स्व-अध्ययन सामग्री पर एकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला
हैदराबाद (डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा की रिपोर्ट): “एस एल एम (सेल्फ लर्निंग मेटीरियल) या स्व-अध्ययन सामग्री ऐसी सामग्री है जिसे आदि से लेकर अंत तक छात्रकेंद्रित होना चाहिए। इस सामग्री को तैयार करते समय लेखक से लेकर संपादक, समन्वयक, परामर्शी आदि कई लोग आपस में मिलजुलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं। स्व-अध्ययन सामग्री की बात करें तो वास्तव में सबसे पहले वही सीखता है जो उस पाठ को लिखता है। इस दृष्टि से सबसे पहला लर्नर पाठ लेखक ही होता है। हर इकाई उसके लिए एक चुनौती है और हर पाठ लिखते समय लेखक को स्वयं शिक्षार्थी लर्नर बनना ही होगा। अन्यथा आप अपने लक्ष्य छात्रों के साथ न्याय नहीं कर पाएँगे।
लेखक के रूप में केवल पिष्टपेषण न करें। विषय पर ध्यान दें। शिक्षक के साथ-साथ शिक्षार्थी बनकर इकाई लिखने का प्रयास करें। अपने अंदर निहित विद्यार्थी को जगाइए और उसके अनुरूप, उसकी सीखने की क्षमता के अनुरूप शब्द चयन कीजिए ताकि आसानी से विषय प्रेषित और ग्रहण किया जा सके। यह सामग्री पूरी तरह से विद्यार्थियों के लिए ही होनी चाहिए। विद्यार्थी समीक्षक होते हैं, अतः लेखक कभी भी कहीं भी प्रेसक्राइब न करें। विषय को डिस्क्राइब करें। सामग्री-निर्माण के समय विधार्थी और उसकी लर्निंग स्टाइल को भी ध्यान में रखें। लिखने-पढ़ने-सीखने की यह यात्रा कभी समाप्त नहीं होती है। यह आगे भी निरंतर चलती रहेगी।”
ये विचार प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया) ने 28 दिसंबर को मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो मोहम्मद रज़ाउल्लाह ख़ान की अध्यक्षता में संपन्न एकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बीज भाषण देते हुए प्रकट किए। इस कार्यशाला में दूरस्थ शिक्षा माध्यम के छात्रों के लिए हिंदी की गुणवत्तापूर्ण श्रेष्ठ स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने के सिद्धांत और तकनीक पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. मोहम्मद रज़ाउल्ला खान ने उपस्थित सभी इकाई-लेखकों और संपादन मंडल के सदस्यों को साधुवाद देते हुए हर्ष व्यक्त किए। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए हिंदी की शिक्षण सामग्री की सराहना की और इसे दूरस्थ माध्यम के छात्रों की ज़रूरतों के मुताबिक बताया।
बतौर मुख्य अतिथि भाषा विभाग के पूर्व डीन प्रो नसीमुद्दीन फरीस ने स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उन पर चर्चा की और इकाई-लेखकों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि एस एल एम अर्थात स्व-अध्ययन सामग्री को मुख्य रूप से ‘पाँच स्व’ को ध्यान में रखकर निर्मित किया जाता है- स्व-व्याख्यात्मक, स्व-निहित, स्व-निर्देशित, स्व-प्रेरक और स्व-मूल्यांकनपरक।
संपादक मंडल के सदस्य प्रो. श्याम राव राठौड़ (अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय) और डॉ. गंगाधर वानोडे (केंद्रीय हिंदी संस्थान) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए यह आश्वासन दिया कि गुणवत्तापूर्ण सामग्री निर्माण में वे आगे भी मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी को अपना योगदान देते रहेंगे।
आमंत्रित वक्ता डॉ गुर्रमकोंडा नीरजा (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई) ने स्व-अध्ययन सामग्री के संपादन के समय उपस्थित चुनौतियों पर व्यावहारिक रूप से प्रकाश डाला। डॉ मंजु शर्मा (चिरेक इंटरनेशनल) और हिंदी विभाग, मानू के आचार्य डॉ. पठान रहीम खान और डॉ. अबु होरैरा आदि ने इकाई-लेखक के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया।
कार्यशाला में डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. शशिबाला, डॉ. वाजदा इशरत, डॉ. अनिल लोखंडे, शीला बालाजी, निलया रेड्डी, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. अदनान बिसमिल्लाह, डॉ. इरशाद, डॉ. समीक्षा शर्मा और शेख मस्तान वली आदि ने सक्रिय सहभागिता निभाई।
इस कार्यक्रम में एमए (हिंदी) द्वितीय सत्र की पाठसामग्री के साथ-साथ डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की समीक्षा कृति “परख और पहचान” का भी लोकार्पण निदेशक प्रो रज़ाउल्लाह ख़ान ने किया। प्रो ख़ान ने समस्त अतिथियों का पुष्पगुच्छ और शॉल से भावभीना स्वागत-सत्कार किया, तो इकाई-लेखकों की ओर से परामर्शी और संपादक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने निदेशक प्रो रज़ाउल्लाह ख़ान तथा कोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ आफ़ताब आलम बेग का अभिनंदन शॉल ओढ़ाकर किया।
प्रतिभागी इकाई-लेखकों को हिंदी विषय की प्रकाशित 14 पुस्तकों की लेखकीय प्रतियाँ ससम्मान भेंट की गईं। कार्यक्रम का संचालन डॉ आफताब आलम बेग ने किया तथा डॉ अनिल लोखंडे ने धन्यवाद ज्ञापित किया।