विश्लेषानात्मक लेख : चुनावी इलेक्टोरल बांड राजनीतिक दलों के भ्रष्टचार के घनिष्ट बंधन को करता है उजागर

चुनावी इलेक्टोरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने देश के शासकों और बड़े निवेशकों के बीच सांठगांठ को उजागर कर दिया। लोकतांत्रिक शासन खत्म हो गया है और पूंजीपतियों के कारण हमारी चुनावी (गैर) लोकतंत्र जारी है। कॉरपोरेट कंपनियों ने केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को बेइंतहा प्यार से 8200 करोड़ रुपये दिए हैं। तृणमूल कांग्रेस को 1,397 करोड़ रुपये दिये गये। राष्ट्रीय कांग्रेस तीसरे स्थान पर हैं। बीआरएस और वाईसीपी ने चंदे के मामले में राष्ट्रीय पार्टियों से प्रतिस्पर्धा की है। वर्ग शत्रु कम्युनिस्ट पार्टियों को स्वाभाविक रूप से पूंजीपतियों को एक पैसा भी नहीं दिया।

मेघा और बीजेपी को चंदा

मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड ने बीजेपी को चुनावी चंदा के तौर पर 584 करोड़ रुपये दिए हैं। उसी तरह बीआरएस को 195 करोड़ रुपये भी दिये। ढहती कालेश्वरम, मेडीगड्डा, अन्नाराम और सुंदिल्ला परियोजनाओं के नाम पर तेलंगाना को सात लाख करोड़ का कर्जदार राज्य बनाकर मेघा कंपनी ने सैकड़ों करोड़ रुपये का सबसे बड़ा हिस्सा बीजेपी और बीआरएस को दान कर दिया है। मेघा कंपनी ने 1,186 करोड़ के चुनावी इलेक्टोरल बांड खरीदे। इसमें से 584 करोड़ रुपये बीजेपी को दिए। कुल चुनावी इलेक्टोरल बांड घोटाले का 60 फीसदी फायदा अकेले बीजेपी को हुआ है।

छिपा रहे है जानकारी

एसबीआई की जानकारी के मुताबिक, 38 बड़ी कंपनियों को 179 सरकारी ठेके दिए गए हैं और उनकी कीमत 3.8 लाख करोड़ रुपये हैं। केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार को 62,000 करोड़ रुपये के ठेके मिलने के बाद 580 करोड़ के बीजेपी चुनावी बांड खरीदे गए। बांड खरीदने वालों की सूची में 18,871 प्रविष्टियां जबकि पार्टियों की सूची में 20,421 प्रविष्टियां हैं। दोनों सूचियों में 18,741 बांड है। इनकी कीमत 12,145.88 करोड़ है। लेकिन पिछले पांच साल में जारी किए गए बॉन्ड की कुल कीमत 12,769 करोड़ है। कुल बांड में 623 करोड़ का अंतर है। इसका ज्यादातर हिस्सा बीजेपी को मिला है। भाजपा को 466.5 करोड़ रुपये किसने दिए, इस बारे में कोई नहीं जानने वाले गुप्त बड़े निवेशक हैं। एसबीआई अब भी यह जानकारी छिपा रहा है।

बड़ी कंपनियों के हाथ में सरकारें

राजनीतिक दलों को आधा चंदा सिर्फ 23 कंपनियों से आया। लॉटरी किंग मार्टिन 13 राज्यों में रोजाना बड़े पैमाने पर लोगों को लूट रहा था और जिस महीने ईडी की छापेमारी हुई उसी महीने उसने बीजेपी को 100 करोड़ रुपये का चंदा दिया था. सुप्रीम कोर्ट के चुनावी बांड पर फैसले ने निवेशकों और भाजपा के बीच बड़े पैमाने पर अवैध सांठगांठ को उजागर किया। बीजेपी को एहसास हो गया है कि इससे देशभर में बड़े पैमाने पर वोटों का नुकसान होगा। अमित शाह ने नुकसान रोकने के लिए देशभर में सीएए लागू करने का आह्वान किया। भाजपा लोगों की वित्तीय समस्याओं का समाधान नहीं कर रही है, बल्कि करों के रूप में उनका अंतहीन शोषण कर रही है। क्या बालाराम की प्राणप्रतिष्ठा करने वाले पीएम नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व राम के व्यक्तित्व के बराबर है?

