केंद्रीय हिंदी संस्थान : डॉ सुरेश पंत की नवीनतम पुस्तक ‘शब्दों के साथ-साथ’ पर विशेष चर्चा- “ज्ञान के क्षेत्र में पुस्तकें ही सबसे बड़ा अस्त्र हैं”

हैदराबाद : सर्वविदित है कि ज्ञान के क्षेत्र में पुस्तकें ही सबसे बड़ा अस्त्र हैं। पुस्तकें सच्ची मित्र और अनमोल धरोहर होती हैं जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती हैं और जीवन का मार्ग प्रशस्त करती हैं। निश्चय ही पुस्तक प्रेमी सुखी होते हैं। एक किताब, एक कलम और एक शिक्षक दुनिया को बदलने के लिए काफी हैं। आज की साप्ताहिक संध्या में सर्वाधिक बिकने वाली दीर्घानुभवी शिक्षक डॉ सुरेश पंत की नवीनतम पुस्तक ‘शब्दों के साथ-साथ’ पर विशेष चर्चा हुई, जिसमें लगभग तीन सौ चुनिंदा शब्दों की मार्गदर्शी जन्म कुंडली बड़े ही रोचक और ज्ञानवर्धक रूप में समाहित है। आभासी रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में भारत के अलावा विदेश के लगभग 25 देशों से सैकड़ों विद्वानों ने सहभागिता की और सार्थक शब्दों की दुनिया की अविस्मरणीय यादें सँजोईं।

आरंभ में साहित्यकार प्रो राजेश कुमार द्वारा पुस्तक की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की गई। तत्पश्चात केंद्रीय हिंदी संस्थान के भुवनेश्वर केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो रंजन दास द्वारा आत्मीयता से माननीय अध्यक्ष, पुस्तक के लेखक, विशिष्ट वक्ताओं, विद्वानों तथा श्रोताओं का स्वागत किया गया। संचालन का बखूबी दायित्व रेल मंत्रालय के राजभाषा निदेशक डॉ॰ वरुण कुमार द्वारा संयत भाव और विद्वतापूर्ण ढंग से बखूबी संभाला गया।

शब्द और शब्द कोश के इतिहास की पूर्वपीठिका प्रस्तुत करते हुए भोपाल से भाषाकर्मी एवं कार्यक्रम के संयोजक डॉ जवाहर कर्नावट ने कहा कि शब्द कोश से निकालने पर शब्द सर्वग्राही हो जाते हैं। समय के साथ शब्दों में कुछ परिवर्तन भी स्वाभाविक है। हमारे देश में शब्द कोश का इतिहास तीन हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है। वैदिक संस्कृत से चुनकर आने वाले शब्दों हेतु निघंटु की स्वस्थ और समृद्ध परंपरा रही है। मध्यकालीन कोश भी जगजाहिर हैं। शब्द स्वयं बोलते हैं। विकासशील भाषा में विविध भाषाओं के शब्दों का आत्मसात होना स्वाभाविक है। उन्होंने कहा कि हमें शब्दों के मर्म को समझना चाहिए। शब्द औषधि स्वरूप और चोट पहुँचाने के रूप में भी काम करते हैं। अतएव हमें शब्दों को संभालकर प्रयोग करना चाहिए।

कार्यक्रम के आयोजन पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए जाने माने भाषाविद और पुस्तक दीर्घानुभवी लेखक तथा हिंदी- संस्कृत के विद्वान प्राध्यापक डॉ सुरेश पंत ने विनम्र भाव से आभार प्रकट किया। उन्होंने कहा कि लोक शब्द बनाता है, कुंभकार की तरह कोशकार के पास नहीं जाता। इस पुस्तक की रचना के पीछे हिंदी शिक्षण-प्रशिक्षण से जुड़े अनुभव हैं जो समय -समय पर डॉ॰ कैलाश चंद भाटिया, डॉ कृष्ण कुमार गोस्वामी और डॉ व्यास सरीखे विद्वानों से दैनंदिन चर्चा आदि में उपजे हैं। कोरोना संकट में समय कई रिक्तता, ट्वीटर, ब्लॉग और यू-ट्यूब पर स्वाभाविक रूप से लिखना हुआ।

