ने सुझाव दिया कि संस्थानों में प्राथमिक स्तर पर हिंदी को मजबूत करने प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए हर प्रयास करने तथा तमिल से हिंदी में अनुवाद के काम को गति देनी चाहिए। इसके साथ ही हिंदी प्रचार को को दिशा देने के लिए शिक्षकों का शिक्षण की अवधि का विस्तार होना चाहिए तथा भाषा सेतु का कार्यान्वयन किया जाना चाहिए। श्री जोशी ने डिजिटल माध्यम से हिंदी सिखाने के प्रयास को रफ्तार देने के साथ-साथ दस्तावेजी करण पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि दक्षिण में हिंदी में लिखी पुस्तकों का संतुलन होना चाहिए। श्री जोशी ने आह्वान किया कि दक्षिण में जिनके कंधे पर हिंदी का दायित्व है। उन्हें समर्पित भाव से आगे आना चाहिए।

तमिल लोग भाषा को मां मान के चलते हैं

वरिष्ठ पत्रकार एवं भाषा कर्मी राहुल देव ने तमिलनाडु में हिंदी के समक्ष खड़ी चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास लगभग 140 वर्ष पुराना है। उन्होंने कहा कि तमिल लोग भाषा को मां मान के चलते हैं और भाषा से जुड़ा हुआ कोई भी सवाल उनके लिए अस्मिता का सवाल बन जाता है। उन्होंने कहा कि बाजार व्यवहार के कारण हिंदी अब धीरे-धीरे दक्षिण में भी संपर्क की भाषा बन रही है लेकिन इस को गति देने के लिए साझा प्रयास की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद अध्यक्ष नारायण कुमार ने दायित्व बोध का जिक्र करते हुए कहा के प्रयास से ही हिंदी आगे बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में हिंदी का कम हिंदी के हठधर्मिता का विरोध अधिक है, इसे सामान्य और संवाद के जरिए ठीक किया जा सकता है। संगोष्ठी के दौरान पद्मश्री तोमियो मिजोकामी, डॉ सुरेंद्र गंभीर तथा राजलक्ष्मी ने अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम के अंत में अरुणा ने सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।

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