कादंबिनी क्लब हैदराबाद: ‘भारतीय साहित्य में भावनात्मक अंतर संबंध’ विषय पर प्रपत्र का आयोजन

हैदराबाद (मीना मुथा की रिपोर्ट): कादंबिनी क्लब हैदराबाद की 358वीं मासिक गोष्ठी का वर्चुअल आयोजन डॉक्टर मदन देवी पोकरणा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए डॉ अहिल्या मिश्र (क्लब अध्यक्षा) एवं मीना मुथा (कार्यकारी संयोजिका) ने आगे बताया कि इस अवसर पर विशेष अतिथि के रुप में शांति अग्रवाल कहानीकार एवं वीणा विज (साहित्यकार कैलिफोर्निया) उपस्थित थीं। शुभ्रा महंतो द्वारा निराला रचित सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से कार्यक्रम का आरंभ हुआ।

श्रीमती मंजू लता गादिया एवं प्रोफेसर एम वेंकटेश्वर के दुखद निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित

सर्वप्रथम श्रीमती मंजू लता गादिया एवं प्रोफेसर एम वेंकटेश्वर के दुखद निधन पर डॉ अहिल्या मिश्र ने क्लब की ओर से 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि व्यक्त कीं। डॉ मिश्र ने कहा मंजू लता जी निरंतर क्लब से जुड़ी रहीं और हिंदी साहित्य के प्रति समर्पित महिला लेखिका रहीं हैं। कई बार विभिन्न विषयों पर प्रपत्र की प्रस्तुति आपने दी हैं। प्रो एन वेंकटेश्वर भी कादंबिनी क्लब से जुड़े रहे हैं। तेलुगु भाषी होने के बावजूद हिंदी भाषा पर गजब की पकड़ थी। समीक्षा के साथ-साथ एक प्रमुख साहित्यकार के रूप में जाने जाते रहें और विश्वविद्यालय में अपने छात्रों के प्राध्यापक भी रहें। आज इन दोनों हिंदी सेवियों की कमी हिंदी जगत को हमेशा ही महसूस होती रहेगी। डॉक्टर मिश्र ने पटल पर उपस्थित सभी गणमान्य का स्वागत करते हुए कहा कि क्लब अब अगले माह 29 वर्ष में पदार्पण कर रहा है। कोशिश होगी कि जून की गोष्ठी रूबरू की जाए।

‘भारतीय साहित्य में भावनात्मक अंतर संबंध’ विषय पर प्रपत्र

इस अवसर पर प्रथम सत्र में ‘भारतीय साहित्य में भावनात्मक अंतर संबंध’ विषय पर प्रपत्र का आयोजन रखा गया। विषय प्रवेश संगोष्ठी संयोजक अवधेश कुमार सिन्हा ने कराते हुए कहा कि प्रस्तुत विषय पर चेन्नई से उपस्थित डॉक्टर बीएल आच्छा अपने विचार रखेंगे। डॉ आच्छा का परिचय देते हुए अवधेश कुमार ने बताया कि 5 फरवरी 1950 को जन्मे आच्छा जी ने अध्यापकीय नौकरी के दौरान व्यंग्य और लघु कथाएं लिखी। आलोचना की तीन पुस्तकें और दो व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। साहित्यिक गोष्ठियों सम्मेलनों में आपकी सहभागिता रही है और अब वर्चुअल गोष्ठियों में भी आपकी उपस्थिति होती है।