ईडी और आईटी के छापे तथा बांडों की खरीदी

प्रमुख वकील प्रशांत भूषण ने खुलासा किया कि आईटी, ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों की जांच का सामना कर रही 41 कंपनियों ने पिछले पांच वर्षों में भाजपा को दान के रूप में 2,471 करोड़ रुपये दिए हैं। उन्होंने कहा तु इसमें से 1,698 करोड़ रुपये उन संस्थानों पर छापे के बाद दिए गए। देशभर में 3.7 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं का ठेका हासिल करने वाले 33 समूहों ने बीजेपी को 1751 करोड़ का चंदा दिया है। आम जनता से लूटा गया भ्रष्टाचार का पैसा बांड के रूप में भाजपा के खाते में जमा किया गया। सोचने की बात यह है कि एक बड़ी पूंजीवादी कंपनी किसी राजनीतिक दल को सैकड़ों करोड़ रुपये क्यों देती है? जब सरकारें बड़े-बड़े ठेके देती हैं तो ये कंपनियां पार्टियों को भारी चंदा देती हैं। इसे ही प्रतिदान (Quid Pro Quo) कहते हैं।

देश की संपदा का दान

देश में क्षेत्रीय पार्टियों में सबसे अधिक संपत्ति बीआरएस के पास यानी पूर्व सीएम केसीआर के पास है। केसीआर सरकार ने राज्य की जनता के खजानों को निवेशकों के जेबों में भर दियाहै। बदले में बीआरएस देश की सबसे बड़ी और सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी बन गई। यह ज्ञात नहीं है कि निवेशको ने शेयरधारकों को मुनाफे का हिस्सा दिया गया है या नहीं, लेकिन राजनीतिक दलों को सैकड़ों-हजारों करोड़ रुपये उदारतापूर्वक दिए गए है।। आईएफबी (एग्रो) का बाजार पूंजीकरण 400 करोड़ रुपये है। पिछले वित्तीय वर्ष में इसका राजस्व 49 करोड़ रुपये था। 5 करोड़ रुपये का मुनाफा हुआ। लेकिन, राजनीतिक पार्टियों को इसका चंदा 92 करोड़ है। इसने अपने मुनाफे के लाभ से लगभग 19 गुना अधिक राजनीतिक दलों को दान दिया है। कोई भी कंपनी अपने वास्तविक लाभ से 19 गुना से अधिक दान नहीं कर सकती। यानि मुनाफा उससे भी ज्यादा होता है। दिविस लैब ने 55 करोड़ रुपये और यूनाइटेड पास्परस इंडिया लिमिटेड ने 50 करोड़ रुपये राजनीतिक दलों मुख्य रूप से भाजपा को चंदा दिया है।

एसबीआई को सुप्रीम कोर्ट का तमाचा

जब तक सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक को चुनावी इलेक्टोरल बांड मामले में तमाचा नहीं मारा तब तक एसबीआई नीचे नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से साफ किया कि बांड के संबंध में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए और आधी-अधूरी जानकारी से काम नहीं चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि खरीदार का विवरण, प्राप्तकर्ता का विवरण और उनकी संख्या सटीक होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्थगित करने की मांग वाली एसोचैम, फिक्की और सीआईआई की याचिकाओं को खारिज कर दिया।

… फिर भी खुलासा नहीं किया

मुकुल रोहितगी ने तर्क दिया कि जब बांड (दान) योजना शुरू की जाएगी, तो दानदाताओं के नाम सुरक्षित यानी गुप्त रखेंगे। उन्होंने पूछा कि वे इसका खुलासा कैसे करते है। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी को खारिज कर दिया। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को चुनावी बांड के विवरण का खुलासा करने का आदेश दिया, लेकिन इसका खुलासा नहीं किया। इससे पहले DMK को छोड़कर किसी भी राजनीतिक दल ने अपने बांड के विवरण का खुलासा नहीं किया। भाजपा ने घोषणा की है कि प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत दान के विवरण का खुलासा नहीं किया जा सकता है। क्या यह पारदर्शिता को दफन करने वाली पद्धति नहीं है?

