‘दास्तान-ए-हेमलता’ पुस्तक चर्चा: तो जिंदगी हो जाए सफल!

डॉ अरविंद यादव की सद्य:प्रकाशित कृति “दास्तान-ए-हेमलता” पार्श्वगायिका सुश्री हेमलता की जीवनी भर नहीं है, वास्तव में यह भारतीय संगीत जगत का आख्यान है। इसके केंद्र में हिंदुस्तानी संगीत और संगीतकारों का वह संसार है जिनकी वजह से भारतीय फिल्मों को विश्वभर में अलग पहचान और विपुल ख्याति मिली है। आज की संगीत प्रेमी पीढ़ी के चहेते संगीतकारों-गायकों में जो नाम अब तक शुमार हैं, उनमें बहुत सारे अल्पज्ञात नामों की गिनती तो होती है, पर उनकी चर्चा अधूरी सी रहती है। कोई पुख्ता जानकारी जो नहीं मिलती। कुछ गीत हैं जो बजते तो हैं, पर आवाज का जादू अनाम सा होकर रहता है। यह किताब एक ऐसा ही जादू बिखेर कर रख देती है, जिसके चार सौ पृष्ठों में उन हेमलता के हेम सरीखे जीवन का दृष्टांत है जो “अब बंबई में रह रही हैं। वे बंबई की हो गईं हैं।” इस होने और हो जाने के बीच की जो लगभग आधी शताब्दी की दास्तान है, वह इस पुस्तक का कथ्य है।

आधिकारिक जीवन-गाथा के साथ साथ यहाँ गीत-संगीत के ईंट-गारे से एक इमारत बनाई गई है। इस इमारत में अनेक कक्ष हैं। हर कमरे में एक दास्तान है। इस तरह से कमरा-दर-कमरा दालान-दर-दालान एक-एक प्रसंग प्रस्तुत होता है और कथा-प्रवाह आगे बढ़ता है। शुरूआत शुरू से ही होती है जिसमें पूर्वापर संबंध से (बात उन्नीसवीं सदी के मध्यकाल की है) कन्या हेमलता के जन्म से पूर्व और जन्म के पश्चात उनके बचपन का ऐसा अठखेलियों वाला चित्रण है जो ‘राग-रागिनियों के आरोह-अवरोह के बीच सँवरा’ है। और फिर उनकी आराध्य देवी लता मंगेशकर बन जाती हैं।

यह जीवनी यदि अनेक हाईपर-लिंकों अर्थात उपकथाओं को अपने कलेवर में न समोए होती, तो आज का चंचल पाठक एकाग्र चित्त से एक ही बैठक में न पढ़ पाता। पर यहाँ तो मानो लता मंगेशकर और हेमलता के मधुर संबंधों के साथ-साथ संपूर्ण सिनेमा जगत ही अपनी-अपनी आपबीती लेकर उपस्थित हो गया है। अनुपस्थित लेखक निरंतर उपस्थित रहकर एक वाकया बयान करता है, एक गीत या फिल्म के बनने-बुनने का किस्सा सुनाता है और फिर उसे इस तरह से मूल दास्तान से जोड़ देता है कि आभास ही नहीं होता। डॉ. यादव ने कथा प्रवाह को बार-बार इस तरह से सँजोया है कि अनेक बार पाठक हेमलता जी के उन शब्दों को कह उठता है जो उन्होंने लता जी से कहे थे, “दीदी, चाय पिलानी है तो पूरी पिलाइए। आपके यहाँ मैं आधी कप चाय क्यों पिऊँ?”

यह भी पढ़ें-

दास्तान में लता जी के लेकर हर संगीतकार, गीतकार, पार्श्वगायक, निर्माता-निर्देशक और अन्य अनेक दिग्गजों के साथ हेमलता जी की निबद्ध ताल का ज़िक्र है। ज़िक्र जब रामायण धारावाहिक तक पहुँचता है तो पाठक मंत्र मुग्धता की सीमा लाँघ चुका होता है। वास्तव में, यह किताब हमें उस धरातल तक ले जाती है, जहाँ हम यह सोचने लगते हैं कि यह किताब इतनी देर से क्यों लिखी गई! सरलता और सहजता से जीवनीकार कुछ यूँ लिखता चला गया है कि पाठक इसे किताब की तरह नहीं, ओटीटी पर प्रस्तुत धारावाहिक की तरह देखता-पढ़ता चला जाता है। यही खासियत है इस नायाब ज़िंदगानी की कि इसमें अनेक ज़िंदगियों का अक्स है। गंगा जैसे बहती है, वैसा ही अविरल प्रवाह है इस कथा का जिसको ‘दास्तान’ कहा गया है। यदि लोहड़ी की मस्ती से सराबोर होने के बाद आधी रात को शुरू करके कोई अतिथि आतिथेय के सिरहाने रखी किताब को उनके जागने तक एक ही बैठक में पढ़ जाए तो कुछ बात तो होगी ही। इसलिए आनन-फानन में इस उम्मीद से यह सब लिख रहा हूँ कि “तू जो मेरे सुर में, सुर मिला ले, संग गा ले, तो जिंदगी हो जाए सफल!”

समीक्षित पुस्तक:
दास्तान-ए-हेमलता : लेखक डॉ अरविन्द यादव, सर्व भाषा ट्रस्ट नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2024 । पृष्ठ 408, मूल्य 449/-

समीक्षक
डॉ गोपाल शर्मा
6-3-120/23 एन पी ए कालोनी, शिवरामपल्ली, हैदराबाद -500052। व्हाट्सअप- 8978372911.
prof.gopalsharma@gmail.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X