हैदराबाद : वाईएसआर तेलंगाना पार्टी (YSRTP) की अध्यक्ष वाईएस शर्मिला के खिलाफ तेलंगाना में तीन प्रमुख राजनीतिक पार्टियां एक ही तरह का रणनीति अपना रहे हैं। भले ही यह थोड़ा हैरान करने वाला और दिलचस्प लगता है। मगर तेलंगाना में इस समय जारी राजनीति को देखने पर यही महसूस होता है। तेलंगाना में 2023 में सत्ता काबिज करने के लिए टीआरएस, कैसे भी हो पुराना वैभव ले आने के लिए कांग्रेस और पार्टी का ध्वज फहराने के लिए बीजेपी ठान ली हैं। इसके साथ ही संबंधित दलों ने आने वाले चुनाव के लिए अपने-अपने नेताओं को भी तैयार करने जुट गये हैं।
इसी पृष्ठभूमि में तेलंगाना में ‘राजन्ना राज्य’ नारे के साथ दिवंगत मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की बेटी वाईएस शर्मिला ने अपने पिता के नाम पर एक राजनीतिक पार्टी को स्थापना किया है। संयुक्त आंध्र प्रदेश में लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले टीडीपी को तेलंगाना में मजबूत कैडर रहने के बावजूद समय के साथ सभी नजरअंदाज हो गये हैं। हाल ही में तेलंगाना टीडीपी के अध्यक्ष एल रमणा भी टीआरएस में शामिल हो गये। साल 2014 में हुए चुनाव में वाईएसआरसीपी ने तेलंगाना में चार विधायक और एक सांसद सीट पर जीत हासिल की थी। अर्थात थोड़ी बहुत अपना अस्तित्व को बनाये रखा। इसके बाद वाईएस जगन की ओर से ध्यान नहीं देने से तेलंगाना में पार्टी नेता और कार्यकर्ता अपना-अपना रास्ता देख लिये। वाईएस जगन मात्र आंध्र प्रदेश की राजनीति तक सीमित हो गये।
उम्मीदवारों की जीत और हार का फैसला मतदाताओं पर निर्भर
ऐसे समय में वाईएस शर्मिला ने तेलंगाना में पार्टी स्थापित की। साथ ही दावा किया कि 2023 में चमत्कार करके दिखाएंगे। उनके आत्मविश्वास को कोई भी नकार नहीं सकते। इसी संदर्भ में वाईएस शर्मिला के बारे में टीआरएस, कांग्रेस और भाजपा चतुराई के साथ आगे बढ़ रही हैं। तेलंगाना में वाईएस राजशेखर रेड्डी के प्रशंसकों के साथ उनके सामाजिक वर्ग के लोग भी शर्मिला के साथ खड़े रहने की संभावना है। लेकिन यह भी सच है कि चुनाव के समय उम्मीदवारों की जीत और हार का फैसला मतदाताओं पर निर्भर होता है।
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शर्मिला के अस्तित्व को कांग्रेस नकार रही
इस संदर्भ में वाईएस शर्मिला अपनी पार्टी के खिलाफ चाहे जितनी भी आलोचनाएं क्यों न करें, टीआरएस, कांग्रेस और बीजेपी मात्र प्रतिक्रिया नहीं दे रहे हैं। यही इन तीन पार्टियों की ‘रणनीति’ को स्पष्ट दर्शाती है। टीपीसीसी के अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने इस बात पर खुलकर टिप्पणी भी है। वाईएस शर्मिला की पार्टी को रेवंत रेड्डी नहीं मान रहे है। इससे स्पष्ट होता है कि शर्मिला के अस्तित्व को कांग्रेस नकार रही है। इस बीच शर्मिला के मुद्दे पर केटीआर और टीआरएस के अन्य नेता भी चुप्पी साधे हैं।
सप्ताह में एक बार महिलाओं द्वारा किया जाने वाला उपवास/व्रत
शर्मिला की ओर से बेरोजगारों के समर्थन में सप्ताह में एक बार किये जाने वाले अनशन को केटीआर ने अप्रत्यक्ष और व्यंग्य कसा है। केटीआर ने शर्मिला की दीक्षा की तुलना सप्ताह में एक बार महिलाओं द्वारा किया जाने वाला उपवास/व्रत बताया है। तेलंगाना बीजेपी अब तक शर्मिला के मुद्दे पर मुंह तक नहीं खोला है। इस तरह सभी पार्टियां शर्मिला को नजरअंदाज करते आ रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि तेलंगाना में शर्मिला की राजनीतिक प्रगति में तीनों पार्टियां बाधक बन रही है।
अनावश्यक लोकप्रियता
विश्लेषकों का कहना है कि तीनों पार्टियां मान रही है कि शर्मिला के प्रति सकारात्मक या नकारात्मक रूप से जवाब देने का मतलब है कि अनावश्यक रूप से उसकी लोकप्रियता प्रदान करना होगा। इस समय यही रणनीति टीआरएस, बीजेपी और कांग्रेस अपना रही है। ऐसे समय में इन तीन पार्टियों की राजनीतिक रणनीति पर नकेल कसना शर्मिला के लिए एक बड़ी चुनौती है। कहने की जरूरत नहीं है कि शर्मिला का राजनीतिक भविष्य प्रतिद्वंदी पार्टियों की रणनीति को मात करने पर ही निर्भर है।
जगन और केसीआर दोनों अच्छे दोस्त
इसी क्रम में शुक्रवार को शर्मिला ने मीडिया से कहा, “मैं तेलंगाना में तहलका (तेलुगु-प्रभंजनम) मचा के दिखाऊंगी। यह बात लिखकर रख लो। इतना ही नहीं, वाईएसआर कभी भी तेलंगाना के खिलाफ नहीं थे। आंध्र प्रदेश में दो साल से जगन सरकार की सत्ता में है। देखने पर लगता है कि सीएम जगन वहां पर राजन्ना राज्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसा नहीं होने पर जनता ही जगन की सरकार को नकार देंगे। शर्मिला ने दोहराया कि जगन और केसीआर दोनों अच्छे दोस्त हैं।”