सीता समाहित धाम सीताद्वार में देवोत्थानी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा की ऐसी रही हैं धूम, पढ़ें और जानें

श्रावस्ती : इकौना तहसील जनपद श्रावस्ती स्थित सीता समाहित धाम सीताद्वार (उत्तर प्रदेश) में देवोत्थानी एकादशी और कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान-दान की परम्परा है। प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी सीताद्वार महोत्सव का आयोजन हुआ। भजन, कीर्तन, अखण्ड पाठ, अन्नकूट छप्पन भोग का भण्डारा संपन्न हुआ। साथ ही पूर्णिमा मेले की व्यापक तैयारियां चल रही हैं।

समाहित धाम के प्रमुख डॉ स्वामी भगवदाचार्य की अध्यक्षता में सीताद्वार से सम्बंधित मान्यताओं और ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित एक परिचर्चा का भी आयोजन हुआ जिसमें धर्माचार्यों, साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों व विद्वत व्यक्तियों ने भाग लिया। जिला पंचायत अध्यक्ष प्रतिनिधि बलरामपुर पं श्याम मनोहर तिवारी इसके मुख्य अतिथि थे। कार्यक्रम का संचालन बहराइच के हिन्दी अंग्रेजी दोनों भाषाओं के कवि एवं लेखक रमेश चन्द्र तिवारी ने किया। उन्होंने अपनी चर्चित पुस्तक ‘अनुश्री’ की एक प्रति मुख्य अतिथि को भेंट की।

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सीताद्वार के आयुर्वेद चिकित्सक के रूप में अपने सात वर्षों के कार्यकाल के दौरान डॉ. अशोक कुमार पांडेय ‘गुलशन’ ने ‘सीताद्वार’ शीर्षक पुस्तक की रचना की थी जिसमें सीता भू प्रवेश धाम से सम्बंधित इतिहास, मान्यता एवं पौराणिक ग्रंथों के सन्दर्भों की विस्तृत चर्चा की है। डॉ गुलशन ने स्थानीय निवासियों की मान्यता को सही बताते हुए कहा कि सीताद्वार का क्षेत्र एकवन नाम से जाना जाता था। यहां ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था और राम जी के आदेश पर लक्षमण जी माता सीता को छोड़ने यहीं आये थे और माता जी को प्यास लगने पर उन्होंने तीर से जो जलश्रोत निकाला था उसी से झील निर्मित हुई थी।

शिक्षक श्री पुण्डरीक पांडेय ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया कि वाल्मीकि रामायण के अनुसार अयोध्या नगर पूरब-पश्चिम 150 किमी लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण 40 किमी चौड़ा था इसलिए सीता द्वार अयोध्या नगर का हिस्सा था। इसी स्थान पर लव कुश ने रामायण गान किया था। राम जी उनसे मिलने यहाँ आये और सीता जी को साथ लेकर महर्षि वाल्मीकि भी यहाँ पहुंचे थे। भगवान् राम के परिवार का मिलन तो यहाँ हुआ किन्तु भगवती सीता राजमहल नहीं गयीं बल्कि उन्होंने यहीं भू प्रवेश कर लिया था जिसकी साक्षी सीताद्वार की झील है। जो भी हो, महर्षि वाल्मीकि का मुख्य आश्रम बिठूर था और लव कुश वहीँ पैदा हुए थे इसका उल्लेख रामायण में है। इसलिए निष्कर्ष यह निकलता है कि सीताद्वार सीता समाहित धाम है। अतएव रामायण का अंतिम स्थान है।

उपस्थित श्रद्धालु अजय कुमार त्रिपाठी, श्रवण कुमार द्विवेदी, राम चन्दर दास, विष्णु प्रकाश तिवारी, अजय जायसवाल, देवेश चन्द्र मिश्र, लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी मृदुल, सुधीर चौधरी, अरविन्द चौधरी, विपुल तिवारी, रजनीश तिवारी, रिंकू मिश्रा, अमरेंद्र वर्मा, अजय चौधरी, राम लोचन शुक्ल ने सरकार से मांग की कि सीताद्वार को रामायण सर्किट योजना से जोड़ा जाये और इसे धार्मिक पर्यटन स्थल की श्रेणीं में स्थान प्रदान किया जाये।

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