हमने प्रायः अशुद्ध रूप में प्रयुक्त होने वाले लगभग पाँच सौ शब्दों की सूची बनाई जिनमें से तीन सौ शब्द रोचक कुंडली रूप में इस पुस्तक में समाहित हैं। उनका कहना था कि वे शास्त्रीय शब्दावली के प्रयोग से प्रायः परहेज करते हैं। सरल स्वभावी विद्वान डॉ पंत जी ने कहा कि जनसत्ता समाचार पत्र में शब्द यात्रा पर दैनिक स्तंभ लेखन करने हेतु श्री सूर्यनाथ सिंह के आग्रह को वे ठुकरा न सके और लेखन के पश्चात पाठकों की सकारात्मक अनुक्रिया से भ्रम टूटा। पाठक अच्छी पुस्तकें खरीदते और पढ़ते हैं। उन्होंने पुस्तक की तथ्यात्मक भूलों और कमियों को बताने का भी विनम्र आग्रह किया ताकि आगे बेहतरीन बनाया जा सके।

विशिष्ट वक्ता एवं हिंदुस्तान समाचार पत्र के पूर्व संपादक डॉ प्रमोद जोशी ने कहा कि इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया का वाचिक भाषा में बहुत प्रभाव होता है। केवल अंग्रेज़ी से हमारा काम नहीं चलने वाला है बल्कि हिंदी और भारतीय भाषाओं के शब्दों को समाहित करके चलना श्रेयस्कर होगा। हिंदी में नित नए शब्द आ रहे हैं जो कोश में शामिल नहीं हैं। जब जरूरी हो तब शब्द गढ़े जाने चाहिए। भाषा के इस्तेमाल के लिए अनुभव उजागर होने चाहिए। दूरदर्शन, सिनेमा और नाटक आदि में दोषों के साथ बदलाव आए हैं। हिंदी को जीवन से जोड़ने हेतु मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग भी बढ़ना चाहिए। हिंदी को रोमन लिपि में लिखना दुखद है। आजकल क्रिकेट की हिंदी कमेंट्री काफी लोकप्रिय है।

भाषाकर्मी और वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने कहा कि आज के कार्यक्रम में गुरुजनों का सान्निध्य मनःसंतोषदायक है। उन्होंने शब्दों के साथ-साथ पुस्तक को अद्भुत ढंग से रोचक, पठनीय, अनुकरणीय और संग्रहणीय बनाने के लिए लेखक डॉ पंत जी का अभिनंदन किया। उनका कहना था कि हर पन्ने पर सीखने के लिए पर्याप्त सामग्री और बारीक जानकारी है। पुस्तक के 128 अध्याय तीन सौ शब्दों के इतिहास की रोचक यात्रा कराते हैं जिनमें दैनंदिन जीवन, भाषा-संस्कृति, खान-पान आचार-व्यवहार और शिष्ट संदर्भ निहित हैं।

उन्होंने दोसा, उपमा, बंटाधार, स्वेटर, विकलांग और हरिजन तथा मोद, मोदक, मोदी आदि शब्दों का पुस्तक में सन्निहित उदाहरण दिया। अनुभवी विद्वान श्री राहुल देव ने कहा कि शिक्षकों और पत्रकारों के लिए यह पुस्तक अनिवार्य होनी चाहिए ताकि शब्दों का ठीक-ठीक प्रयोग हो सके। उन्होंने हिंदी के हर पल होते शीलभंग, अंगभंग और भाषिक भ्रष्टाचार पर गहरी चिंता प्रकट की तथा अगली पीढ़ी को सही भाषा देने की पुरजोर अपील की।

श्री विजय नगरकर ने पुस्तक की प्रशंसा की और भारतीय भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने का आग्रह किया। उन्होंने हिंदी में आगत मराठी के कुछ शब्दों को सोदाहरण समझाया।

जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार सूर्यनाथ सिंह ने उत्कृष्ट मार्गदर्शी पुस्तक लेखन हेतु डॉ सुरेश पंत को बधाई दी और अपने देश की श्रुत परंपरा को अत्यंत मजबूत बताया। उन्होंने हिंदी, संस्कृत, प्राकृत और अंग्रेज़ी के अनुभवी विद्वान डॉ पंत जी की मजेदार लेखन शैली, चुटीले अंदाज और दीर्घकालिक भाषा साधना का समादर किया तथा सीधे कहा कि सबसे अधिक भाषा की दैनिक खपत करने वाले समाचार पत्रों और टी वी चैनलों पर भाषिक भ्रष्टाचार और प्रदूषण रुकना चाहिए तथा अपनी भाषा के लिए आँखें खुलनी चाहिए।

