वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
हिंदू समाज में किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व श्री गणेश की आराधना की जाती है। जिससे कार्य सिद्ध मंगलमय एवं पवित्र बन जाता है। वर्ष में भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेश चतुर्थी विशेष रूप से मनाने का व्यवधान है घर, मोहल्ले, गली गली, मंदिर और अन्य जगहों में गणेश प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और अनंत चतुर्दशी को विसर्जन किया जाता है।
गणपति बप्पा मोरिया के साथ हर वर्ष की तरह प्रथम पूज्य गणेश महाराज की गूंज सुनाई देने लगी है। बच्चों से बुजुर्ग तक में उत्साह, उल्लास, उमंग नजर आने लगी है, बड़ी-बड़ी सुंदर-सुंदर मूर्तियां कलाकारों द्वारा बनाई जा रही है, जो पूरे वर्ष इंतजार करते हैं कि कब गणेश उत्सव आएगा और हमारे मूर्तियों की बिक्री होगी और उनकी रोजी-रोटी चलेगी। मूर्तियों में भक्ति भावना भरपूर होती है तभी तो इतनी खूबसूरत मूर्तियां बनती हैं, जिनसे नजर हटाने का मन ही नहीं करता।
गणेश उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जगह-जगह उसके मंडप सजाए जाते हैं। हर जगह शांतिपूर्ण गणेश उत्सव हो सके, इसके लिए सरकारी तंत्र सक्रिय रहता है। देश में यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम है। गणेश जी को प्रथम पूजनीय देव कहते हैं। किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य में इनकी पूजा सर्वप्रथम की जाती है। क्योंकि इनको बुद्धि, ज्ञान और बाधाओं को निवारण करने वाले देवता के रूप में माना जाता है। यह त्योहार एकता को बढ़ावा देता है तथा यह सब में खुशी पूर्ण वातावरण तैयार करता है।
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अनेक प्रकार की मूर्तियां जो छोटी मूर्ति से लेकर बड़ी मूर्ति तक उपलब्ध होती है। इनको भक्त लाकर अनेक प्रकार के कपड़े, आभूषण और उपकरणों से बड़ी सुंदर आकर देते हैं, जिससे यह बिल्कुल जीवंत लगती हैं। अनेक परिवार अपने घर में गणेश जी को लाकर गणेश पूजा करते हैं। अनेक सोसाइटियों में गली-मोहल्ले में और विभिन्न पार्कों में यह सब बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह 10 दिन तक चलता है और अनंत चतुर्दशी पर गणेश मूर्ति का विसर्जन होता है। जबकि कुछ लोग तीसरें, पांचवें और सातवें दिन सुविधा अनुसार इसका विसर्जन कर देते हैं।
इससे पहले घर को साफ सुथरा करके अच्छी तरीके से सजाया जाता है। जगह-जगह रोशनी की व्यवस्था की जाती है। गणेश जी मंगल कारक है। सुबह शाम दोनों समय भोग लगाकर गणेश जी की पूजा की जाती है। गणेश जी को ‘दूर्वा’ अवश्य चढ़ाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दूर्वा की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई। दूर्वा को प्रदोष नाशक बताया गया है। गणपति बप्पा मोरिया के नारे लगाए जाते हैं। भगवान गणेश की पूजा में फूल फल और मिठाइयां चढ़ा कर भक्तों को वितरित की जाती हैं।
गणपति गणेश जी का मुख्य आकर्षण मोदक होता है। इस अवसर पर मीठी पकौड़ी और पसंदीदा प्रसाद मोदक के रूप में तैयार की जाती हैं और दिन के हिसाब से सब एक रंग के कपड़ों को धारण करके पूजा करते हैं। टोली में नाचते गाते हैं। बड़े सुंदर दृश्य उपस्थित करते हैं। अनेक प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। उनकी खुशी देखते बनती है। ओम गण गणपते नमः का उच्चारण करते हैं। विसर्जन के समय भक्त हाथ जोड़कर गणेश जी से क्षमा मांगते हुए निवेदन करते हैं कि अगले वर्ष जल्दी आना।
अब इको फ्रेंडली गणेश मूर्ति पूरे बाजार में मिलने लगी है। पर्यावरण के लिहाज से सही रहती हैं। इसलिए आजकल इन्हीं का प्रयोग ज्यादा हो रहा है। गणेश जी की मूर्ति को घर में मिट्टी के गमले में या गार्डन में पानी में विसर्जित कर देते हैं। लोगों में गणेश जी के प्रति बहुत आस्था है। यह दिन पर दिन हर जगह बड़े श्रद्धा के साथ मनाया जाने लगा है। गणेश उत्सव महाराष्ट्र में 19वीं सदी के अंत में मनाने की शुरुआत हुई।
उस समय प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक ने देश भक्ति और एकता के लिए ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के चलते हुए पारिवारिक कार्यक्रम को सार्वजनिक कार्यक्रम में बदलने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तब से सार्वजनिक उत्सव प्रारंभ हो गया। मुंबई में लाल बाग के राजा गणेश जी की बहुत ज्यादा मान्यता है। इस वर्ष की थीम चंद्रयान-2 पर रखी गई है। दोनों ओर आर्टिफिशियल अंतरिक्ष यात्री हैं। इसमें आम से लेकर खास तक और सेलिब्रिटी तक भगवान गणेश जी के दर्शन करने आते हैं।
खैरताबाद- हैदराबाद का गणेश उत्सव बहुत प्रसिद्ध है। सिंगारी शंरैया ने 1954 में पहली बार खैरताबाद में बाल गंगाधर तिलक से प्रेरित होकर एक फीट की गणेश मूर्ति की स्थापना की थी। 2014 से हर वर्ष 1 फीट बढ़ती चली गई। इस वर्ष 70वीं वर्षगांठ पर गणेश मूर्ति 70 फीट स्थापित की जा रही है। गणेश उत्सव 7 से 17 सितबर तक चलेगा। पर्यावरण को ध्यान में रखते मूर्ति मिट्टी और जैविक रंगों से बनाई जाएगी।
विसर्जन वाले दिन अनेक प्रकार के ढोल नगाड़े, फूलों की वर्षा करते हुए प्रसाद वितरित करते हुए पूरे सड़क पर भक्तगण अपनी खुशी का इजहार करते हुए चले जाते हैं। जिसमें रास्ते में और भक्तगण भी जुड़ते चले जाते हैं। जगह जगह स्टाल लगाकर इन भक्तों की सेवा की जाती है, यह दृश्य देखने लायक होता है। यह धर्म के प्रति लोगों की आस्था प्रकट करता है तथा प्रेम और श्रद्धा दिखाई देती है। अद्भुत बात यह है कि गजानन बाबा के लड्डू की बोली भी लगाई जाती हैं और भारी रकम देखकर भक्त श्रद्धा पूर्वक उसे ग्रहण करते हैं।
इसी के साथ गणेश जी के वाहन मूषक से भी भक्तों के आस्था बढ़ जाती है। गणेश जी के साथ मूषक ना हो उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती और पत्नी स्वरूप रिद्धि सिद्धि एवं पुत्र स्वरूप शुभ लाभ सभी कुछ हम कभी नहीं भूलते हैं। गजानन बाबा की कृपा दृष्टि बनी रहे यही प्रार्थना भक्ति करते हैं और करते रहेंगे। गणपति बप्पा मोरिया! मंगल मूर्ति मोरया!!
– लेखक के पी अग्रवाल