तेलंगाना राज्य में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे यहां की राजनीति भी गर्माती जा रही है। राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे को पीछे छोड़ने और आगे निकलने व जीत हासिल करने के मकसद से आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलने से भी नहीं चूक रही। हाल के दिनों में देखा जा रहा है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) और कांग्रेस के बीच जमकर जुबानी जंग चल रही है। यह तो पता ही है कि हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी पहले ही एआईएमआईएम द्वारा लड़ी गई सीटों को छोड़कर बाकी सीटों पर बीआरएस को वोट देने का बयान दे चुके हैं।
लेकिन यहां सवाल उठता है कि क्या इस बार अल्पसंख्यक वोटों का रुख वैसा ही होगा जैसा उनका कहना है? क्या अब भी तेलंगाना में वही स्थिति है? वहीं विश्लेषकों का कहना है कि एआईएमआईएम भी इसी संदेह के चलते कांग्रेस पर निशाना साध रही है। कुछ आंकड़े यह भी बताते हैं कि न केवल तेलंगाना में बल्कि देश में भी अल्पसंख्यक वोट अब कांग्रेस की ओर एकजुट हो रहा है। तो क्या इस बार एआईएमआईएम की सीटें भी कांग्रेस उड़ा ले जाएगी? क्या ओवैसी को भी यही डर सता रहा है? आखिर माजरा क्या है? आइये यहां विस्तार से जानते हैं …
यह तो हम देख ही रहे हैं कि एआईएमआईएम पार्टी कई राज्यों में चुनावी मैदान में अपने उम्मीदवार उतार रही है, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पा रही है। इस बीच उसकी वोट शेयर में भी जबरदस्त गिरावट आई है। यह चर्चा जोरों पर है कि एआईएमआईएम के दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ने का मतलब है- परोक्ष रूप से बीजेपी को जीत दिलाना। इसलिए एआईएमआईएम को नकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के बीच मुकाबला होगा। वहां मुस्लिम वोट बैंक काफी अहम है। हालांकि एआईएमआईएम ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाने के लिए यूपी में अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इसका खामियाजा भी समाजवादी पार्टी को ही भुगतना पड़ा। आखिर में बीजेपी की ही जीत हुई।
इसलिए पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यकों ने एआईएमआईएम का समर्थन करने के बजाय अपनी पसंद की पार्टी को वोट दिया। और कर्नाटक चुनाव में भी यही हुआ. मतलब एआईएमआईएम की रणनीति दूसरे राज्यों में लगातार फेल हो रही है। मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक अल्पसंख्यक मतदाताओं में भी साफ बदलाव दिख रहा है। अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस की ओर जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यही स्थिति तेलंगाना में भी देखने को मिल रही है।
कांग्रेस को भी लग रहा है कि अल्पसंख्यक वोट उसकी ओर आकर्षित रहे हैं। और उसी के अनुरूप कांग्रेस के नेता अपनी रणनीति बना रहे हैं। इसके अलावा यह तो हम जानते ही हैं कि तेलंगाना में एक समय अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस के साथ था। इसकी मुख्य वजह दिवंगत मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की नीति रही हैं। उनके द्वारा मुस्लिमों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण की शुरूआत को अल्पसंख्यक हमेशा याद रखेंगे। इसके बाद पूरा वोट बैंक बीआरएस में शिफ्ट हो गया। हालांकि, कांग्रेस हमेशा से अल्पसंख्यक मतदाताओं को अपने पाले में करने की रणनीति पर चलती रही है।