यह योजना है असंवैधानिक

21 संगठनों ने चुनावी बांड के रूप में बीजेपी को सैकड़ों करोड़ रुपये का चंदा दिया है। जांच एजेंसियों की छापेमारी के बाद ही बीजेपी ने हजारों करोड़ रुपये के चुनावी एलोक्टरोल बांड खरीदे है। भाजपा द्वारा शुरू की गई चुनावी बांड योजना एक वैध और बड़े पैमाने पर भ्रष्ट योजना है। यह एक बड़ा चुनावी घोटाला है. माना जा रहा है कि बीजेपी ने 60 फीसदी से ज्यादा चंदे से निवेशकों से 8200 करोड़ रुपये डरा धमकाकर जुटाए हैं। इसमें किसी भी प्रकार की पारदर्शिता नहीं है। चुनावी बांड योजना पूरी तरह से असंवैधानिक है। (वी-6 तेलुगु दैनिक 27.3.2024 से साभार)

– लेखक नैनाला गोवर्धन, सामाजिक विश्लेषक

ఎన్నికల బాండ్లా? అవినీతి బాండ్లా?

ఎన్నికల బాండ్లపై సుప్రీంకోర్టు తీర్పు దేశ పాలకులకి, బడా పెట్టుబడిదారులకు మధ్య బంధాన్ని బయటపెట్టింది. ప్రజాస్వామ్య పాలన పోయి, పెట్టుబడిదారుల వల్లనే మన ఎన్నికల (అ)ప్రజాస్వామ్యం కొనసాగుతోంది. కేంద్రంలోని అధికార బీజేపీకి కార్పొరేట్ కంపెనీలు అంతులేని ప్రేమతో 8,200 కోట్లు ఇచ్చారు. తృణమూల్ కాంగ్రెస్ కు 1,397 కోట్లు ఇచ్చారు. జాతీయ కాంగ్రెస్ మూడో స్థానంలోకి వెళ్ళింది. బీఆర్​ఎస్, వైసీపీలు విరాళాల్లో జాతీయ పార్టీలతో పోటీపడ్డాయి. వర్గ శత్రువులైన కమ్యూనిస్టు పార్టీలకు సహజంగానే పెట్టుబడిదారులు పైసా ఇవ్వలేదు.

మేఘా ఇంజినీరింగ్ అండ్ ఇన్ఫ్రాస్ట్రక్చర్ లిమిటెడ్ 584 కోట్లు బీజేపీకి ఎన్నికల విరాళాలుగా ఇచ్చింది. అలాగే బీఆర్ఎస్​కు రూ.195 కోట్లు ఇచ్చింది. కూలుతున్న కాళేశ్వరం, మేడిగడ్డ, అన్నారం, సుందిళ్ళ ప్రాజెక్టుల పేరిట తెలంగాణను ఏడు లక్షల కోట్ల అప్పుల రాష్ట్రంగా మార్చి, మేఘా కంపెనీ వందల కోట్ల అతి పెద్ద వాటా బీజేపీకి, బీఆర్ఎస్ కు విరాళాలు ఇచ్చింది. మేఘా కంపెనీ 1,186 కోట్ల ఎన్నికల బాండ్లని కొంటే, అందులో బీజేపీకే 584 కోట్లు ఇచ్చింది. మొత్తం ఎన్నికల బాండ్ల కుంభకోణంలో 60 శాతం లాభపడింది బీజేపీ మాత్రమే.

ఎస్బీఐ సమాచారం ప్రకారం 38 బడా కంపెనీలకు 179 ప్రభుత్వ కాంట్రాక్టులు, వాటి విలువ రూ. 3.8 లక్షల కోట్లు. 62 వేల కోట్ల కేంద్ర, రాష్ట్ర బీజేపీ ప్రభుత్వాల కాంట్రాక్టులు పొందిన తర్వాత రూ. 580 కోట్ల బీజేపీ ఎన్నికల బాండ్లు కొన్నారు. బాండ్ల కొనుగోలుదారుల జాబితాలో 18,871 ఎంట్రీలు అయితే పార్టీల జాబితాలో 20,421. రెండు జాబితాలలోను సరిపోలిన బాండ్లు 18,741. వాటి విలువ 12,145.88 కోట్లు. కానీ, గత ఐదేండ్లలో జారీ అయిన మొత్తం బాండ్ల విలువ 12,769 కోట్లు. మొత్తం బాండ్లలో 623 కోట్ల తేడా వస్తుంది. ఇందులో అత్యధికం బీజేపీకి వెళ్లాయి. బీజేపీకి రూ.466.5 కోట్లు ఎవరు ఇచ్చారో తెలియని రహస్య బడా పెట్టుబడిదారులు ఉన్నారు. ఎస్బీఐ ఇంకా సమాచారం దాస్తోంది.

