गणगौर उत्सव पर विशेष: अखंड सौभाग्यवती वरदान का पर्व, जानिए मान्यता, परंपरा और इतिहास

हमारे भारत वर्ष में विभिन्न धर्म और समुदाय के लोग रहते हैं और समय-समय पर अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं। उन्हीं त्योहारों में से एक महत्वपूर्ण त्यौहार है- गणगौर। गण का मतलब है- शिव और गौर का अर्थ है- पार्वती। अर्थात यह त्यौहार माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। इस साल गणगौर उत्सव 4 अप्रैल को मनाया जाएगा।

कहते हैं प्राचीनकाल में पार्वती ने कठिन तपस्या के माध्यम से शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। साथ ही भगवान शिव उनकी घोर तपस्या से खुश होकर उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। मां पार्वती स्त्रियों को सौभाग्यवती रहने का वरदान देती है।

मूलतः राजस्थान में इस पर्व का बहुत महत्व है। भारत के विभिन्न राज्यों में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है (माता पार्वती) गवरजा होली के दूसरे दिन अर्थात चैत्र पक्ष की तृतीया के दिन मायके आती है तथा 8 दिनों बाद (शिव) ईशर जी उन्हें वापस लेने के लिए आते है और विदाई 16वें दिन होती है।

शुभ समय देखकर ईशर और गणगौर की मिट्टी की मूर्तियां बनाकर सुंदर-सुंदर पोशाकों से सजाकर स्थापना की जाती हैं। प्रत्येक दिन पूरे भाव और चाव के साथ पूजन किया जाता है और हर्ष और उल्लास से (गणगौर को जगाने का, नहलाने का ,खिलाने का, सुलाने का) मधुर लोकगीतों के माध्यम से वातावरण आनंदमय हो जाता है।

चंदन, अक्षत, धूप-बत्ती, दीप, नैवेध, दुर्वा, फूल एवं सिंदूर से पूजन करके विभिन्न प्रकार के व्यंजनों से ईशर और मां गौरा को भोग लगाया जाता है। कुंवारी लड़कियां मनचाहा वर प्राप्त करने हेतु और सुहागिने पति की लंबी उम्र, सौभाग्य की कामना एवं सदैव पति प्रेम मिलने की मनोकामना से विशेष पूजा अर्चना के माध्यम से मां से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।

होलिका दहन की राख और गीली मिट्टी मिश्रित करके गेहूं और जो बोए जाते हैं। सोलह दिनों तक इसमें लगातार जल दिया जाता है और जब हरे -हरे ज्वारे उग जाते हैं तो विदाई के अवसर पर इसके माध्यम से मां गौरा का पूजन करना शुभ माना जाता है। गणगौर का सिंजारा चैत्र शुक्ल की दूज को मनाया जाता है।

घर के बङे लोग अपनी बहन-बेटी के यहां सौगात के रूप में फल, मेवा, श्रृंगार सामग्री प्रेम पूर्वक भेंट करते हैं। एक तरह से यह सिंजारा आपसी प्रेम संबंधों में परस्पर निकटता को बढ़ाता है। अटूट आस्था और विश्वास से गणगौर के 16वे दिन उपवास रखकर मां से मनोकामना पूरी करने हेतु प्रार्थना की जाती है।

विदाई की बैला पर विशाल मेला लगता है। महिलाएं सज-धज कर मंगल गीत गाते हुए अश्रुपूरित नेत्रों से फिर आगामी वर्ष में मिलने की कामना करते हुए ईशर-गणगौर की प्रतिमा को शहर के नदी या तालाब में विसर्जित करती है।

– लेखिका भारती सुजीत बिहानी सिलिगुङी पश्चिम बंगाल

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