वैश्विक हिन्दी परिवार: हिन्दी शोध की चुनौतियाँ, जिज्ञासाएँ और समाधान पर चर्चा, इन वक्ताओं ने बताया यह राज

हैदराबाद (डॉ जयशंकर यादव की रिपोर्ट): वैश्विक हिन्दी परिवार के तत्वावधान में विश्व में हिन्दी शोध की चुनौतियों और नई दिशाओं की महत्ता के मद्देनजर विशेष रविवारीय व्याख्यान आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर के पूर्व प्रोफेसर डॉ आलोक गुप्त ने इक्कीसवीं सदी में महाशक्ति के रूप में उभरते भारत की भाषा हिन्दी के शोध की दिशा में नए आयाम बताए।

उन्होंने कहा कि तुलनात्मक दृष्टि से हिन्दी में शोध सर्वाधिक हो रहा है, किन्तु इसका स्तर कायम रखना निहायत जरूरी है। कॅरियर और कंपीटीशन शोध कार्य में बाधक नहीं होने चाहिए। पच्चीस पीएचडी और पचास से अधिक एमफिल करा चुके डॉ गुप्त ने कहा कि शोध निर्देशक और शोधार्थी को रिले रेस की तरह अपनी ज़िम्मेदारी और मर्यादा में रहना चाहिए। हिंदीतर भाषी शोधार्थी शोध सामाग्री अपनी भाषा में पढ़कर तुलनात्मक शोध बेहतर कर सकते हैं। शोधार्थी को आत्मावलोकन, गौरव और स्वाभिमान से आगे बढ़ाना चाहिए।

इस आयोजन पर हर्ष प्रकट करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो हरीश अरोड़ा ने कहा कि आज के तकनीकी युग में विषय का ठीक से चयन करने के पश्चात शोध लेखन में संकेन्द्रण और नए मानकों पर खरा उतरना आवश्यक है। भारतीय जीवन दृष्टि और व्यावहारिकता के साथ परंपरा और आधुनिकता में समन्वय होना चाहिए। पुस्तकालय और पुस्तक पठन के साथ गहन चिंतन, मनन और गठन के पश्चात चरणबद्धता के साथ सार तत्व का लेखन हो। पैंतीस पुस्तकों के लेखक प्रो अरोड़ा का कहना था कि किसी भी स्थिति में केवल उपाधि के लिए शोध और साहित्यिक चोरी नहीं होनी चाहिए।

महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के प्रो राम नरेश मिश्र ने शुभाषित श्लोक से अपनी बात की शुरुआत कराते हुए कहा कि शोध की गंभीरता हर हाल में कायम रहनी चाहिए। सुनिश्चित विषय चयन के अनुरूप ही रूपरेखा सुगठित की जानी चाहिए। भाषा वैज्ञानिक एवं 43 पुस्तकों के लेखक और सैकड़ों शोधार्थियों के मार्गदर्शक तथा कुशल प्रशासक प्रो मिश्र ने कहा कि क्षतिपूरक दीर्घीकरण और भाषा विज्ञान तथा व्याकरण के सिद्धांतों सहित मानकता व तार्किकता का अवश्य पालन होना चाहिए। लेखन में महाप्राण के संकट में होने पर अल्पप्राण छोटे भाई की तरह सहायता करता है। अच्छा मनुष्य हर जगह अच्छा ही रहता है।हमें भारतीय संस्कृति की प्रक्रिया अपनानी चाहिए।

पंजाब विश्वविद्यालय की शोधार्थी स्वयंवदा द्वारा शोध की कठिनाइयों और रोजगार के संबंध में पूछे गए सवाल का बेबाक विश्लेषण सहित उत्तर दिया गया और शोधार्थियों को सामंजस्य बैठाकर चलने की सलाह दी गई। मुंबई से डॉ वागीश दत्त गौतम का मत था कि केंद्रीय सरकार के कार्यालयों, उपक्रमों, निगमों, निकायों और बैंकों आदि में भी राजभाषा और अनुवाद से जुड़े रोजगार की अपार संभावनाएं हैं।

दिल्ली से जितेंद्र कुमार द्वारा विषय प्रवर्तन और आत्मीयता पूर्वक स्वागत किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कालेज के प्राध्यापक डॉ राजेश गौतम द्वारा यथोचित भूमिका के साथ शालीनता, विद्वता और बड़े इत्मीनान से संतुलित संचालन किया गया। उन्होने बारी-बारी वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए सहज भाव से सादर आमंत्रित किया।

इस कार्यक्रम में जापान से पद्मश्री प्रो तोमियो मिजोकामी, अमेरिका से प्रो सुरेन्द्र गंभीर, यू के की साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर, शैल अग्रवाल चीन से प्रो विवेक मणि त्रिपाठी, सिंगापुर से प्रो संध्या सिंह, कनाडा से शैलेजा सक्सेना, खाड़ी देश से आरती लोकेश, थाइलैंड से प्रो शिखा रस्तोगी तथा भारत से डॉ नारायण कुमार, प्रो जगन्नाथन, डॉ जवाहर कर्नावट, प्रो राजेश कुमार, प्रो विजय मिश्र, गंगाधर वानोडे, विजय नगरकर, परमानंद त्रिपाठी, के एन पाण्डेय, सत्य प्रकाश, सोनू कुमार, अंजलि, वंदना, कविता, सरोज कौशिक, ए के साहू, ऋषि कुमार, माधुरी क्षीरसागर, परशुराम मालगे, डॉ विजय द्वय, विनय शील चतुर्वेदी, स्वयंवदा एवं अनुज आदि सुधी श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही।

तकनीकी सहयोग का दायित्व डॉ मोहन बहुगुणा और कृष्ण कुमार द्वारा बखूबी संभाला गया। इस अवसर पर अनेक शोधार्थी उपस्थित थे। शोधार्थियों का समन्वय प्रो विवेक द्वारा किया गया।

समूचा कार्यक्रम विश्व हिन्दी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और केंद्रीय हिन्दी संस्थान के सहयोग से वैश्विक हिन्दी परिवार के अध्यक्ष अनिल जोशी के मार्गदर्शन और सुयोग्य समन्वयन में संचालित हुआ। अंत में जितेंद्र कुमार चौधरी द्वारा संयोजन सहित वक्ताओं के मुख्य अंशों को रेखांकित करते हुए आत्मीय भाव से माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ताओं, संचालकों, संयोजकों, प्राध्यापकों, सहयोगियों, शोधार्थियों एवं देश विदेश से जुड़े सुधी श्रोताओं तथा कार्यक्रम टीम सदस्यों आदि के नामोल्लेख सहित कृतज्ञता प्रकट की गई। तकनीकी के व्यापक प्रभाव और सही दृष्टिकोण के साथ विश्व भाषा हिन्दी में शोध की सुखद आत्मीय अनुभूति और सानंद सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम वैश्विक हिन्दी परिवार शीर्षक से यू ट्यूब पर उपलब्ध है।

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