బడా కంపెనీల కబంధ హస్తాల్లో ప్రభుత్వాలు

రాజకీయ పార్టీలకు అందిన విరాళాల్లో సగానికి సగం కేవలం 23 కంపెనీల నుంచి అందాయి. లాటరీ కింగ్ మార్టిన్ 13 రాష్ట్రాల్లో రోజూ జనాన్ని భారీ ఎత్తున దోచుకుంటూ, ఈడీ దాడులు జరగగానే అదే నెలలో బీజేపీకి 100 కోట్ల విరాళాలు ఇచ్చారు. సుప్రీంకోర్టు ఎన్నికల బాండ్ల తీర్పు వల్ల పెట్టుబడిదారులకు, బీజేపీకి మధ్య ఉన్న భారీ అక్రమ బంధం బయటపడింది. దీనివల్ల దేశవ్యాప్తంగా భారీ ఎత్తున ఓట్లకి గండిపడుతుందని బీజేపీ గ్రహించింది. నష్ట నివారణగా సీఏఏ దేశవ్యాప్త అమలుకు అమిత్ షా పిలుపునిచ్చారు. బీజేపీ ప్రజల ఆర్థిక సమస్యలు పరిష్కరించకపోగా, వారినే పన్నుల రూపంలో అంతులేని దోపిడీ చేస్తోంది. బాలరాముడి ప్రాణ ప్రతిష్ఠ చేసిన మోదీ వ్యక్తిత్వం నాటి రాముడి వ్యక్తిత్వానికి సరితూగుతుందా?

ఈడీ, ఐటీ దాడులు.. బాండ్ల కొనుగోలు

ఐటీ, ఈడీ, సీబీఐ లాంటి కేంద్ర ఏజెన్సీల దర్యాప్తును ఎదుర్కొంటున్న 41 కంపెనీలు గత ఐదేండ్లలో బీజేపీకి విరాళాల రూపంలో 2,471 కోట్లు ఇచ్చారని ప్రముఖ న్యాయవాది ప్రశాంత్ భూషణ్ వెల్లడించారు. ఇందులో 1,698 కోట్లు ఆ సంస్థలపై దాడులు చేసిన తర్వాత ఇచ్చినవే అన్నారు. దేశవ్యాప్తంగా 3.7 లక్షల కోట్ల విలువైన ప్రాజెక్టుల కాంట్రాక్టులు దక్కించుకున్న 33 గ్రూపులు బీజేపీకి 1751 కోట్లు విరాళంగా ఇచ్చారు. సామాన్య జనాన్ని దోచుకున్న అవినీతి డబ్బు బాండ్ల రూపంలో బీజేపీ ఖాతాలో ఏరులై పారింది. ఓ బడా పెట్టుబడిదారీ కంపెనీ ఒక రాజకీయ పార్టీకి వందల కోట్ల రూపాయలు ఊరికే ఎందుకు ఇస్తుంది? ప్రభుత్వాలు భారీ కాంట్రాక్టులు ఇస్తే, కంపెనీలు ఆపార్టీలకు భారీగా విరాళాలు ఇస్తాయి. ఇదే క్విడ్ ప్రోకో.

దేశ సంపద ధారాదత్తం

దేశంలో ప్రాంతీయ పార్టీల్లో అన్నింటికంటే బీఆర్ఎస్ సంపద చాలా ఎక్కువ. రాష్ట్ర ప్రజల ఖజానాను పెట్టుబడిదారులకు కేసీఆర్​ సర్కారు ఊడ్చిపెట్టింది. ప్రతిగా బీఆర్ఎస్​ దేశంలోనే అతిపెద్ద సంపన్న ప్రాంతీయ పార్టీగా మారింది. షేర్ హోల్డర్లకు లాభాల్లో వాటా ఇచ్చారో లేదో తెలియదు కానీ, రాజకీయ పార్టీలకు వందల వేల కోట్లు ఉదారంగా ఇచ్చారు. ఐఎఫ్ బీ (ఆగ్రో) మార్కెట్ క్యాపిటలైజేషన్ 400 కోట్లు. గత ఆర్థిక సంవత్సరంలో దాని ఆదాయం 49 కోట్లు. ఐదు కోట్ల లాభం వచ్చింది. కానీ, అది రాజకీయ పార్టీలకు ఇచ్చినవిరాళాలు 92 కోట్లు. దానికి వచ్చిన లాభం కంటే దాదాపు 19 రెట్లు రాజకీయ పార్టీలకు విరాళాలు ఇచ్చింది. ఏ కంపెనీ దాని నిజమైన లాభం కంటే 19 రెట్లు అధికంగా విరాళాలు ఇవ్వదు. అంటే లాభం అంతకంటే ఎక్కువే ఉంటుంది. దివిస్ ల్యాబ్ 55 కోట్లు, యునైటెడ్ పాస్పరస్ ఇండియా లిమిటెడ్ 50 కోట్లు, రాజకీయ పార్టీలకు ప్రధానంగా బీజేపీకి విరాళాలు ఇచ్చాయి.

