डॉ रज़िया बेगम की ‘ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ’ पुस्तक लोकार्पित, इन वक्ताओं ने कहा…

चेन्नई :‘‘डॉ रज़िया बेगम की कविताएँ सरल एवं सहज शब्दों के माध्यम से भावनाओं एवं सामाजिक विद्रूपताओं को व्यक्त करने वाली कविताएँ हैं। सरल शब्दों में गहन विषयों को व्यक्त करना आसान नहीं। इन कविताओं में प्रेम, वेदना, छटपटाहट, रिश्तों की तड़प, मातृत्व की झलक, संवादशून्यता आदि निहित हैं। कुल मिलाकर ये कविताएँ अपने आप को बचाने की कोशिश में लहूलुहान हो रही पीढ़ी को आगाह करने वाली कविताएँ हैं।’’ एग्मोर स्थित बैंक ऑफ बड़ौदा के क्षेत्रीय कार्यालय में विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित डॉ रज़िया बेगम की पुस्तक ‘ग्रहण काल एवं अन्य कविताएँ’ के लोकार्पण समारोह के अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार व अनुवादक गोविंदराजन ने अपने अध्यक्षीय टिप्पणी में उक्त उद्गार व्यक्त किए।

बतौर मुख्य वक्ता प्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं कवि प्रो. बी. एल. आच्छा ने कहा कि ग्रहण काल वस्तुतः एक रूपक है जिसके माध्यम से कवयित्री ने अपने भीतर की संवेदना को व्यक्त किया है। उन्होंने अपने वक्तव्य में इन कविताओं को ‘उद्वेलन की कविताएँ’ कहा, क्योंकि इनमें कहीं भी ठहराव नहीं है। उन्होंने इस बात पर बाल दिया कि व्यापक धरातल पर इन कविताओं में अत्यंत सूक्ष्म संवेदनाओं को महसूस किया जा सकता है, जो संसार से उपजी हैं। तमिलनाडु हिंदी अकादमी, चेन्नै की अध्यक्ष डॉ. ए. भवानी ने कहा कि रज़िया आशावादी कवयित्री हैं जो अंधकार को मिटाने की गुहार लगाती है। उन्होंने यह रेखांकित किया कि रज़िया की कविताओं में सुख-दुख का संगम है। ये कविताएँ जहाँ समस्या की ओर इशारा करती हैं, वहीं उनका निदान भी सामने रखती हैं। उन्होंने कवयित्री रज़िया की पहली सृजनात्मक काव्य-कृति को उनके ‘अवचेतन मन की अभिव्यक्ति’ कहा है।

डी जी वैष्णव कॉलेज, चेन्नै के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार सिंह ने कहा कि इन कविताओं में प्रेम के अनेक आयाम निहित हैं। सरल रूप से भावों को अभिव्यक्त करना कष्टसाध्य है, फिर भी रज़िया ने अपने प्रथम प्रयास में ही सफलता अर्जित की है। कवयित्री कभी हार नहीं मानती और वह दूसरों को भी आगाह करती है तथा चेताती है कि वे भी इस राह पर आगे बढ़ें। मुंबई से पधारीं डॉ. सविता तायडे ने यह संकेत किया कि इस संग्रह में निहित कविताएँ अंतःसंबंधों को बचाने की कोशिश करती स्त्री-मन को पाठक के सामने प्रस्तुत करती हैं। कवयित्री ने इन कविताओं को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, वैश्विक, सांस्कृतिक आयामों पर वर्गीकृत किया। श्री शंकरलाल सुंदरबाई शाशुन जैन कॉलेज, चेन्नै की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सरोज सिंह ने कहा कि रज़िया की कविताएँ मानव अस्तित्व को उकेरती हैं, दमनकारी नीति का विरोध करती हैं, संघर्षों के बीच सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण रखती हैं। उन्होंने इन कविताओं को ‘संदेशात्मक कविताएँ’ कहा है।

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उच्च शिक्षा और शोध संस्थान, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास की एसोसिएट प्रोफेसर एवं ‘स्रवंति’ की सह संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने ‘मैं तो मिट्टी का कण हूँ’, ‘हैवलॉक’, ‘कालापानी’, ‘पधारो हमारो अंडमान’ शीर्षक कविताओं के हवाले से कहा कि अंडमान में जन्मी, अपनी जड़ों से दूर चेन्नै में निवास रह रहीं कवयित्री रज़िया बेगम अंडमान की स्मृतियों में गोता लगाते हुई दिखाई देती हैं। उन्होंने एक कविता के हवाले से सब का ध्यान इस ओर खींचा कि कवयित्री की प्रयोगशीलता 9 पंक्तियों में समाहित 15 शब्दों की गहन अभिव्यक्ति से मुखरित होता है। आगे उन्होनें स्पष्ट किया कि इन कविताओं में आत्मीयता और प्रेम के विविध पाठों के अतिरिक्त आक्रोश का पाठ, स्त्री-पाठ, बेबसी का पाठ, संघर्ष का पाठ आदि को एक पाठक अपनी दृष्टि से रच सकता है। उन्होंने कवयित्री को साधुवाद दिया।

राजस्थान पत्रिका, चेन्नै के प्रभारी संपादक डॉ. विजय राघवन ने कहा कि नई दिल्ली के सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक में कुल 75 छोटी-बड़ी कविताएँ हैं जो मर्यादाओं को लांघने वाली युवा पीढ़ी पर प्रहार करती हैं। इन कविताओं को उन्होंने कवयित्री के ‘अनुभव जगत से उपजी सृजन के बीज’ बताया है। इस कार्यक्रम का सफल काव्यमय संचालन अग्रसेन कॉलेज, चेन्नै के हिंदी विभागाध्यक्ष गीतकार डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव ने किया। उन्होंने अपने आपको इन कविताओं के साथ जोड़ते हुए अपने ‘स्व’ अनुभूति को व्यक्त किया।

बैंक ऑफ बड़ौदा की मुख्य प्रबंधक (राजभाषा) सुश्री कृष्णप्रिया और वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) सुश्री रीता गोविंदन ने अतिथियों का शब्द सुमनों के साथ स्वागत किया तथा कवयित्री डॉ. रज़िया बेगम ने अपनी अनुभूतियों को साझा करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।

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