इसकी बराबरी के लिए तेलंगाना में भी कुछ विकास हुए हैं। कांग्रेस बीआरएस का समर्थन करने के लिए एआईएमआईएम और भाजपा का पक्ष लेने के लिए ओवैसी की आलोचना कर रही है। इसलिए राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एआईएमआईएम चाहे कुछ भी कहे, वे वोट कांग्रेस को ही जाएंगे। कांग्रेस की नजर हाल ही में पुराने शहर पर पड़ी है। यही वजह है कि ओवैसी बौखला गए हैं, क्योंकि उनके गढ़ में किसी की नजर पड़े इस बात वो कैसे अनदेखा कर सकते हैं।
पुराने शहर के मस्कटी डेयरी के अध्यक्ष अली बिन इब्राहिम मस्कटी को सीडब्ल्यूसी की बैठक के दौरान कांग्रेस पार्टी में शामिल किया गया। पुराने शहर के एक स्थानीय व्यक्ति मोहम्मद अयूब खान उर्फ अयूब अपने बेटों शाहबाज खान और अरबाज खान के साथ पार्टी में शामिल हुए। वहीं, टीडीपी नेता और पूर्व पार्षद मुजफ्फर अली खान के भी कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा जोरों पर हैं। उनके साथ-साथ कांग्रेस ने कुछ अन्य नेताओं को भी पार्टी में शामिल करने की कोशिशें की जा रही हैं।
दूसरी ओर, ऐसा लगता है कि तुक्कुगुड़ा सभा में सोनिया गांधी द्वारा घोषित छह गारंटियों की चर्चा मुसलमानों के बीच अधिक हो रही है। कुछ मुस्लिम बुजुर्गों का झुकाव कांग्रेस की ओर है। कहा जा रहा है कि इन घटनाक्रमों पर नजर रखने वाली एआईएमआईएम एक योजना के तहत कांग्रेस पर निशाना साध रही है। उसी के तहत विधायक अकबरुद्दीन औवेसी ने पीसीसी चीफ रेवंत रेड्डी पर निशाना साधा। उन्होंने कांग्रेस नेताओं की उस बात पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की कि ओवैसी महाराष्ट्र से आये हैं। उन्होंने कहा कि पहले रेवंत रेड्डी चारमीनार के भाग्यलक्ष्मी मंदिर में जाकर इस बात की शपथ ले कि उनका आरएसएस से कोई लेना-देना नहीं है। इसके बाद उन्होंने कहा कि रेवंत रेड्डी बताएं कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी का जन्म कहां हुआ है।
एईऊएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी को चुनौती दी। उन्होंने राहुल गांधी को चुनौती दी कि अगर उनमें हिम्मत है तो वह हैदराबाद संसद से चुनाव लड़कर दिखाएं। इससे यह स्पष्ट हो जाएगा कि विजेता शेरवानी होगी या फिर टोपी। राजनीतिक विश्लेषक तेलंगाना के साथ-साथ देश भर में कांग्रेस पार्टी पर एआईएमआईएम के हमले के पीछे के कारणों का विश्लेषण कर रहे हैं। उन्हें जो जवाब मिला, उसके विश्लेषण के मुताबिक देशभर में अल्पसंख्यक वोट धीरे-धीरे कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। बताया जा रहा है कि इसे देखते हुए एआईएमआईएम ने कांग्रेस पर हमले तेज कर दिया हैं। उसी के तहत सांसद असदुद्दीन और विधायक अकबरुद्दीन ने राहुल गांधी और रेवंत रेड्डी पर निशाना साधा. दोनों के बीच जमकर जुबानी जंग चल रही है।
अब हमें यह देखने के लिए तो चुनाव होने व इनका परिणाम आने तक इंतजार करना होगा कि क्या भविष्य में यह एआईएमआईएम बनाम कांग्रेस जैसा होगा, साथ ही अल्पसंख्यक मतदाता किस तरफ होंगे। यह सब चुनाव के बाद ही पता चलेगा। खैर कुछ भी कहें, यह तो पक्का ही है कि चुनाव इस बार दिलचस्प होने जा रहे हैं और इन चुनावों में कई नए समीकरण जुड़ते नजर आ रहे है। यह तो वक्त की ही बताएगा कि आखिर होता है क्या?
– लेखक मीता वेणुगोपाल पत्रकार