ఎస్బీఐకి సుప్రీంకోర్టు మొట్టికాయలు

ఎన్నికల బాండ్ల కేసు విచారణలో స్టేట్ బ్యాంక్ ఆఫ్ ఇండియాకు సుప్రీంకోర్టు మొట్టికాయలు వేస్తే తప్ప ఎస్బీఐ దిగిరాలేదు. బాండ్లకు సంబంధించి పూర్తి సమాచారం ఇవ్వాల్సిందేనని, అరకొర సమాచారం ఇస్తే కుదరదని తేల్చి చెప్పింది. కొన్నవారి వివరాలు, స్వీకరించిన వారి వివరాలు, వాటి సంఖ్య కచ్చితంగా ఉండాల్సిందేనని సుప్రీంకోర్టు తేల్చి చెప్పింది. ఎన్నికల బాండ్లపై సుప్రీంకోర్టు తీర్పును వాయిదా వేయాలని అసోచామ్, ఫిక్కి, సిఐఐ వేసిన పిటీషన్లను సుప్రీంకోర్టు తోసిపుచ్చింది.

ముకుల్ రోహిత్గి వాదిస్తూ బాండ్ల (విరాళాల) పథకం ప్రవేశపెట్టినపుడు దాతల పేర్లు కాపాడుతామని చెప్పారు. మరి ఎలా బయటపెడతారని ప్రశ్నించారు. సుప్రీంకోర్టు వీటన్నిటిని తోసిపుచ్చింది. 2019, ఏప్రిల్ 12న సుప్రీంకోర్టు రాజకీయ పార్టీలను ఎన్నికల బాండ్ల వివరాలు బయటపెట్టాలంటూ ఆదేశాలు జారీ చేసినా వెల్లడి చేయలేదు. ముందు డీఎంకే తప్ప ఏ రాజకీయ పార్టీ తమ బాండ్ల వివరాలను వెల్లడించలేదు. బీజేపీ ప్రాతినిధ్య చట్టం నిబంధనల ప్రకారం విరాళాల వివరాలను వెల్లడించడం కుదరదని ప్రకటించింది. ఇది పారదర్శకతను పాతర వేసే పద్ధతి కాదా?

ఈ పథకం రాజ్యాంగ విరుద్ధం

21 సంస్థలు బీజేపీకి ఎన్నికల బాండ్ల రూపంలో వందల కోట్ల విరాళాలు ఇచ్చాయి. దర్యాప్తు సంస్థలు దాడులు చేసిన తర్వాతే వందల వేల కోట్ల రూపాయలు బీజేపీ ఎన్నికల బాండ్లను కొనుగోలు చేయడం జరిగింది. బీజేపీ ప్రవేశపెట్టిన ఎన్నికల బాండ్ల పథకం ఒక చట్టబద్ధమైన భారీ అవినీతి పథకం. ఇది ఒక భారీ ఎన్నికల స్కామ్. బీజేపీ 60 శాతం పైగా విరాళాలతో 8,200 కోట్లు పెట్టుబడిదారుల నుంచి నయానా భయానా వసూలు చేసిందని అర్థమవుతున్నది. పారదర్శకత ఏమాత్రం లేని ఎన్నికల బాండ్ల పథకం రాజ్యాంగ విరుద్ధం.

– నైనాల గోవర్ధన్, సోషల్​ ఎనలిస్ట్

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recent Posts

Recent Comments

    Archives

    Categories

    Meta

    'तेलंगाना समाचार' में आपके विज्ञापन के लिए संपर्क करें

    X