अनेकता में एकता

डॉक्टर बी एल आच्छा ने ‘भारतीय साहित्य में भावनात्मक अंतर संबंध’ विषय पर वक्तव्य देते हुए कहा कि हमारी भाषाएं अलग अलग जरूर हैं परंतु अनेकता में भी एकता है। इस देश का सांस्कृतिक भूगोल इतना पक्का है कि इसे कोई तोड़ नहीं पाया। हमारे नव रसों में एकता का आधार हमारे भाव हैं। हमारा दर्शन कितना गहरा है। उपमहाद्वीप के पड़ोसी देशों से भी हमारे सांस्कृतिक संबंध हैं। प्रकृति के जड़ पदार्थों में भी सचेतन प्रकृति मौजूद है। दर्शन विचार कभी एक सा नहीं रहता लगातार सांस्कृतिक प्रक्रिया में महसूस किया जाता है। हम में भूगर्भी ऊर्जा है। यह हमारी विशेषता है। भारत का मस्तिष्क है दक्षिण में और शरीर उत्तर में। हजारों साल के बाद ही सांस्कृतिक एकता बनी हुई है। आजादी के पूर्व और आजादी के बाद भी। वाणी का लोकतंत्र भारत में मौजूद है। आच्छा जी ने इस दौरान कालिदास के मेघदूत, रघुवीर सहाय, नरेश मेहता का जिक्र किया। धरती का अंत होता है और धरती अनंत भी है।

लोक तत्व के माध्यम से भावनात्मक अंतर संबंध

वीणा वीज ने कहा कि दैनिक जीवन में अतीत को छोड़कर भविष्य की ओर कदम बढ़ाना है। डॉक्टर अहिल्या मिश्र ने कहा कि आज आच्छा जी हमें वर्तमान से भविष्य की ओर ले गए। अनेक रामायण लिखी गई परंतु राम और सीता के चरित्र में कोई फर्क नहीं हुआ है। यह अंतर्संबंध की मूल धारा है। लोक तत्व के माध्यम से भावनात्मक अंतर संबंधों को दिखाया गया है। जी परमेश्वर ने तथा सुनीता लुल्ला ने भी अपने विचार रखे। डॉक्टर मदन देवी पोकरना ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि आच्छा जी एक सशक्त साहित्यकार हैं। उनके ज्ञान के सागर से कुछ बूंदे हमें मिली हैं और हमारा भी ज्ञान वर्धन हुआ है। निश्चित ही संक्षिप्त समय में विश्व विस्तृत प्रपत्र प्रस्तुत किया। अनेकानेक साधुवाद।

डॉक्टर आशा मिश्रा मुक्ता के संचालन में कवि गोष्ठी

तत्पश्चात डॉक्टर आशा मिश्रा मुक्ता के संचालन में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ। आच्छा जी ने दीर्घ रचना का पाठ किया। वीणा विज ने कविता, रामदास कामत ‘कलम और तलवार’ कविता, तृप्ति मिश्रा हायकु, भावना पुरोहित (‘मस्त हूं मैं’ कविता), सुनीता लुल्ला (दोहे), विनोद गिरि अनोखा (भोजपुरी गीत), संतोष राजा (प्रेम गीत), डॉ ऋषभ देव शर्मा (मरनारंभ और एक अजन्मे बच्चे का दर्द कविताएं), संपत देवी मुरारका (भ्रूण हत्या कविता), दर्शन सिंह (राह चलते खड़े कर दिए जाते हैं व्यवधान कविता), अवधेश कुमार सिन्हा (लघुकथा) मीना मुथा (हाइकु) डॉक्टर आशा मिश्रा ‘मुक्ता’ (एहसास स्त्री होने का कविता) डॉ अहिल्या मिश्र अध्यक्षीय काव्यपाठ में (अंग्रेज़ी चाहिए न हिंदी चाहिए और पलकों पर जमी बर्फ को पिघलने दीजिए) रचनाएं पढ़ीं। बीएल आच्छा ने कविता सत्र की टिप्पणी में कहा कि निश्चित ही सभी की रचनाएं दमदार थीं। दक्षिण में लेखन निरंतर बढ़ता जा रहा है।

मीना मुथा का धन्यवाद

धन्यवाद ज्ञापन में मीना मुथा ने कहा कि विगत दिनों क्लब के सदस्यों को विभिन्न साहित्यिक उपलब्धियां हासिल हुईँ हैं। सभी को क्लब की ओर से बधाई। आच्छा जी को उनके विवाह दिवस की बधाई दी गई। अवसर पर सरिता सुराणा, देवाप्रसाद मायला, श्रुतिकांत भारती, रमाकांत श्रीनिवास और अन्य की उपस्थिति रही। तकनीकी सहयोग हेतु डॉक्टर आशा मुक्ता का आभार जताया गया।

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