प्रख्यात भाषा विज्ञानी प्रो वी जगन्नाथन ने बहुत वर्षों बाद शब्दों पर अच्छी पुस्तक लिखने हेतु अध्यवसायी भाषा चिंतक डॉ॰ पंत जी को बधाई दी और इस पुस्तक के करोड़ों लोगों तक पहुँचने की कामना की।

जापान से जुड़े पद्मश्री डॉ तोमियो मिजोकामि ने इस समूह के साप्ताहिक आयोजनों और भारतीयों से हिंदी में बात करने को अपना सौभाग्य बताया और शब्दों के खेल को मनोरंजक और ज्ञानवर्धक करार दिया। उन्होंने कहा कि चीनी लोग व्यापारी, जापानी कारीगरी और भारतीय दार्शनिकता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। प्रयागराज को अपनी दूसरी मातृभूमि मानने वाले मिजोकामि जी ने चुटीले अंदाज में एक समाचार चैनल के शीर्षक में “अतीक के आतंक का अंत” को पीड़ाहारक और लयबद्धता की संज्ञा दी तथा सर्वेषां मंगलम की कामना की।

अमेरिका से सहभागी भाषाप्रेमी श्री अनूप भार्गव ने पुस्तक का स्वागत किया और मनसा प्रकट की कि इस पुस्तक की डिजिटल रूप में उपलब्धता हम सबके लिए अत्यंत सहायक होगी। डॉ पंत जी ने अवगत कराया कि इस संबंध में प्रकाशक का प्रयास जारी है।

केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष एवं इस कार्यक्रम के संरक्षक श्री अनिल जोशी जी ने पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की और विशिष्ट वक्ताओं, विषय विशेषज्ञों और प्रतिभागियों तथा देश विदेश से जुड़े विद्वानों की उपस्थिति पर संतोष प्रकट किया। शब्दों मेँ विशेष रुचि रखने वाले श्री जोशी जी ने कहा कि ट्वीटर आदि पर वे पंत जी सरीखे विद्वानों से अनवरत जुड़े रहकर लाभान्वित होते हैं। प्राविधिक एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में गत वर्षों में हिंदी और भारतीय भाषाओं के औपचारिक प्रवेश से मार्ग प्रशस्त हुआ है।

माननीय प्रधान मंत्री और गृह मंत्री जी के प्रेरणास्पद कदमों से जन मानस में भारतीय भाषायी मार्ग की अलख जगी है। हमें शब्दों के संसार में शास्त्रीयता का उपहास नहीं करना चाहिए। अपनी बोली-भाषा से समृद्धि लानी चाहिए। सही शब्दों को अनावश्यक कठघरे में खड़ा नहीं करना चाहिए। हमें अपनी देवनागरी लिपि को समुचित सम्मान सहित प्रयोग में लाना चाहिए।

अंत में यूनाइटेड किंगडम के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से जुड़ीं प्रो अरुणा अजितसरिया ने आत्मीयता से पुस्तक के सम्माननीय लेखक डॉ सुरेश पंत की शब्द साधना और सहज स्वभाव की प्रशंसा सहित कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने विशिष्ट वक्ताओं, अतिथि वक्ताओं, सभी विद्वानों और सुधी श्रोताओं के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया। उनके द्वारा इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों को नामोल्लेख सहित धन्यवाद दिया गया।

कैम्ब्रिज में हिंदी परीक्षक विदुषी डॉ अरुणा ने ऑक्सफोर्ड की तर्ज पर हिंदी में हर वर्ष कोश के नए संस्करण में आगत शब्दों को समाहित कर प्रकाशित करने की सलाह दी। उन्होंने इस कार्यक्रम से जुड़े संरक्षकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों, सहयोगियों, शुभचिंतकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों को हृदय की गहराइयों से धन्यवाद दिया। यह कार्यक्रम यू ट्यूब पर “वैश्विक हिंदी परिवार” शीर्षक से उपलब्ध है। रिपोर्ट लेखन का कार्य सेवानिवृत्त राजभाषा अधिकारी डॉ जयशंकर यादव ने संपन्न किया।

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