युवा उत्कर्ष की मार्मिक, सारगर्भित और संदेशात्मक संगोष्ठी संपन्न, यह रहा विषय व ये रहे वक्ता

हैदराबाद: युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की तेरहवीं ऑनलाइन संगोष्ठी 28 अक्तूबर को आयोजित की गई। डॉ रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार रामकिशोर उपाध्याय (राष्ट्रीय अध्यक्ष,दिल्ली) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। बतौर विशेष अतिथि सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार/साहित्यकार प्रवीण प्रणव एवं प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार/समीक्षक अवधेश कुमार सिन्हा मंचासीन हुए।

कार्यक्रम का शुभारंभ सुश्री दीपा कृष्णदीप के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात अध्यक्षा डॉ रमा द्विवेदी ने सम्माननीय अतिथियों का स्वागत शब्दपुष्पों द्वारा किया एवं परिचय दिया। संस्था का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि संस्था अपने संकल्पित लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ प्रगति की ओर अग्रसर है। प्रथम सत्र “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत आयोजित किया गया। इस अवसर पर अनमोल अहसास के अंतर्गत प्रमुख वक्ता अवधेश कुमार सिन्हा के द्वारा “हिंदी साहित्य में बोलियों का योगदान” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई।

विशिष्ट अतिथि व साहित्यकार प्रवीण प्रणव (सीनियर डायरेक्टर, माइक्रोसॉफ्ट) ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि “हिंदी साहित्य में बोलियों के योगदान” पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है। इसके योगदान की हम सब सराहना करते हैं। प्रवीण प्रणव ने अपनी पाँचवीं से दसवीं तक के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कविताओं के माध्यम से अवधी, ब्रज भाषा, बुन्देलखंडी, मैथिली और भोजपुरी बोलियों की कविताओं का उल्लेख करते हुए विषय के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदी यदि शरीर है तो बोलियाँ इसके आभूषण हैं। बोलियों के बिना हिंदी का सौन्दर्य अधूरा है।”

प्रमुख वक्ता व वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी ने कहा-“भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएं और उनकी बोलियाँ व उप-बोलियाँ बोली जाती हैं। हिन्दी प्रदेशों में अपभ्रंश से निकली बोलियों व उप-बोलियों ने हिन्दी साहित्य में मुख्यत: तीन रूपों में महती योगदान दिया है। पहला- स्वयं हिन्दी भाषा के विकास व उसके मानकीकरण में, दूसरा- इन बोलियों में रचित लोक एवं भक्ति साहित्य द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने और तीसरा- हिन्दी में रचित साहित्य, विशेषकर उपन्यासों एवं कहानियों में आंचलिक बोलियों के रूप में प्रयुक्त होकर रहना है। उन्होंने कहा कि जन-भाषा के रूप में उपजी इन बोलियों के सृजनात्मक प्रयोग से हिन्दी साहित्य में रोचकता, जीवंतता तथा बिंबात्मकता का निर्माण तो हुआ ही है, इससे भाषिक संरचना के नये आयाम भी उद्घाटित हुए हैं। भाषा में सौंदर्यात्मक वृद्धि भी हुई है। वस्तुतः हिन्दी प्रदेशों की बोलियाँ हिन्दी साहित्य की अभिन्न अंग हैं। इसका महत्वपूर्ण उपादान हैं।”

तत्पश्चात मन के रंग मित्रो के संग में सुपरिचित साहित्यकार किरण सिंह ने अपना प्रेरक प्रसंग सुनाया। पहली बार हैदराबाद आने पर और स्थानीय भाषा का ज्ञान न होने के संघर्ष को उन्होंने विस्तार से साझा किया ।

अध्ययक्षीय उद्बोधन में सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार रामकिशोर उपाध्याय ने विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा- “भाषा किसी के हृदय तक जाने का मार्ग है। चाहे वह मौखिक हो, लिखित हो या सांकेतिक हो। भाषा मूल्यों और विचारों की वाहक होती हैं और मानवीय गुणों की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। भाषा और बोली दोनों अलग-अलग विधा हैं | किसी भाषा की अनेक बोलियाँ हो सकती हैं। जैसे- केवल हिंदी की ही सत्रह बोलियाँ है। भाषा की एक ही बोली का उच्चारण अलग-अलग स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकार से होता है।

उन्होंने आगे कहा कि बोलियों में साहित्य सृजन के उदाहरण बहुत कम हैं। अवधी में तुलसीदास सृजित रामचरित मानस, जायसी का पद्मावत, ब्रज में सूरदास का सूरसागर, मैथली में विद्यापति के पद, गोरखनाथ की सधुक्कड़ी बोली में गोरख बानी, मीरा के पद आदि साहित्य जैसे अपवाद अवश्य हैं, जिनमें रचा गया साहित्य कालजयी है।

उन्होंने यह भी कहा कि बोलियाँ भाषा को सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से समृद्ध करती हैं। अतः साहित्य सृजन में उनका महत्वपूर्ण योगदान होता है। एक शोध के अनुसार भारत की लगभग 239 बोलियाँ लुप्त की और हैं। स्थायी जीविका की तलाश में लोग गाँव से शहर की ओर पलायन एवं बस जाना भी बोलियों के विलुप्ति का एक प्रमुख कारण है। अतः बोलियों को बचाए रखना जितना समस्त भारतीय भाषाओं के साहित्य के लिए आवश्यक है। उससे भी अधिक समाज के उन बोली समूहों की पहचान को अक्षुण्य रखना आवश्यक है। प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने किया।

दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर ग़ज़ल, गीत, दोहे, मुक्तक, कविता एवं छांदस रचनाओं का काव्य पाठ करके माहौल को बहुत खुशनुमा बना दिया। श्रीमती विनीता शर्मा (उपाध्यक्षा ), अवधेश कुमार सिन्हा (परामर्शदाता) डॉ रमा द्विवेदी, दीपा कृष्णदीप, संजीव चौधरी, प्रवीण प्रणव (परामर्शदाता), डॉ सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव), शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका), विजय प्रशांत (राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष,दिल्ली ) मोहिनी गुप्ता, किरण सिंह, तृप्ति मिश्रा, सुनीता लुल्ला, रमा गोस्वामी, मल्लिका ने काव्य पाठ करके सबका मन मोह लिया।

रामकिशोर उपाध्याय ने अध्यक्षीय काव्य पाठ में ‘माँ’ पर मार्मिक गीत एवं ग़ज़ल सुनाई। इसके अलावा सभी रचनाकारों की रचनाओं की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए सफल कार्यक्रम की बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित की गई। काव्य गोष्ठी का संचालन दीपा कृष्णदीप ने किया एवं सुश्री तृप्ति मिश्रा के आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।

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