हैदराबाद : हैदराबाद में नेहरू जूलॉजिकल पार्क मीरआलम तालाब के बगल में 380 एकड़ में प्रकृति की गोद में है। इस पार्क में रंग-बिरंगे पक्षी और अनेक प्रकार के देशी-विदेशी जानवर हैं। 6 अक्टूबर 1963 यह चिड़ियाघर को खुला है। खुलने के 10 साल तक सुचारू रूप से चला। उसके बाद जैसे-जैसे जानवरों की संख्या बढ़ती गई, उनका प्रबंधन भी भार होता गया।

2002 में वन्यजीव गोद लेने की योजना को लागू किया गया था। लेकिन 2009 तक इसकी अमलावरी नहीं हो पाई। सरकार पर बढ़ते दबाव के चलते 2010 से नेहरू चिड़ियाघर में गोद लेने की योजना को लागू किया जा रहा है। 2014 तक गोद लेने का कार्यक्रम सुचारू रूप से चला। मगर 2015 के बाद से गोद लेने वालों की संख्या में काफी गिरावट आई है। 2013-14 में वन्यजीव के गोद लेने से चिड़ियाघर की आय 80 लाख रुपये हुई थी। वहीं 2014-15 में घटकर 44 लाख रुपये रह गई। पिछले 6 महीनों से चिड़ियाघर में फिर से वन्यजीवों को गोद लेना बढ़ रहा है।

जब से वन्यजीव गोद लेने की योजना शुरू की गई थी तब से यानी अप्रैल 2020 तक 118 जानवरों को गोद लिया गया। सफेद बाघ, चिंपैंजी, शेर, कछुआ जैसे जानवर और पक्षियों को आईटी, निजी कंपनियों के प्रबंधक, कर्मचारी, स्वयंसेवी संगठनों ने गोद लिया है। गोद लेने के कारण 49 लाख रुपये की आय प्राप्त हुई है। पिछले तीन माह में 24 पशुओं को गोद लिया गया है।

फिलहाल जिराफ या हाथी को अगर एक साल के लिए गोद लेना चाहते हैं तो 5 लाख रुपये भुगतान करना होगा। अगर शेर या बाघ को गोद लेना चाहते है तो एक लाख रुपये देना होगा। पशु प्रेमियों को उनके गोद वाले वाले पशु के रखरखाव के आधार पर पैसे देने पड़ते हैं। अगर एक साल के लिए जानवरों समेत किसी भी पक्षी को गोद लिया जाता है तो 25 हजार को चिड़ियाघर के अधिकारियों को भुगतान करना होगा। सांपों के लिए एक साल के लिए 30 हजार भुगतान करना होगा। चीता, जगुआर, पैंथर के लिए सालाना 75 हजार रुपये चुकाने पड़ते हैं।

जूक्यूरी ऐटार राजेश्वर के अनुसार, जन्मदिन और शादियों को भव्य रूप से मनाने वाले चिड़ियाघर में साधरण रूप से जश्न मनाते है। इसके लिए वो जानवरों को गोद लेते हैं। इसके चलते चिड़ियाघर के अधिकारियों के लिए जानवरों के प्रबंधन का बोझ कम हो रहा है। लॉकडाउन के बाद से पशुओं को गोद लेने का चलन बढ़ गया है।

बीते समय से भी इन 6 महीनों में पशु प्रेमियों में गोद लेने के प्रति जागरूकता बढ़ी है। अधिकारियों का कहना है कि छोटे बच्चे भी अपने किडी बैंकों में छिपाकर रखे पैसे लेकर एनिमल एडॉप्शन के लिए आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भुगतान के लिए नकद, चेक, डीडी जैसे सभी प्रकार के पद्धति उपलब्ध हैं। जानवरों को गोद लिया जाता तो चिड़ियाघर को आर्थिक संकट से निजात मिलने की संभावना है। साथ ही जानवरों और पक्षियों के लिए बेहतर आहार उपलब्ध किया जाएगा।
